फेल न करने की नीति
और शिक्षकों की कमी के साथ- साथ मूलभूत संसाधनों का न होना सरकारी स्कूलों के
दसवीं व 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा परिणाम में आ रही गिरावट की प्रमुख वजह मानी जा
रही है। संसाधनों की कमी का तो हाल यह है कि गर्मी में विद्यार्थी कक्षाओं में
पंखों के अभाव में पेड़ की छांव में पड़ने को मजबूर हैं, तो सर्दियों में पर्याप्त रोशनी के चलते उन्हें बाहर धूप में बैठना पड़ता है।
ऐसे में पढ़ाई के दौरान एकाग्रचित रहने वाला वो माहौल ही नहीं मिल पाता। इस बार एक
मात्र सुधार दसवीं में यह आया कि पिछली बार औद्योगिक नगरी का नंबर 21वां था, इस बार 19वां आया है, जबकि 12वीं में नंबर आया 16वां, पिछली बार 21वां नंबर था।
फेल न होने का डर
नहीं
पूर्व प्रधानाचार्य
एमएल आहूजा के अनुसार सरकार ने दसवीं कक्षा से पहले बोर्ड परीक्षा खत्म करना
शिक्षा के स्तर में गिरावट की प्रमुख वजह है। पहले हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड
की ओर से पांचवीं और उसके बाद आठवीं कक्षा की परीक्षा बोर्ड द्वारा ली जाती थी।
ऐसे में बच्चों पर पढ़ने का दबाव रहता था। बच्चे बोर्ड परीक्षा के अनुभव से भी
गुजरते थे। अब पिछले कई वर्षों से पांचवीं व आठवीं कक्षा का बोर्ड खत्म कर दिया
गया, नौंवी तक बच्चे को फेल न करने की नीति चल रही है। ऐसे में बच्चों में फेल न
होने का डर नहीं रहता, तो वो फिर पढ़ेंगे क्यों।
दूसरे कामों में
व्यस्त शिक्षक
सरकारी स्कूलों में
शिक्षकों की जबर्दस्त कमी तो है ही, उस पर भी वर्ष भर कई ऐसे मौके आते हैं, जब शिक्षकों की ड्यूटी गैर शैक्षणिक कार्यों का जैसे जनगणना, मतदाता पहचान पत्र बनवाना, वोट बनाने आदि में लगा दी जाती है।
पिछले वर्षों की
तुलना में परिणाम में सुधार आया है। आगे उम्मीद रहेगी कि अगले साल इससे बेहतर
परिणाम में आएंगे। शिक्षा विभाग कमियों को जानने के प्रयासों में जुट गया है और उन
कमियों को दूर कर पढ़ाई का स्तर सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। सरकार भी
इस दिशा में गंभीर है और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिल कर प्रभावी प्रयास हो रहे
हैं।
सतेंद्र कौर वर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी, फरीदाबाद
सिर्फ आंशिक सुधार
से नहीं बनेगी बात
शिक्षा विभाग से
जुड़े अधिकारी व विशेषज्ञ भी मानते हैं कि स्कूलों में शिक्षकों की कमी व संसाधनों
का अभाव विद्यार्थियों तक कई योजनाओं का समुचित लाभ पहुंचाने की राह में सबसे बड़ा
रोड़ा साबित हो रहा है। शिक्षा मंत्री से लेकर अधिकारी तक अब इस बात पर जोर दे रहे
हैं कि स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा को गतिविधि आधारित बनाया जाए और इसमें
शिक्षकों व अभिभावकों की सहभागिता हो। उच्च स्तर पर ही नहीं, माध्यमिक और प्राथमिक कक्षाओं के लिए भी कई नए प्रोग्राम बनाए गए हैं। विभाग
बजट खर्च कर रहा है और सिलेबस डिजाइन करने वाले एक्सपर्ट बेहतरीन प्रयोग कर रहे
हैं, लेकिन शिक्षकों के स्तर पर कोताही के परिणामस्वरूप इन प्रयासों का सही लाभ
नहीं मिल पा रहा है।
‘सीधे संवाद’ से उम्मीद
शिक्षा विभाग के
न्यूनतम अध्ययन स्तर के सीधे संवाद में जिले के स्कूल अव्वल रहे हैं। शिक्षा विभाग
ने इस तरह का अध्ययन पहली बार किया है। इसमें पहली कक्षा से 12वीं के छात्रों का अध्ययन किया गया। गुरुग्राम के दस स्कूलों से शिक्षा विभाग
के अधिकारियों को निर्देश था कि वे रैंडम पांच बच्चों को चुनें और दिए गए
प्रश्नपत्र हल करवाएं अन्य गतिविधि कराएं। इस अध्ययन की रिपोर्ट में पूरे प्रदेश
में गुरुग्राम के बच्चों ने बेहतर प्रदर्शन किया है।
भविष्य में होने
वाली परीक्षाओं में विद्यार्थियों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए ‘सक्षम हरियाणा योजना’
को प्रभावी तरीके से लागू कराया जाएगा। कमजोर स्कूलों के बच्चों के
शैक्षणिक स्तर सुधारने के लिए लिए प्रयास होगा। शहर के ज्यादातर सरकारी स्कूलों
में अधिकतर छात्र प्रवासी हैं, ऐसे में वह बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं। विभाग
द्वारा सरकारी स्कूलों से पासआउट और एडमिशन की संख्या भी मांगी गई है ताकि सही
आकलन किया जा सके। जिले के छात्रों के प्रदर्शन में और सुधार की जरूरत है।
प्रेमलता यादव, जिला शिक्षा
अधिकारी, गुरुग्राम
उदारता भी नहीं आई
काम
केंद्रीय माध्यमिक
शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) 10वीं के जारी परीक्षा परिणाम से इस बार दिल्ली प्रदर्शन बेहद ही निराशाजनक रहा
है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष का परिणाम 23 फीसद तक नीचे गिरा है। जो दस
वर्षों में दिल्ली का सबसे घटिया प्रदर्शन है। जानकारों का कहना है कि दिल्ली के
सरकारी स्कूलों के खराब प्रदर्शन के कारण ही दिल्ली के कुल पास फीसद इतनी भारी
गिरावट हुई है।
अंकों में मिली थी
राहत
दिल्ली के सरकारी
स्कूलों का यह निराशाजनक प्रदर्शन तब रहा है जब सीबीएसई ने 10वीं में पास करने की अपनी नीति को इस वर्ष बेहद ही उदार किया था। जिसके तहत 20 अंक की आंतरिक व 80 अंक की मुख्य परीक्षा के अंकों को मिलाकर 33 फीसद अंक प्राप्त करने पर भी छात्रों को पास करने
का नियम बनाया था, लेकिन इसके बाद भी दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 30 फीसद छात्र फेल हो गए हैं। आलम यह है कि दिल्ली सरकार के एक स्कूल में 20 में से सिर्फ दो ही छात्र पास हुए हैं। जबकि सहायता प्राप्त एक स्कूल में 19 में से 19 छात्र फेल हो गए हैं। सरकारी स्कूलों के परीक्षा परिणाम स्थिति यह तब बनी है, जब सरकार ने परीक्षा परिणाम बेहतर करने के लिए साल भर कई कदम उठाए थे।