Sunday, March 25, 2018

किस्सा ए फाइल


यूपी में सरकारी भर्ती प्रक्रिया बिना अड़ंगेबाजी के पूरी नहीं होती : चयन सूची की फाइल गुम
फाइल गुम होने से नई मेरिट कैसे तैयार की जायेगी यह बड़ा सवाल है। मामला एलटी ग्रेड के शिक्षकों की भर्ती से जुड़ा है।
प्रदेश में कोई भी सरकारी भर्ती प्रक्रिया बिना अड़ंगेबाजी के पूरी नहीं हो पाती। भर्ती के लिए विज्ञापन से शुरू होने वाली प्रक्रिया विभिन्न स्तरों पर फंसते-फंसाते अंतत: अदालत में जाकर कई सालों के लिए विचाराधीन हो जाती है। अदालत नीर-क्षीर विवेचन के बाद ज्यादातर मामलों में अभ्यर्थियों के पक्ष में निर्णय देती है, लेकिन सरकारी मुलाजिम भर्तियों में रोड़े अटकाने के लिए किसी न किसी न तरह का अड़ंगा लगा ही देते हैं। ताजा मामला एलटी ग्रेड के शिक्षकों की भर्ती से जुड़ा है। राजकीय कालेज की एलटी ग्रेड शिक्षक भर्ती 2012 में करीब 1400 शिक्षकों की भर्ती हुई थी, लेकिन लगता है ये भर्तियां भी कई और साल के लिए खटाई में पड़ने वाली हैं। इन भर्तियों से जु़ड़ी इलाहाबाद मंडल की पुरुष चयन की मेरिट सूची की फाइल गुम हो गई है। यह फाइल कहां गई और कौन दोषी है कोई नहीं जानता। कार्रवाई के नाम पर कुछ लिपिकों का वेतन तक रोका गया, लेकिन यह प्रकरण सुलझ नहीं पाया है।दरअसल, ये भर्तियां शुरू से ही किसी न किसी झमेले में फंसती रहीं हैं। राजकीय कालेजों के लिए 1400 से अधिक एलटी ग्रेड शिक्षकों की यह भर्तियां सूबे के मंडल मुख्यालयों पर मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशकों ने की थी। चयन और नियमों को लेकर अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्र गड़बड़ होने पर तभी गंभीर सवाल उठे थे। बाद में चयन वाले विषय के आधार पर ही परास्नातक के गुणवत्ता अंक यानि क्वालिटी पॉइंट मार्क्‍स देने संबंधी याचिका हाईकोर्ट में दाखिल हुई। कोर्ट ने स्नातक के विषय से अलग विषय में परास्नातक करने वाले अभ्यर्थियों को 15 क्वालिटी पॉइंट मार्क्‍स दिया जाना गलत माना। हाईकोर्ट ने अभ्यर्थियों के चयन में गुणवत्ता अंक को लेकर जो निर्णय दिया, इससे पुरुष संवर्ग की मेरिट बदलने के आसार हैं। सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करने का निर्देश मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशकों को दिया है। अब जैसे तैसे छह साल बाद पुरुष संवर्ग की नई मेरिट का निर्धारण होगा, लेकिन फाइल गुम होने से नई मेरिट कैसे तैयार की जायेगी यह बड़ा सवाल है।


बिखरता बचपन

झारखंड में बिखरता बचपन, शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार की अस्पष्ट नीति उत्तरदायी है
झारखंड में बचपन लगातार बिखर रहा है। इसका कारण पढ़ाई के लगातार बोझ के बीच अपनों की बेतहाशा अपेक्षा तो है ही शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार की अस्पष्ट नीति भी इसके लिए कहीं न कहीं उत्तरदायी है। आए दिन पढ़ाई के बोझ से संघर्ष करते बच्चों का दुनिया को अलविदा कहने की खबरें आती रहती हैं। विगत शुक्रवार को भी हजारीबाग के कोर्रा थाने के साकेतपुरी से भी ऐसी ही एक दर्दनाक खबर आई। यहां नमन विद्या मंदिर की आठवीं कक्षा की 13 वर्षीय छात्रा ने फांसी लगाकर खुदकशी कर ली। छात्रा का रिजल्ट आना था। किशोरी अंकों के तिलिस्म और शायद अंकों के आधार पर खुद को आगे रखने की होड़ में खुद को पिछड़ा हुआ समझ पाने का बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकी, ऐसे में कुछ सही-गलत का भेद समझ न पाने की वजह से शायद उसने दुनिया को अलविदा कह देने का निर्णय ले लिया। लेकिन किशोरी की मौत ने समाज, शिक्षा जगत और सरकारी तंत्र के सामने एक बेहद सुलगता हुआ सवाल छोड़ दिया है कि आखिर हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारी भावी पीढ़ी को किस ओर ले जा रही है। किशोरी द्वारा अपने सुसाइड नोट में यह लिखना कि मम्मी-पापा आइ एम सॉरी...50 फीसद से कम अंक वालों के लिए यह दुनिया नहीं है, भी इसी बात की पुष्टि करता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक मानसिकता में कहीं न कहीं कोई न कोई खोट जरूर है। ऐसा भी नहीं है कि यह इस तरह की पहली घटना है।हाल के दिनों में झारखंड के विभिन्न स्थानों में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। दरअसल, आज की अधिकतर एकल परिवारों की तड़क-भड़क और भागमभाग से भरी जिंदगी में जल्द से जल्द सब कुछ पा लेने की हसरत और जो कुछ खुद हासिल करने से छूट गया उसे अपने बच्चों के जरिए पा लेने की ख्वाहिश ही हमारी भावी पीढ़ी के लिए संकट पैदा कर रही है। लोग शायद अपने बच्चों की वास्तविक क्षमता को परख पाने में असफल हो रहे हैं। क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हर कोई पढ़ाई में बेहतर हो। समाज में कई ऐसे उदाहरण हैं जब लोगों के लिए आज प्रेरणास्रोत माने जाने वाले भी पढ़ाई में बहुत सफलता हासिल नहीं कर सके लेकिन उन्होंने अपने पसंदीदा क्षेत्र को करियर के रूप में अपनाया और आज वे बुलंदी पर हैं।
किशोरी की मौत सुलगता हुआ सवाल छोड़ दिया है कि आखिर हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारी भावी पीढ़ी को किस ओर ले जा रही है।

यूपी के सहायता प्राप्त स्कूलों में 25 हजार प्रधानाचार्य व शिक्षकों की होगी भर्ती


प्रदेश के सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों  में प्रधानाचार्य, प्रवक्ता और सहायक अध्यापक के 25,126 पदों पर भर्तियां होंगी। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने इस संबंध में अधियाचन माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भेज दिया है। हालांकि बोर्ड का गठन होने के बाद ही भर्ती प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी।
प्रदेश में 4328 सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में प्रधानाचार्य के 1498, प्रवक्ता के 7086 और सहायक अध्यापक के 29475 पद रिक्त हैं। स्कूलों में बड़ी संख्या में पद रिक्त होने से शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है।

इनमें गणित, अंग्रेजी व विज्ञान विषयों के शिक्षकों के पद ज्यादा रिक्त होने से इन विषयों में बच्चों की स्थिति बेहद कमजोर है। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने इन पदों पर भर्ती के लिए अधियाचन बोर्ड को भेजा है। बोर्ड में फिलहाल अध्यक्ष एवं सदस्यों के पद रिक्त हैं। भर्तियां बोर्ड गठित होने के बाद ही शुरू हो पाएंगी। ऐसा माना जा रहा है कि अप्रैल तक बोर्ड गठित हो जाएगा।
फिर भी रिक्त रहेंगे कई पद
विभाग की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर भर्तियां होने के बाद भी प्रधानाचार्य के 160, प्रवक्ता के 2006 और सहायक अध्यापक के 4733 पद रिक्त रह जाएंगे। वहीं, राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में भी प्रवक्ता, योग प्रवक्ता व शिक्षक तथा सहायक अध्यापक के 14,551 पद रिक्त हैं।
राजकीय स्कूलों में भी होंगी भर्तियां
राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में रिक्त प्रवक्ता व सहायक शिक्षकों के पदों पर भर्तियां होंगी। इस संबंध में विभाग ने लोक सेवा आयोग को अधियाचन भेजा है। इसमें पुरुष प्रवक्ता के 631 पदों और महिला प्रवक्ता के 271 पदों पर सीधी भर्ती का प्रस्ताव भेजा गया है।

जबकि पदोन्नति कोटे से पुरुष प्रवक्ता के 521 और महिला प्रवक्ता के 825 पदों पर भर्ती होगी। इसी तरह सहायक अध्यापक पुरुष के 5364 और सहायक अध्यापक महिला के 5404 पदों पर भर्ती प्रक्रिया चल रही है।
सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों में पदों की स्थिति
पद--स्वीकृत--कार्यरत--रिक्त--अधियाचन
प्रधानाचार्य--4328--1387--1498--1287
प्रवक्ता--21736--14599--7086--3972
सहायक शिक्षक--69662--40108--29475--19867

सहायता प्राप्त विद्यालयों में होंगी भर्तियां
माध्यमिक शिक्षा के निदेशक अवध नरेश शर्मा का कहना है कि सहायता प्राप्त विद्यालयों में रिक्त पदों पर भर्ती का प्रस्ताव माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भेजा गया है। राजकीय विद्यालयों में भी प्रवक्ता के सीधी भर्ती और पदोन्नति कोटे के पदों पर भर्ती का प्रस्ताव लोक सेवा आयोग को भेजा गया है।



बसों में दिव्यांगों के लिए आरक्षित होंगी सीटें

बसों में दिव्यांगों के लिए आरक्षित होंगी सीटें
आगरा एक्सप्रेस वे पर पहले चलेंगी वोल्वो व स्कैनिया बसें
आगरा एक्सप्रेस वे पर पहले वोल्वो और स्कैनिया बसों का संचालन शुरू होगा। पहले चरण में 24 एसी बसों को चलाये जाना प्रस्तावित है। सस्ती बसों को बाद में चलाया जायेगा। बसों का संचालन चारबाग बस अड्डे से होना प्रस्तावित है। इसके बाद बसों का संचालन आलमबाग बस टर्मिनल से किया जाएगा। स्टेशन प्रबंधक वीएन तिवारी ने बताया कि 525 किलोमीटर के बजाए 531 किलोमीटर का रूट तय हुआ है। तय किलोमीटर के आधार पर स्कैनिया बस का किराया 1358 रु पए व वोल्वो बस का किराया 1328 रपए यात्रियों को देना होगा। एक यात्री का 140 रपए टोल लगेगा क्षेत्रीय प्रबंधक एके सिंह ने बताया कि लखनऊ- दिल्ली के बीच दो टोल प्जाला है। दोनों टोल मिलाकर एक यात्री के ऊपर तकरीबन 140 रपए का भार आएगा। टोल के पैसे को टिकट में जोड़कर वसूला जाएगा। दोनों बस टापेज के बीच 531 किलोमीटर का सफर होगा। इसके लिए साढ़े सात से साढ़े आठ घंटे का समय लगेगा। बसों का संचालन 27 मार्च की रात से शुरू होगा। बीच रास्ते दो प्लाजा पर बसों का ठहराव होगा।
लखनऊ से दिल्ली का किराया करीब 1300
केन्द्र सरकार के निर्देश पर रोडवेज की बसों में सीसीटीवी कैमरा व पैनिक बटन लगाने की शुरुआत के बाद अब दिव्यांग यात्रियों के लिए बसों में सीटें भी आरक्षित होंगी। डिपो के बस बेड़े में शामिल बसों में से दस प्रतिशत बसों में दिव्यांग श्रेणी के यात्रियों के लिए चार-चार सीटें आरक्षित की जाएंगी। हालांकि दिव्यांग यात्रियों को इसका लाभ वोल्वो, स्कैनिया, एसी शताब्दी व जनरथ श्रेणी की बसों में नहीं मिल सकेगा। इस सुविधा का लाभ दिव्यांगों को सिर्फ साधारण श्रेणी की बसों में ही उपलब्ध कराया जाएगा। ज्ञात हो इससे पूर्व यात्रियों की विशेषकर महिला यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए केन्द्र सरकार ने निर्भया फंड के तहत यूपी रोडवेज को 83 करोड़ पए की धनराशि का भुगतान किया था। इसके बाद से निगम प्रशासन ने इस धनराशि से बसों में कैमरे व पैनिक बटन लगवाने की योजना में जुटा हुआ है। वहीं अब दिव्यांग यात्रियों की दिक्कतों को देखते हुए निगम प्रशासन ने उनके लिए भी साधारण बसों में सीटें आरक्षित करने का निर्णय लिया है। उप्र राज्य सड़क परिवहन निगम के मुख्य प्रधान प्रबंधक (तकनीकि) जयदीप वर्मा ने बताया कि केन्द्र सरकार के दिशा-निर्देश के तहत यह निर्णय लिया गया है। इस बावत सभी डिपो व क्षेत्रीय प्रबंधकों को निर्देश भी जारी कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक डिपो के बस बेड़े में मौजूद दस दस प्रतिशत बसों में चार-चार सीटें आरक्षित रहेंगी। दिव्यांग यात्रियों की आरक्षित सीटों पर विशेष प्रकार का लाल रंग का एक स्टीकर चस्पा कराने के साथ ही दिव्यांग के सामान टांगने के लिए हैंगर भी लगाए जाएंगे। 

एलटी ग्रेड शिक्षक भर्ती में कम्प्यूटर शिक्षक के लिए आईटी छात्रों ने ठोंका दावा, बीएड की अनिवार्यता समाप्त करने के साथ शैक्षिक अर्हता में बदलाव करने की मांग की

लोक सेवा आयोग की सहायक अध्यापक प्रशिक्षित स्नातक (एलटी ग्रेड शिक्षक)  भर्ती 2018 में कम्प्यूटर शिक्षक पद के लिए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी)  से बीटेक करने वाले छात्रों ने भी दावा ठोंका है। छात्रों ने आयोग से  कम्प्यूटर शिक्षक की शैक्षिक अर्हता में बदलाव करने की मांग की है। छात्रों का कहना है कि अगर बदलाव नहीं होता है तो वे हाईकोर्ट जाएंगे।आयोग ने एलटी ग्रेड शिक्षक भर्ती का विज्ञापन 15 मार्च को जारी किया है। इसी दिन से  ऑनलाइन आवेदन लिए जा रहे हैं। विज्ञापन के मुताबिक कम्प्यूटर शिक्षक के लिए वही अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं, जिन्होंने सीएस में बीटेक/बीई अथवा  कम्प्यूटर विज्ञान में विज्ञान स्नातक अथवा कम्प्यूटर एप्लीकेशन में  विज्ञान स्नातक अथवा एनआईईएलआईटी से ‘ए’ स्तरीय पाठ्यक्रम के साथ स्नातक की उपाधि हासिल की हो।अर्हता में बदलाव की मांग कर रहे छात्रों का कहना है कि केंद्रीय विद्यालय संगठन में कम्प्यूटर शिक्षकों की भर्ती में सीएस के साथ ही आईटी से बीटेक करने वाले छात्रों को भी अवसर दिया जाता है। किसी अन्य  ब्रांच से बीटेक छात्र ने कम्प्यूटर एप्लीकेशन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा या डिग्री लिया है तो भी उसे भी इस पद को योग्य माना जाता है। अखिल भारतीय ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट यानी गेट में वर्ष 2009 से सीएस और आईटी का  पाठ्यक्रम भी मिलाकर एक कर दिया गया है। छात्रों का कहना है कि विज्ञापन  में ट्रिपलआईटी से दी जाने वाली मास्टर ऑफ साइंस इन साइबर लॉ तथा आईटी की  पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री का भी उल्लेख नहीं है जबकि आयोग की ओर से जारी  विज्ञापन में कम्प्यूटर का जो कोर्स है, उसमें साइबर लॉ और इनफार्मेशन  सिक्योरिटी का पूरा चैप्टर शामिल है।

अभ्यर्थियों का कहना है कि  कम्प्यूटर, कला या संगीत के शिक्षक सामान्य विषयों से इतर विशेष श्रेणी के  होते हैं। इसलिए इनमें बीएड की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए। केवीएस में  कम्प्यूटर शिक्षक के लिए बीएड अनिवार्य नहीं है। मंगल सिंह, सुनील, अनिल,  देवेंद्र मिश्र, मिराज अहमद, भाष्कर मिश्र आदि ने आयोग के सचिव से शैक्षिक  अर्हता में बदलाव करने की मांग की है।

सेवा नियमित होने पर ग्रेच्युटी का हक: जानिए क्या है ग्रेच्युटी और कब मिलता है इसका लाभ

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि एक बार सेवा नियमित होने के बाद कर्मचारी  ग्रेच्युटी का हकदार हो जाता है। इसके लिए उसकी पूर्व की सेवा भी गिनी  जाएगी। बशर्ते वह दिखा सके की उसने ग्रेच्युटी एक्ट की धारा 2 ए के अनुसार  बिना रुकावट के पांच साल सेवा की है। यूपी सरकार को कड़ी फटकार : जस्टिस  अरुण मिश्र की पीठ ने यूपी सरकार को व्यर्थ के मुकदमे दायर नहीं करने का  निर्देश दिया। दरअसल, एक कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के लाभ देने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। कोर्ट ने कहा,  हम देख रहे हैं ऐसे मामले कोर्ट में आ रहे हैं जिन्हें लड़ना बेहद मुश्किल  है।

नई दिल्ली विशेष संवाददातासर्वोच्च अदालत ने कहा कि एक बार सेवा नियमित होने के बाद कर्मचारी ग्रेच्युटी का हकदार हो जाता है। इसके लिए  उसकी पूर्व की सेवा भी गिनी जाएगी। बशर्ते वह दिखा सके की उसने ग्रेच्युटी  एक्ट की धारा 2 ए के अनुसार बिना रुकावट के पांच साल सेवा की है। यूपी  सरकार को कड़ी फटकार : जस्टिस अरुण मिश्र की पीठ ने यूपी सरकार को व्यर्थ  के मुकदमे दायर नहीं करने का निर्देश दिया। दरअसल, एक कर्मचारी को  सेवानिवृत्ति के लाभ देने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम  कोर्ट में अपील की थी। कोर्ट ने कहा, हम देख रहे हैं ऐसे मामले कोर्ट में आ रहे हैं जिन्हें लड़ना बेहद मुश्किल है।

ग्रेच्युटी कर्मचारी के  वेतन का वह हिस्सा है, जो कंपनी या नियोक्ता, कर्मचारी की वर्षो की सेवाओं  के बदले उसे देता है। नौकरी छोड़ने या खत्म हो जाने पर कर्मचारी यह रकम  नियोक्ता की ओर से दी जाती है।

जो कर्मचारी एक ही कंपनी में लगातार 4 साल, 10 महीने, 11 दिन काम कर चुका हो, उसकी सेवा को पांच साल की अनवरत  सेवा माना जाता है। पांच साल की सेवाओं के बाद ही कर्मचारी को ग्रेच्युटी  मिलती है।

टीचर के जज्बे को सलाम : सिर्फ एक बच्चे को पढ़ाने के लिए रोजाना पार करता है पहाड़


आपने स्कूलों में शिक्षकों को पढ़ाते हुए देखा होगा लेकिन क्या सिर्फ एक बच्चे को पढ़ाने के लिए किसी शिक्षक को रोजाना स्कूल आते हुए देखा है? शायद आपका जवाब होगा नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है। मगर महाराष्ट्र में पिछले दो सालों से 29 साल के एक सरकारी टीचर रोजाना इस काम को करते हैं। नागपुर के रहने वाले इस टीचर का नाम रजनीकांत मेंढे है। वह पुणे से 100 किलेमीटर से ज्यादा दूर स्थित भोर के गांव चंदर में 8 साल के बच्चे युवराज सिंह को पढ़ाने के लिए जाते हैं। गांव तक पहुंचने के लिए उन्हें रोजाना पर्वत को पार करते हुए 12 किलोमीटर मिट्टी से भरे हुए रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है।
रजनीकांत सरकार द्वारा नियुक्त किए गए जिला परिषद टीचर हैं। वह जिस चंदर गांव में पढ़ाने के लिए जाते हैं वहां 15 झोपड़ियां हैं जिसमें 60 लोग रहते हैं। जहां लोगों से ज्यादा संख्या में सांप रहते हैं। दो सालों से केवल युवराज ही उनका छात्र है। स्कूल पहुंचने के बाद मेंढे की पहली नौकरी बच्चे को ढूंढना होता है। उन्होंने कहा- मैं अमूमन उसे पेड़ों के पीछे छुपे हुए पाता हूं। कई बार मैं उसे उसकी झोपड़ी से लेकर आता हूं। मैं उसकी इस अनिच्छा को समझ सकता हूं। उसे बिना दोस्तों के स्कूल जाना पड़ता है। मेंढे पिछले आठ सालों से यहां पढ़ाने के लिए आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि पास के हाईवे से गांव पहुंचने के लिए एक घंटे तक मिट्टी वाले रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है।
 
यह गांव सांसद सुप्रिया सुले के चुनाव क्षेत्र के अंतर्गत आता है लेकिन गांव वालों का कहना है कि वह यहां कभी नहीं आईं। गांव के एक नागरिक ने कहा- सरकार? आखिरी बार उसके बारे में हमने तब सुना था जब पोलियो टीकाकरण की बात हुई थी। मेंढे का कहना है कि आठ साल पहले जब मैंने यहां पढ़ाना शुरू किया था तब 11 बच्चे हुआ करते थे। मेरे पास स्मार्ट बच्चे थे। बहुतों ने इसलिए स्कूल छोड़ दिया क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए 12 किलोमीटर मांगाव जाना पड़ेगा। बहुत सी लड़कियों को गुजरात के खेतों और फैक्ट्रियों में दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए भेज दिया गया। मैंने बहुत से पैरेंट्स से बच्चों को स्कूल में रहने देने की विनती की लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।

चंदर गांव में साल 1985 में यह स्कूल बना था। कुछ सालों बाद यहां बिना छत वाली चार दिवारी थी। हाल ही में एसबस्टस शीट के जरिए छत बनाई गई है लेकिन वहां से भी बारिश का पानी रिसकर अंदर आ जाता है। रजनीकांत ने कहा- एक रात को स्कूल की छत से मेरे ऊपर सांप गिर गया। अब तक तीन बार मेरा सामना सांप के साथ हो चुका है। युवराज की उम्र के सभी बच्चे खेलते रहते हैं लेकिन उसके पास केवल मैं हूं। उसके लिए स्कूल का मतलब खाली बेंच और चार दिवारी है। इस गांव में बिजली तक नहीं है। जीवन निर्वाह करने के नाम पर गांव वालों के पास कुछ गाय और पत्थर तोड़ने का काम है। अस्पताल की सुविधा भी 63 किलोमीटर दूर है जिसकी वजह से रास्ते में ही कई मरीज दम तोड़ देते हैं।

साभार अमरउजाला

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