Sunday, July 5, 2020

जगजीवन राम


जगजीवन राम

जन्म- 5 अप्रैल 1908 - मृत्यु- 6 जुलाई, 1986)

जगजीवन राम आधुनिक भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष जिन्हें आदर से 'बाबूजी' के नाम से संबोधित किया जाता था। लगभग 50 वर्षो के संसदीय जीवन में राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा बेमिसाल है। उनका संपूर्ण जीवन राजनीतिक, सामाजिक सक्रियता और विशिष्ट उपलब्धियों से भरा हुआ है। सदियों से शोषण और उत्पीड़ित दलितों, मज़दूरों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए जगजीवन राम द्वारा किए गए क़ानूनी प्रावधान ऐतिहासिक हैं। जगजीवन राम का ऐसा व्यक्तित्व था जिसने कभी भी अन्याय से समझौता नहीं किया और दलितों के सम्मान के लिए हमेशा संघर्षरत रहे। विद्यार्थी जीवन से ही उन्होंने अन्याय के प्रति आवाज़ उठायी। बाबू जगजीवन राम का भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में महती योगदान है।
जन्म
एक दलित के घर में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर छा जाने वाले बाबू जगजीवन राम का जन्म बिहार की उस धरती पर हुआ था जिसकी भारतीय इतिहास और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था। उनका नाम जगजीवन राम रखे जाने के पीछे प्रख्यात संत रविदास के एक दोहे - प्रभु जी संगति शरण तिहारी, जगजीवन राम मुरारी, की प्रेरणा थी। इसी दोहे से प्रेरणा लेकर उनके माता पिता ने अपने पुत्र का नाम जगजीवन राम रखा था। उनके पिता शोभा राम एक किसान थे जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थी।
शिक्षा
इन्होंने स्नातक की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1931 में ली ।
स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग
जगजीवन राम उस समय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले दल में शामिल हुए, जब अंग्रेज़ अपनी पूरी ताक़त के साथ आज़ादी के सपने को हमेशा के लिए कुचल देना चाहते थे। पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अंग्रेजों ने अपनी सारी ताक़त झोंक दी थी। मुस्लिम लीग की कमान जिन्ना के हाथ में थी और वे अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली बने थे।
गाँधी जी ने साम्राज्यवादी अंग्रेजों के इरादे को भांप लिया था कि स्वतंत्रता आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए अंग्रेज़ों की फूट डालो, राज करो नीति को बाबूजी ने समझा। हिन्दू मुस्लिम विभाजन कर अंग्रेज़ों ने दलितों और सवर्णों के मध्य खाई बनाने प्रारम्भ की, जिसमें वह सफल भी हुए और दलितों के लिए 'निर्वाचन मंडल', 'मतांतरण' और 'अछूतिस्तान' की बातें होने लगीं। महात्मा गांधी ने इसके दूरगामी परिणामों को समझा और आमरण अनशन पर बैठ गए। यह राष्ट्रीय संकट का समय था। इस समय राष्ट्रवादी बाबूजी ज्योति स्तंभ बनकर उभरे। उन्होंने दलितों के सामूहिक धर्म-परिवर्तन को रोका और उन्हें स्वतंत्रता की मुख्यधारा से जोड़ने में राजनीतिक कौशल और दूरदर्शिता का परिचय दिया। इस घटना के बाद बाबूजी दलितों के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। वह बापू के विश्वसनीय और प्रिय पात्र बने और राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गए।
अंग्रेज़ों का विरोध
1936 में 28 साल की उम्र में ही उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य चुना गया था। 'गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट' 1935 के अंतर्गत 1937में अंग्रेज़ों ने बिहार में कांग्रेस को हराने के लिए यूनुस के नेतृत्व में कठपुतली सरकार बनवाने का निष्फल प्रयत्न किया। इस चुनाव में बाबूजी निर्विरोध निर्वाचित हुए और उनके 'भारतीय दलित वर्ग संघ' के 14 सदस्य भी जीते। उनके समर्थन के बिना वहां कोई सरकार नहीं बन सकती थी। यूनुस ने बाबूजी को मनचाहा मंत्री पद और अन्य प्रलोभन दिये, किंतु बाबूजी ने उस प्रस्ताव को तुरंत ठुकरा दिया। यह देखकर गांधी जी ने 'पत्रिका हरिजन' में इस पर टिप्पणी करते हुए इसे देशवासियों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बताया। उसके बाद बिहार में कांग्रेस की सरकार में वह मंत्री बनें किन्तु कुछ समय में ही अंग्रेज़ सरकार की लापरवाही के कारण महात्मा जी के कहने पर कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे रहे। मुंबई में 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया तो जगजीवन राम सबसे आगे थे। योजना के अनुसार उन्हें बिहार में आन्दोलन तेज करना था लेकिन दस दिन बाद ही गिरफ्तार कर लिए गये।
राजनीति में सफलता
सन 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल होने के बाद वह सत्ता की उच्च सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए और तीस साल तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे। पांच दशक से अधिक समय तक सक्रिय राजनीति में रहे बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक कार्यकर्ता, सांसद और कैबिनेट मंत्री के रूप में देश की सेवा की। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि श्रम, कृषि, संचार, रेलवे या रक्षा, जो भी मंत्रालय उन्हें दिया गया उन्होंने उसका प्रशासनिक दक्षता से संचालन किया और उसमें सदैव सफ़ल रहे। किसी भी मंत्रालय में समस्या का समाधान बड़ी कुशलता से किया करते थे। उन्होंने किसी भी मंत्रालय से कभी इस्तीफ़ा नहीं दिया और सभी मंत्रालयों का कार्यकाल पूरा किया।
श्रम मंत्री
1946 तक वह गांधी जी के हृदय में उतर गए थे। अब तक अंग्रेज़ों ने भी बाबूजी को भारतीय दलित समाज के सर्वमान्य नेता के रूप में स्वीकार कर लिया। आज़ादी के बाद जो पहली सरकार बनी उसमें उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। यह उनका प्रिय विषय था। वह बिहार के एक छोटे से गांव की माटी की उपज थे, जहां उन्होंने खेतिहर मज़दूरों का त्रासदी से भरा जीवन देखा था। विद्यार्थी के रूप में कोलकाता में मिल - मज़दूरों की दारुण स्थिति से भी उनका साक्षात्कार हुआ था। बाजूजी ने श्रम मंत्री के रूप में मज़दूरों की जीवन स्थितियों में आवश्यक सुधार लाने और उनकी सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के लिए विशिष्ट क़ानूनी प्रावधान किए, जो आज भी हमारे देश की श्रम - नीति का मूलाधार हैं।
मज़दूरों के हितैषी
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने भारत छोड़ा तो उनका प्रयास था कि पाकिस्तान की भांति भारत के कई टुकड़े कर दिए जाएं। शिमला में कैबिनेट मिशन के सामने बाबूजी ने दलितों और अन्य भारतीयों के मध्य फूट डालने की अंग्रेज़ों की कोशिश को नाकाम कर दिया। अंतरिम सरकार में जब बारह लोगों को लार्ड वावेल की कैबिनेट में शामिल होने के लिए बुलाया गया तो उसमें बाबू जगजीवन राम भी थे। उन्हें श्रम विभाग दिया गया। इस समय उन्होंने ऐसे क़ानून बनाए जो भारत के इतिहास में आम आदमी, मज़दूरों और दबे कुचले वर्गों के हित की दिशा में मील के पत्थर माने जाते हैं। उन्होंने 'मिनिमम वेजेज एक्ट', 'इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट' और 'ट्रेड यूनियन एक्ट' बनाया जिसे आज भी मज़दूरों के हित में सबसे बड़े हथियार के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 'एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट' और 'प्रोवीडेंट फंड एक्ट' भी बनवाया।
संसद में
भारत की संसद को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे। 1952 में उन्हें नेहरू जी ने 'संचार मंत्री' बनाया। उस समय संचार मंत्रालय में ही विमानन विभाग भी था। उन्होंने निजी विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांवों में डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में नेहरू जी ने उन्हें रेल मंत्री बनाया। उस समय उन्होंने रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद डाली और रेलवे कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की। उन्हीं के प्रयास से आज रेलवे देश का सबसे बड़ा विभाग है। वे सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 1952 से 1984 तक लगातार सांसद चुने गए।
संगठन
उन्हें पद की लालसा बिल्कुल न थी। जब कामराज योजना आई तो उन्होंने संगठन का काम प्रारम्भ किया। शास्त्री जी की मृत्यु के बाद जब इंदिरा जी ने प्रधानमंत्री पद संभाला तो इंदिरा जी ने बाबू जी को अति कुशल प्रशासक के रूप में अपने साथ लिया। वह भारत के लिए बहुत कठिन दिन थे।
हरित क्रांति
1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से लड़ाई के कारण गरीब और किसान भुखमरी से लड़ रहे थे। अमेरिका से पी.एल- 480 के अंतर्गत सहायता में मिलने वाला गेहूं और ज्वार मुख्य साधन था। ऐसी विषम परिस्थिति में डॉ नॉरमन बोरलाग ने भारत आकर 'हरित क्रांति' का सूत्रपात किया। हरित क्रांति के अंतर्गत किसानों को अच्छे औजार, सिंचाई के लिए पानी और उन्नत बीज की व्यवस्था करनी थी। आधुनिक तकनीकी के पक्षधर बाबू जगजीवन राम कृषि मंत्री थे और उन्होंने डॉ नॉरमन बोरलाग की योजना को देश में लागू करने में पूरा राजनीतिक समर्थन दिया। दो ढाई साल में ही हालात बदल गये और अमेरिका से अनाज का आयात रोक दिया गया। भारत 'फूड सरप्लस' देश बन गया था।
रक्षा मंत्री के रूप में
1962 और 1965 की लड़ाई के बाद भूख की समस्या को उन्होंने बहुत बहादुरी और सूझबूझ से परास्त किया। 1971 में बांग्लादेश की स्थापना के पहले भारत और पाकिस्तान की लड़ाई में बाबू जी ने जिस तरह अपनी सेनाओं को राजनीतिक सहयोग दिया वह सैन्य इतिहास में एक उदाहरण है। जब कांग्रेस के तमाम पुराने नेताओं ने इंदिरा गांधी का साथ छोड़ दिया था, बाबू जगजीवन राम हमेशा उनके साथ रहे, किंतु उन्होंने कभी भी मूल्यों से समझौता नहीं किया।

संचार और परिवहन मंत्री के रूप में
इसी प्रकार संचार और परिवहन मंत्री के रूप में उन्होंने विरोध के बाद भी निजी हवाई सेवाओं के राष्ट्रीयकरण की दिशा में सफल प्रयोग किया। फलस्वरूप 'वायु सेवा निगम' बना और 'इंडियन एयर लाइंस' व 'एयर इंडिया' की स्थापना हुई। इस राष्ट्रीयकरण का प्रबल विरोध हुआ, जिसे देखते हुए सरदार पटेल भी इसे कुछ समय के लिए स्थगित करने के पक्ष में थे। बाबूजी ने उनसे कहा था - 'आज़ादी के बाद देश के पुनर्निर्माण के सिवा और काम ही क्या बचा है?' इसी समय बाबूजी के प्रयत्नों से गांव - गांव तक डाक और तारघरों की व्यवस्था का भी विस्तार हुआ। रेलमंत्री के रूप में बाबूजी ने देश को आत्म-निर्भर बनाने के लिए वाराणसी में डीजल इंजन कारख़ाना, पैरम्बूर में 'सवारी डिब्बा कारख़ाना' और बिहार के जमालपुर में 'माल डिब्बा कारख़ाना' की स्थापना की।
पटना में आयोजित छुआछूत विरोधी सम्मेलन में उन्होंने कहा - सवर्ण हिन्दुओं की इन नसीहतों से कि मांस भक्षण छोड़ दो, मदिरा मत पियो, सफाई के साथ रहो, अब काम नहीं चलेगा। अब दलित उपदेश नहीं, अच्छे व्यवहार की मांग करते हैं और उनकी मांग स्वीकार करनी होगी। शब्दों की नहीं ठोस काम की आवश्यकता है। मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को अपना अलग देश बनाने के लिए उकसा दिया है। डॉ आम्बेडकर ने अछूतों के लिए पृथक् निर्वाचन मंडल की माग की है। राष्ट्र की रचना हमसे हुई है, राष्ट्र से हमारी नही। राष्ट्र हमारा है। इसे एकताबद्ध करने का प्रयास भारत के लोगों को ही करना है। महात्मा गाँधी ने निर्णय लिया है कि छुआछूत को समाप्त करना होगा। इसके लिए मुझे अपनी कुर्बानी भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। देश की आज़ादी की लड़ाई में सभी धर्म और जाति के लोगों को बड़ी संख्या में जोड़ना होगा।
जनता दल में
आज़ादी के बाद जब पहली सरकार बनी तो वे उसमें कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुए और जब तानाशाही का विरोध करने का अवसर आया तो लोकशाही की स्थापना की लड़ाई में शामिल हो गए। 1969 में कांग्रेस के विभाजन के समय इन्होंने श्रीमती इन्दिरा गांधी का साथ दिया तथा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए । 1970 में इन्होनें कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता दल में शामिल हो गये थे। सब जानते हैं कि 6 फरवरी 1977 के दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से दिया गया उनका इस्तीफ़ा ही वह ताक़त थी जिसने इमरजेंसी को ख़त्म किया।
जीवनी के मुख्य बिन्दु
  जगजीवन राम ने 1928 में कोलकाता के वेलिंगटन स्क्वेयर में एक विशाल मज़दूर रैली का आयोजन किया था जिसमें लगभग 50 हज़ार लोग शामिल हुए।
  नेताजी सुभाष चंद्र बोस तभी भांप गए थे कि जगजीवन राम में एक बड़ा नेता बनने के तमाम गुण मौजूद हैं।
  महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में भी जगजीवन राम ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह उन बड़े नेताओं में शामिल थे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत को झोंकने के अंग्रेज़ों के फैसले की निन्दा की थी। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
  वर्ष 1946 में वह जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। भारत के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें श्रम मंत्री का दर्जा मिला और 1946 से 1952 तक इस पद पर रहे।
  जगजीवन राम 1952 से 1986 तक संसद सदस्य रहे। 1956 से 1962 तक उन्होंने रेल मंत्री का पद संभाला। 1967 से 1970 और फिर 1974 से 1977 तक वह कृषि मंत्री रहे।
  इतना ही नहीं 1970 से 1971 तक जगजीवन राम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 1970 से 1974 तक उन्होंने देश के रक्षामंत्री के रूप में काम किया।
  23 मार्च, 1977 से 22 अगस्त, 1979 तक वह भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे।
  आपातकाल के दौरान वर्ष 1977 में वह कांग्रेस से अलग हो गए और 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' नाम की पार्टी का गठन किया और जनता गठबंधन में शामिल हो गए। इसके बाद 1980 में उन्होंने कांग्रेस (जे) का गठन किया।
निधन
6 जुलाई, 1986 को 78 साल की उम्र में इस महान् राजनीतिज्ञ का निधन हो गया। बाबू जगजीवन राम को भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है। वह स्वतंत्र भारत के उन गिने चुने नेताओं में थे जिन्होंने देश की राजनीति के साथ ही दलित समाज को भी नयी दिशा प्रदान की।

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