झारखंड में बिखरता बचपन, शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार की अस्पष्ट नीति उत्तरदायी है
झारखंड में बचपन लगातार बिखर रहा है। इसका कारण पढ़ाई के लगातार बोझ के बीच अपनों की बेतहाशा अपेक्षा तो है ही शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार की अस्पष्ट नीति भी इसके लिए कहीं न कहीं उत्तरदायी है। आए दिन पढ़ाई के बोझ से संघर्ष करते बच्चों का दुनिया को अलविदा कहने की खबरें आती रहती हैं। विगत शुक्रवार को भी हजारीबाग के कोर्रा थाने के साकेतपुरी से भी ऐसी ही एक दर्दनाक खबर आई। यहां नमन विद्या मंदिर की आठवीं कक्षा की 13 वर्षीय छात्रा ने फांसी लगाकर खुदकशी कर ली। छात्रा का रिजल्ट आना था। किशोरी अंकों के तिलिस्म और शायद अंकों के आधार पर खुद को आगे रखने की होड़ में खुद को पिछड़ा हुआ समझ पाने का बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकी, ऐसे में कुछ सही-गलत का भेद समझ न पाने की वजह से शायद उसने दुनिया को अलविदा कह देने का निर्णय ले लिया। लेकिन किशोरी की मौत ने समाज, शिक्षा जगत और सरकारी तंत्र के सामने एक बेहद सुलगता हुआ सवाल छोड़ दिया है कि आखिर हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारी भावी पीढ़ी को किस ओर ले जा रही है। किशोरी द्वारा अपने सुसाइड नोट में यह लिखना कि मम्मी-पापा आइ एम सॉरी...50 फीसद से कम अंक वालों के लिए यह दुनिया नहीं है, भी इसी बात की पुष्टि करता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक मानसिकता में कहीं न कहीं कोई न कोई खोट जरूर है। ऐसा भी नहीं है कि यह इस तरह की पहली घटना है।हाल के दिनों में झारखंड के विभिन्न स्थानों में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। दरअसल, आज की अधिकतर एकल परिवारों की तड़क-भड़क और भागमभाग से भरी जिंदगी में जल्द से जल्द सब कुछ पा लेने की हसरत और जो कुछ खुद हासिल करने से छूट गया उसे अपने बच्चों के जरिए पा लेने की ख्वाहिश ही हमारी भावी पीढ़ी के लिए संकट पैदा कर रही है। लोग शायद अपने बच्चों की वास्तविक क्षमता को परख पाने में असफल हो रहे हैं। क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हर कोई पढ़ाई में बेहतर हो। समाज में कई ऐसे उदाहरण हैं जब लोगों के लिए आज प्रेरणास्रोत माने जाने वाले भी पढ़ाई में बहुत सफलता हासिल नहीं कर सके लेकिन उन्होंने अपने पसंदीदा क्षेत्र को करियर के रूप में अपनाया और आज वे बुलंदी पर हैं।
किशोरी की मौत सुलगता हुआ सवाल छोड़ दिया है कि आखिर हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारी भावी पीढ़ी को किस ओर ले जा रही है।