अशासकीय कॉलेजों में ढाई दशक पहले बिना पद के नियमित किए गए तदर्थ शिक्षकों
की नौकरी पर संकट मंडरा रहा है। उच्च शिक्षा के सहायक शिक्षा निदेशक संजय कुमार
सिंह ने सभी क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारियों को पत्र जारी कर कहा है कि कॉलेजों
से ऐसे शिक्षकों की सूची तैयार कर तत्काल भेज दी है। बुधवार को सीएम उच्च शिक्षा
समिति के साथ समीक्षा बैठक करने जा रहे हैं। बैठक मेंइस मुद्दे पर भी चर्चा
प्रस्तावित है।
क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारियों से कहा गया है कि प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में तीन जनवरी 1984 से 22 नवंबर 1991 तक में बड़ी संख्या में तदर्थ शिक्षकों का नियमितीकरण किया गया था। इनमें कई शिक्षकों का नियमितीकरण बिना पद के कर दिया गया था। यानी कॉलेजों में कुछ विषयों के पद नहीं थे, लेकिन उन पदों पर भी तदर्थ शिक्षकों का नियमितीकरण कर दिया गया। साथ ही वेतन संदाय के खाते से शिक्षकों को वेतन का भुगतान भी किया जाता रहा। नियमितीकरण की प्रक्रिया शासन की ओर से गठित कमेटी की देखरेख में हुई थी। इसमें शासन, उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और उच्च शिक्षा निदेशालय से एक-एक प्रतिनिधि शामिल थे।
अब सवाल उठ रहे हैं कि यह पूरी प्रक्रिया शासन की ओर से गठित समिति की देखरेख में हुई। ऐसे में अशासकीय सहायता प्राप्त कॉलेजों से सूचना क्यों मांगी जा रही है। इस प्रक्रिया से जुड़े सभी रिकार्ड शासन के साथ उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और उच्च शिक्षा निदेशालय में भी सुरक्षित रहने चाहिए। आशंका जताई जा रही है कि गड़बड़ी छिपाने के लिए निदेशालय या आयोग से रिकार्ड गायब तो नहीं कर दिए गए। फिलहाल तीन जनवरी 1984 से 22 नवंबर 1991 के बीच नियमित किए गए शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक रही है।
क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारियों से कहा गया है कि प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में तीन जनवरी 1984 से 22 नवंबर 1991 तक में बड़ी संख्या में तदर्थ शिक्षकों का नियमितीकरण किया गया था। इनमें कई शिक्षकों का नियमितीकरण बिना पद के कर दिया गया था। यानी कॉलेजों में कुछ विषयों के पद नहीं थे, लेकिन उन पदों पर भी तदर्थ शिक्षकों का नियमितीकरण कर दिया गया। साथ ही वेतन संदाय के खाते से शिक्षकों को वेतन का भुगतान भी किया जाता रहा। नियमितीकरण की प्रक्रिया शासन की ओर से गठित कमेटी की देखरेख में हुई थी। इसमें शासन, उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और उच्च शिक्षा निदेशालय से एक-एक प्रतिनिधि शामिल थे।
अब सवाल उठ रहे हैं कि यह पूरी प्रक्रिया शासन की ओर से गठित समिति की देखरेख में हुई। ऐसे में अशासकीय सहायता प्राप्त कॉलेजों से सूचना क्यों मांगी जा रही है। इस प्रक्रिया से जुड़े सभी रिकार्ड शासन के साथ उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और उच्च शिक्षा निदेशालय में भी सुरक्षित रहने चाहिए। आशंका जताई जा रही है कि गड़बड़ी छिपाने के लिए निदेशालय या आयोग से रिकार्ड गायब तो नहीं कर दिए गए। फिलहाल तीन जनवरी 1984 से 22 नवंबर 1991 के बीच नियमित किए गए शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक रही है।