द्वारका प्रसाद मिश्र
5 अगस्त, 1901-31
मई, 1988
द्वारका प्रसाद मिश्र भारत के प्रसिद्ध राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी,
पत्रकार और साहित्यकार थे। उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री
पद को भी सुशोभित किया था। द्वारका प्रसाद मिश्रा महात्मा गाँधी के 'असहयोग आन्दोलन' से जुड़ गये थे। राष्ट्रवादी
आन्दोलनों में उन्होंने सक्रियता से अपना योगदान दिया था। जवाहरलाल नेहरू से
मतभेदों के कारण इन्हें तेरह वर्षों तक राजनीतिक वनवास भोगना पड़ा। इन्होंने कई
ऐतिहासिक शोध ग्रंथ भी लिखे थे। हिन्दी, अंग्रेज़ी,
उर्दू और संस्कृत साहित्य से द्वारका प्रसाद जी को बहुत लगाव था।
वर्ष 1920 में द्वारका प्रसाद मिश्र महात्मा गाँधी के आह्वान
पर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। वे गाँधीजी के 'असहयोग
आन्दोलन' से जुड़ गये और तब से राष्ट्रवादी आन्दोलनों में
अग्रिम पंक्ति में रहे। देश की सेवा करते हुए जेल यात्राएँ उनकी साथी बन गई।
द्वारका प्रसाद जी ने वर्ष 1932, 1940 और 1942 में जेल की सज़ाएँ भोंगी। मंत्री पद द्वारका प्रसाद मिश्रा 1937
और 1946 में केन्द्रीय प्रान्तों के
मंत्री रहे। वे 30 सितंबर, 1963 से
8 मार्च, 1967 तक और फिर 9
मार्च, 1967 से 29 जुलाई, 1967 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी
रहे थे। पण्डित मिश्र एक प्रसिद्ध पत्रकार, कवि और
रचनाकार थे।
लेखन कार्य 1942 में जेल में रहते हुए द्वारका
प्रसाद मिश्र जी ने 'कृष्णायन' महाकाव्य
की रचना की थी। कृष्ण के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा इस महाकाव्य में कही
गई है। महाभारत के कृष्ण हमेशा द्वारका जी के आदर्श रहे। एक प्रखर पत्रकार के रूप
में भी द्वारका प्रसाद जी ने 1921 में 'श्री शारदा' मासिक, 1931 में 'दैनिक लोकमत' और
1947 में साप्ताहिक 'सारथी'
का सम्पादन किया। लाला लाजपत राय की अंग्रेज़ों की लाठी से हुई
मौत पर 'लोकमत' में लिखे उनके
सम्पादकीय पर पण्डित मोतीलाल नेहरू ने कहा था कि- "भारत का सर्वश्रेष्ठ
फौजदारी वकील भी इससे अच्छा अभियोग पत्र तैयार नहीं कर सकता।" जवाहरलाल नेहरू
से मतभेद के कारण मिश्र जी को तेरह वर्षों तक राजनीतिक वनवास भोगना पड़ा था।
द्वारका प्रसाद मिश्र जी ने अंग्रेज़ी में अपनी आत्मकथा 'लिविंग एन एरा' लिखी थी, जिसमें बीसवीं सदी का पूरा इतिहास समाहित हैं। ऐतिहासिक शोध ग्रंथ भी
लिखे, जिनमें 'स्टडीज इन द
प्रोटो हिस्ट्री ऑफ इंडिया और 'सर्च ऑफ लंका' विशेष उल्लेखनीय हैं। हिन्दी, अंग्रेज़ी,
संस्कृत और उर्दू भाषा के साहित्य से उनका गहरा लगाव था। संस्कृत
कवियों और उर्दू के शायरों के हिन्दी अनुवाद में उन्हें काफ़ी रस मिलता था। कुलपति
द्वारका प्रसाद मिश्र ने 1954 से 1964 तक 'सागर विश्वविद्यालय' के कुलपति के रूप में व्यतीत किया। उनके विद्या-व्यसन के संबंध में कहा
जाता था कि- "विश्वविद्यालय के किसी प्राध्यापक या विद्यार्थी से अधिक उसके
कुलपति अध्ययनरत रहते हैं।" 1971 में राजनीति से
अवकाश लेकर उन्होंने सारा समय साहित्य को समर्पित कर दिया था। निधन द्वारका प्रसाद
जी शतरंज के माहिर खिलाड़ी थे। एक साहित्यकार, इतिहासविद
और प्रखर राजनेता के रूप में प्रसिद्ध द्वारका प्रसाद मिश्र जी निधन 31 मई, 1988 को दिल्ली हुआ। उनका पार्थिव शरीर
जबलपुर में नर्मदा नदी के तट पर 'पंचतत्व' में लीन हुआ।