आज, हालाँकि बौद्ध धर्म अनेकों सम्प्रदाय हैं,जैसे : हीनयान या थेरवाद, महायान, वज्रयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है किन्तु सभी
बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।आज पूरे विश्व में लगभग 54 करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है,
जो दुनिया की आबादी का 7वाँ हिस्सा है। आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों
में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है।
भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस,
ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और
करोडों बौद्ध हैं।
त्रिपिटक (तिपिटक) बुद्ध धर्म का मुख्य ग्रन्थ है। यह पालिभाषा में
लिखा गया है। यह ग्रन्थ बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात बुद्ध के द्वारा दिया गया
उपदेशौं को सूत्रबद्ध करने का सबसे वृहद प्रयास है। बुद्ध के उपदेश को इस ग्रन्थ
मे सूत्र (सुत्त) के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सुत्रौं को वर्ग (वग्ग) में
बांधा गया है। वग्ग को निकाय (सुत्तपिटक) में वा खण्ड में समाहित किया गया है।
निकायौं को पिटक (अर्थ: टोकरी) में एकिकृत किया गया है। इस प्रकार से तीन पिटक
निर्मित है जिन के संयोजन को त्रि-पिटक कहा जाता है।
पालिभाषा का त्रिपिटक थेरवादी बुद्ध परम्परा में श्रीलंका, थाइलैंड, बर्मा, लाओस, कैम्बोडिया, भारत आदि राष्ट्र के बौद्ध धर्म अनुयायी
पालना करते है। पालि के तिपिटक को संस्कृत में भी भाषान्तरण किया गया है, जिस को त्रिपिटक कहते है। संस्कृत का पूर्ण त्रिपिटक अभी अनुपलब्ध है।
वर्तमान में संस्कृत त्रिपिटक प्रयोजन का जीवित परम्परा सिर्फ नेपाल के नेवार जाति
में उपलब्ध है। इस के अलावा तिब्बत, चीन, मंगोलिया, जापान, कोरिया,
वियतनाम, मलेशिया, रुस
आदि देश में संस्कृत मूल मन्त्र के साथ में स्थानीय भाषा में बौद्ध साहित्य
परम्परा पालना करते है।
बुद्ध की शिक्षाएँ
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के
अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत
से सिद्धांत मिलते हैं।
तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदी शिक्षाओं को प्रदान किए हैं।
चार
आर्य सत्य
तथागत बुद्ध का पहला धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने
साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे
में था। बुद्ध ने चार अार्य सत्य बताये हैं।
1. दुःख
इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में,
बीमारी में, मौत में, प्रियतम
से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।
2. दुःख कारण
तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और
फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।
3. दुःख निरोध
तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है।
3. दुःख निरोध का मार्ग
तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।
अष्टांगिक
मार्ग
बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख
निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय
करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :
1. सम्यक दृष्टि : चार
आर्य सत्य में विश्वास करना
2. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
3. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूट न बोलना
4. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्मों को न करना
5. सम्यक जीविका : कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक व्यापार न करना
6. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना
7. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
8. सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना
2. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
3. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूट न बोलना
4. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्मों को न करना
5. सम्यक जीविका : कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक व्यापार न करना
6. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना
7. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
8. सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना
कुछ लोग आर्य अष्टांग मार्ग को पथ की तरह समझते है, जिसमें आगे बढ़ने के लिए, पिछले के स्तर को पाना
आवश्यक है। और लोगों को लगता है कि इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाए जाते है।
मार्ग को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है : प्रज्ञा,
शील और समाधि।
पंचशील
भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को पांच शीलो का पालन करने की
शिक्षा दि हैं।
1. अहिंसा – मैं
प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
2. अस्तेय – मैं चोरी से विरत रहने की
शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
3. अपरिग्रह – मैं व्यभिचार से विरत रहने की
शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
4. सत्य – मैं झूठ बोलने से विरत रहने की
शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
5. सभी नशा से विरत –
नशीली चीजों के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
बोधि
गौतम बुद्ध से पाई गई ज्ञानता को बोधि कहलाते है। माना जाता है कि बोधि पाने
के बाद ही संसार से छुटकारा पाया जा सकता है। सारी पारमिताओं (पूर्णताओं) की
निष्पत्ति, चार आर्य सत्यों की पूरी समझ और कर्म के निरोध से
ही बोधि पाई जा सकती है। इस समय, लोभ, दोष,
मोह, अविद्या, तृष्णा और
आत्मां में विश्वास सब गायब हो जाते है। बोधि के तीन स्तर होते है - श्रावकबोधि, प्रत्येकबोधि और सम्यकसंबोधि। सम्यकसंबोधि बौध धर्म की सबसे उन्नत आदर्श मानी
जाती है।
दर्शन एवं सिद्धान्त
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के
अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत
से सिद्धांत मिलते हैं। सभी बौद्ध सम्प्रदाय तथागत बुद्ध के मूल सिद्धांत ही मानते
हैं।
प्रतीत्यसमुत्पाद
प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी
घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के
लिये,
इसका अर्थ है कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार
का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्मं (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है। हर घटना मूलतः शुन्य होती है। परंतु,
मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और
ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते हैं।
क्षणिकवाद
इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं।
परन्तु वैदिक मत से विरोध है।
अनात्मवाद
आत्मा का अर्थ 'मै' होता है। किन्तु, प्राणी शरीर और मन से बने है, जिसमे स्थायित्व नही
है। क्षण-क्षण बदलाव होता है। इसलिए, 'मै'अर्थात आत्मा नाम की कोई स्थायी चीज़ नहीं। जिसे लोग आत्मा समझते हैं, वो
चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है। आत्मा का स्थान मन ने लिया है।
अनीश्वरवाद
बुद्ध ने ब्रह्म-जाल सूत् में सृष्टि का निर्माण कैसा हुआ, ये बताया है। सृष्टि का निर्माण होना और नष्ट होना बार-बार होता है। ईश्वर या महाब्रह्मा सृष्टि का निर्माण नही
करते क्योंकि दुनिया प्रतीत्यसमुत्पाद अर्थात कार्यकरण-भाव के नियम पर चलती
है। भगवान बुद्ध के अनुसार, मनुष्यों के दू:ख और सुख के लिए
कर्म जिम्मेदार है, ईश्वर या महाब्रह्मा नही। पर अन्य जगह बुद्ध
ने सर्वोच्च सत्य को अवर्णनीय कहा है।
शून्यतावाद
शून्यता महायान बौद्ध संप्रदाय का प्रधान दर्शन
है।वह अपने ही संप्रदाय के लोगों को महत्व देते हैं।
यथार्थवाद
बौद्ध धर्म का मतलब निराशावाद नहीं है। दुख का मतलब निराशावाद नहीं
है,
लेकिन सापेक्षवाद और यथार्थवाद है।
बुद्ध, धम्म और संघ बौद्ध धर्म
के तीन त्रिरत्ने हैं। भिक्षु, भिक्षुणी, उपसका और उपसिका संघ के चार अवयव हैं।
बोधिसत्व
दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व जब दस बलों या
भूमियों (मुदिता, विमला, दीप्ति,
अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी,
दूरंगमा, अचल, साधुमती,
धम्म-मेघा) को प्राप्त कर लेते हैं तब "बुद्ध" कहलाते
हैं। बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। इस पहचान को बोधि (ज्ञान) नाम दिया गया है। कहा जाता है
कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और
होंगे। उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह दस पारमिताओं का पूर्ण
पालन करते हुए बोधिसत्व प्राप्त करे और बोधिसत्व के बाद दस बलों या भूमियों को
प्राप्त करे। बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है सम्पूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत।
"मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ - दुःख है, दुःख का
कारण है, दुःख का निरोध है, और दुःख के
निरोध का मार्ग है" (बुद्ध)। बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग पर चलकर न के अनुसार जीकर अज्ञानता और
दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं।
बौद्ध धर्म में संघ का बडा स्थान है। इस धर्म में बुद्ध, धम्म और संघ को 'त्रिरत्न' कहा जाता है। संघ के नियम के बारे में गौतम बुद्ध ने कहा था कि छोटे नियम भिक्षुगण
परिवर्तन कर सकते है। उन के महापरिनिर्वाण पश्चात संघ का आकार में व्यापक वृद्धि
हुआ। इस वृद्धि के पश्चात विभिन्न क्षेत्र, संस्कृति,
सामाजिक अवस्था, दीक्षा, आदि के आधार पर भिन्न लोग बुद्ध धर्म से आबद्ध हुए और संघ का नियम
धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा। साथ ही में अंगुत्तर निकाय के कालाम सुत्त में बुद्ध ने अपने अनुभव के आधार पर
धर्म पालन करने की स्वतन्त्रता दी है। अतः, विनय के नियम में
परिमार्जन/परिवर्तन, स्थानीय सांस्कृतिक/भाषिक पक्ष, व्यक्तिगत धर्म का स्वतन्त्रता, धर्म के निश्चित
पक्ष में ज्यादा वा कम जोड आदि कारण से बुद्ध धर्म में विभिन्न सम्प्रदाय वा संघ
में परिमार्जित हुए। वर्तमान में, इन संघ में प्रमुख
सम्प्रदाय या पंथ थेरवाद, महायान और वज्रयान है। भारत में बौद्ध धर्म का संप्रदाय है जो पुर्णत शुद्ध, मानवतावादी और
विज्ञानवादी है।
थेरवाद
या हीनयान
·
श्रावकयान
·
प्रत्येकबुद्धयान
·
थेरवाद बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है।
·
श्रीलंका, थाईलैंड, म्यान्मार, कम्बोडिया, लाओस, बांग्लादेश, नेपाल आदी देशों में थेरवाद बौद्ध धर्म का
प्रभाव हैं।
महायान
·
बोधिसत्त्वयान
·
बोधिसत्त्वसुत्रयान
·
बोधिसत्त्वतन्त्रयान
/ वज्रयान
·
महायान में बुद्ध की पूजा करता है।
·
चीन, जापान, उत्तर कोरिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया आदी देशों में प्रभाव हैं।
वज्रयान
·
वज्रयान
को तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहां जाता हैं।
·
भूटान में राष्ट्रधर्म
·
भूटान, तिब्बत और मंगोलिया में प्रभाव
भगवान बुद्ध के अनुयायिओं के लिए विश्व
में चार मुख्य तीर्थ माने जाते हैं -
1 लुम्बिनी – जहां भगवान
बुद्ध का जन्म हुआ।
2 बोधगया – जहां बुद्ध ने
ज्ञान प्राप्त हुआ।
3 सारनाथ – जहां से बुद्ध
ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।
4 कुशीनगर – जहां बुद्ध का
महापरिनिर्वाण हुआ।
लुम्बिनी यह स्थान नेपाल की तराई में
नौतनवां रेलवे स्टेशन से 25 किलोमीटर और गोरखपुर-गोंडा लाइन
के नौगढ़ स्टेशन से करीब 12 किलोमीटर दूर है। अब तो नौगढ़ से लुम्बिनी तक पक्की सडक़ भी
बन गई है। ईसा पूर्व 563 में राजकुमार सिद्धार्थ गौतम
(बुद्ध) का जन्म यहीं हुआ था। हालांकि, यहां के बुद्ध के समय
के अधिकतर प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। केवल सम्राट अशोक का एक स्तंभ अवशेष के रूप में इस बात की गवाही देता है
कि भगवान बुद्ध का जन्म यहां हुआ था। इस स्तंभ के अलावा एक समाधि स्तूप में बुद्ध
की एक मूर्ति है। नेपाल सरकार ने भी यहां
पर दो स्तूप और बनवाए हैं।
करीब छह साल तक जगह-जगह और विभिन्न
गुरुओं के पास भटकने के बाद भी बुद्ध को कहीं परम ज्ञान न मिला। इसके बाद वे गया पहुंचे। आखिर में
उन्होंने प्रण लिया कि जब तक असली ज्ञान उपलब्ध नहीं होता, वह
पिपल वृक्ष के नीचे से नहीं उठेंगे, चाहे उनके प्राण ही
क्यों न निकल जाएं। इसके बाद करीब छह दिन तक दिन रात एक पिपल वृक्ष के नीचे भूखे-प्यासे तप किया।
आखिर में उन्हें परम ज्ञान या बुद्धत्व उपलब्ध हुआ।
सिद्धार्थ गौतम अब बुद्धत्व पाकर आकाश जैसे अनंत ज्ञानी हो चूके थे। जिस पिपल
वृक्ष के नीचे वह बैठे, उसे बोधि वृक्ष यानी ज्ञान का वृक्ष कहां जाता है। वहीं गया को तक बोधगया (बुद्ध गया) के
नाम से जाना जाता है।
सारनाथ यह बौद्ध तीर्थ है। लाखों की संख्या में बौद्ध अनुयायी और बौद्ध धर्म में
रुचि रखने वाले लोग हर साल यहां पहुंचते हैं। बौद्ध अनुयायिओं के यहां हर साल आने
का सबसे बड़ा कारण यह है कि भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। सदियों
पहले इसी स्थान से उन्होंने धर्म-चक्र-प्रवर्तन प्रारंभ किया था। बौद्ध अनुयायी
सारनाथ के मिट्टी, पत्थर एवं कंकरों को भी पवित्र मानते हैं। सारनाथ की
दर्शनीय वस्तुओं में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान
बुद्ध का प्राचीन मंदिर, धामेक स्तूप, चौखंडी स्तूप, आदि शामिल हैं।
कुशीनगर बौद्ध अनुयायिओं
का बहुत बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल है। भगवान बुद्ध कुशीनगर में ही महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए। कुशीनगर के समीप हिरन्यवती नदी के
समीप बुद्ध ने अपनी आखरी सांस ली। रंभर स्तूप के निकट उनका अंतिम संस्कार किया
गया। 80 वर्ष की आयु में शरीर
त्याग से पहले भारी संख्या में लोग बुद्ध से मिलने पहुंचे। माना जाता है कि 120
वर्षीय ब्राह्मण सुभद्र ने बुद्ध के वचनों से प्रभावित
होकर संघ से जुडऩे की इच्छा जताई। माना जाता है कि सुभद्र आखरी भिक्षु थे जिन्हें
बुद्ध ने दीक्षित किया।