दुर्गाबाई देशमुख
15 जुलाई, 1909 – 9 अप्रैल,
1981
दुर्गाबाई देशमुख आंध्र प्रदेश की प्रथम महिला नेता जिनका जन्म 15 जुलाई,
1909 ई. को राजामुंद्री में एक मध्यम स्तर के परिवार में हुआ था।
उनके पिता का बाल्यकाल में ही देहांत हो गया। उनकी माँ राजनीति में भाग लेती थीं
और कांग्रेस कमेटी की सचिव थीं। इसका प्रभाव दुर्गाबाई पर भी पड़ा।
दुर्गाबाई के बाल्यकाल के दिनों में
बालिकाओं को विद्यालय नहीं भेजा जाता था। पर दुर्गाबाई में पढ़ने की लगन थी।
उन्होंने अपने पड़ोसी एक अध्यापक से हिन्दी पढ़ना आरंभ कर किया। उन दिनों हिन्दी
का प्रचार-प्रसार राष्ट्रीय आंदोलन का एक अंग था। दुर्गाबाई ने शीघ्र ही हिन्दी
में इतनी योग्यता अर्जित कर ली कि 1923 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय खोल लिया। गांधी जी ने इस
प्रयत्न की सराहना करके दुर्गाबाई को स्वर्णपदक से सम्मानित किया था।
अब दुर्गाबाई सक्रिय रूप से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने
लगीं। वे अपनी माँ के साथ घूम-घूम कर खद्दर बेचा करती थीं। नमक सत्याग्रह में
उन्होंने प्रसिद्ध नेता टी. प्रकाशम के साथ भाग लिया। 25 मई, 1930 को वे गिरफ्तार कर लीं और एक वर्ष की सज़ा हुई। सज़ा काटकर बाहर आते ही
फिर आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें पुनः गिरफ्तार करके तीन वर्ष के लिए जेल
में डाल दिया। जेल की इस अवधि में दुर्गाबाई ने अपना अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान
बढ़ाया। बाहर आने पर दुर्गाबाई ने मद्रास विश्वविद्यालय में नियमित अध्ययन आरंभ
किया। वे इतनी मेधावी थीं कि एम.ए. की परीक्षा में उन्हें पांच पदक मिले। वहीं से
क़ानून की डिग्री ली और 1942 में वकालत करने लगीं। कत्ल
के मुक़दमे में बहस करने वाली वे पहली महिला वकील थीं।
दुर्गाबाई 1946 में लोकसभा और संविधान परिषद् की सदस्य चुनी गईं। उन्होंने अनेक
समितियों में महत्त्वपूर्ण योग दिया। 1952 में दुर्गाबाई
ने सी. डी. देशमुख के साथ विवाह कर लिया। वे अनेक समाजसेवी और महिलाओं के उत्थान
से संबंधित संस्थाओं की सदस्य रहीं। योजना आयोग के प्रकाशन ‘भारत में समाज सेवा का विश्वकोश’ उन्हीं की
देखरेख में निकला। 1953 में दुर्गाबाई देशमुख ने
केन्द्रीय ‘सोशल वेलफेयर बोर्ड’ की
स्थापना की और उसकी अध्यक्ष चुनी गईं। वे जीवन-भर समाज सेवा के कार्यों से जुड़ी
रहीं।