पिंगली वैंकैया
2 अगस्त 1876 - 4 जुलाई, 1963
पिंगली वैंकैया भारत के राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक हैं। वे भारत के सच्चे
देशभक्त एवं कृषि वैज्ञानिक भी थे।
पिंगली वैंकैया
का जन्म 2 अगस्त 1876,
को वर्तमान आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भाटलापेनुमारू नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम पाण्डुरंग और माता का नाम
काल्पवती था और यह ब्राह्मण कुल नियोगी से संबद्ध थे। मद्रास से हाई स्कूल
उत्तीर्ण करने के बाद वो अपने वरिष्ठ स्नातक को पूरा करने के लिए कैंब्रिज
यूनिवर्सिटी चले गये। वहाँ से लौटने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर लखनऊ में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया
और बाद में वह एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए।
वो कई विषयों
के ज्ञाता थे, उन्हें
भूविज्ञान और कृषि क्षेत्र से विशेष लगाव था। वह हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे।
पिंगली ने ब्रिटिश भारतीय सेना में भी सेवा की थी और दक्षिण अफ्रीका के
एंग्लो-बोअर युद्ध में भाग लिया था। यहीं यह गांधी जी के संपर्क में आये और उनकी
विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए।
1906 से 1911 तक पिंगली मुख्य रूप से कपास की फसल की विभिन्न किस्मों
के तुलनात्मक अध्ययन में व्यस्त रहे और उन्होनें बॉम्वोलार्ट
कंबोडिया कपास पर अपना एक अध्ययन प्रकाशित किया।
इसके बाद वह
वापस किशुनदासपुर लौट आये और 1916 से 1921 तक विभिन्न झंडों के अध्ययन में अपने आप को
समर्पित कर दिया और अंत में वर्तमान भारतीय ध्वज विकसित किया। उनकी मृत्यु 4 जुलाई, 1963 को
हुई।
काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय
राष्ट्रीय काँग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैया ने भारत का खुद का
राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता पर बल दिया और, उनका यह
विचार गांधी जी को बहुत पसन्द आया। गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप
तैयार करने का सुझाव दिया।
पिंगली वैंकया
ने पांच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में
तिरंगे के लिए सोचा। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में वैंकया पिंगली महात्मा गांधी से मिले थे और
उन्हें अपने द्वारा डिज़ाइन लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद ही
देश में कांग्रेस पार्टी के सारे अधिवेशनों में दो रंगों वाले झंडे का प्रयोग किया
जाने लगा लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति
नहीं मिली थी।
इस बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया। बाद में गांधी जी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली।