बंगाल के मेमन सिंह ( अब
बांगला देश ) में जन्मे क्रांतिकारी मोहन किशोर नामदास, राज
गोविंद नामदास के बेटे थे। वे कोलकाता की अनुशीलन पार्टी के सक्रिय सदस्य थे।
अनुशीलन समिति कोलकाता के युवाओं का समूह था जो अखाड़े में दंड बैठक करके मजबूत
शरीर बनाते थे। उनका लक्ष्य था हथियारों के बल पर क्रांति करके
अंग्रेजों को देश से बाहर करना। इसी समिति के सदस्य मोहन किशोर को नेत्रकोना
सोआरीकांडा एकरान राजनैतिक षडयंत्र कांड में वे अभियुक्त बनाया गया। उन्हें सात
साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद उन्हें अंदमान के सेल्युलर जेल
लाया गया था। अंडमान की सेलुलर जेल मानो नर्क थी। उस जेल में सभी
क्रांतिवीरों को अपराधियों से भी अधिक यातनाएं दी जाती थीं। राजबंदियों ने इस
अत्याचार के विरुद्ध आमरण अनशन करने की योजना बनाई।
इसके लिए सभी
क्रांतिकारियों ने निर्णय किया कि सामूहिक अनशन न करते हुए दो-दो क्रांतिवीर आमरण
अनशन करते हुए विरोध प्रदर्शन करेंगे। इसके लिए उन्होंने एक अनूठा तरीका निकाला।
एक मटके में सभी के नामों की पर्चियां डाल दीं और वॉर्डन से उनमें से दो पर्चियां
निकालने को कहा। यह अनशन यानी मृत्यु का वरण करने जैसा ही था। फिर भी सभी अपने नाम
आने की कामना कर रहे थे। एक बार वॉर्डन द्वारानिकाली गई पर्चियों में मोहन किशोर
नामदास और मोहित मोहन मोइत्रा का नाम निकला।
उनके उत्साह को
देखकर क्रांतिवीर ठाकुर महावीरसिंह से रहा न गया। उन्होंने भी उन बच्चों के साथ
जिद करते हुए अनशन प्रारंभ कर दिया। अनशन तुड़वाने के लिए उन्हें जबरन दूध पिलाने
के प्रयत्न किए गए, लेकिन वे
टस से मस न हुए। तीनों ने ही प्राण त्याग देने तक अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं
किया।
इन तीनों क्रांतिकारियों
को जबरन दूध पिलाने के लिए डॉक्टर के साथ आठ-दस पठान कैदी लगते। वे इनके हाथ-पैर
दबोच लेते और डॉक्टर इनके नथुनों में रबर की नली डालकर दूध पिलाने की कोशिश करते।
लेकिन तीनों ने दूध नहीं पिया। मगर इस जबरिया कोशिश में दूध महावीरसिंह के फेफड़े
में पहुंच गया। यह असहनीय दर्द था। अंततः 17 मई 1933 को वे देश के लिए बलिदान हो गए। उनके बाद 26
मई1933 को मोहन किशोर नामदास और 28 मई 1933 को मोहित मोहन मोइत्रा ने भी वीरगति प्राप्त की।