Thursday, May 14, 2020

फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा

फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा 
28 जनवरी 1899 - 15 मई 1993
भारत के पहले सेनाध्यक्ष थे। उन्होने सन् 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया। वे भारत के दो फिल्ड मार्शलों में से एक हैं (दूसरे हैं - फिल्ड मार्शल साम मानेकशा)
जीवनी
के एम् करिअप्पा का जन्म 28 फ़रवरी 1899 को कर्नाटक के पूर्ववर्ती कूर्ग में शनिवर्सांथि नामक स्थान पर हुआ था। इस स्थान को अब कुडसुगनाम से जाना जाता है। उनके पिता कोडंडेरा माडिकेरी में एक राजस्व अधिकारी थे। वे वह अपने परिवार सहित लाइम कॉटेज में रहा करते थे। करिअप्पा के तीन भाई तथा दो बहनें भी थीं। करिअप्पा को घर के सभी लोग प्यार से चिम्माकहकर पुकारते थे।
करिअप्पा की प्रारम्भिक शिक्षा माडिकेरी के सेंट्रल हाई स्कूल में हुई। वह पढ़ाई में बहुत अच्छे थे, किन्तु गणित ,चित्रकला  उनके प्रिय विषय थे। फुरसत के क्षणों में वह प्रायः कैरिकेचरी बनाया करते थे। सन् 1917 में स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात् इसी वर्ष उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कालेज में प्रवेश ले लिय़ा। कालेज जीवन में प्राध्यापक डब्लू.एच. विट्वर्थ व अध्यापक एस.आई. स्ट्रीले का करिअप्पा पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनके मार्गदर्शन में करिअप्पा का किताबों के प्रति लगाव बढ़ता गया। एक होनहार छात्र के साथ-साथ वह क्रिकेट, हॉकी, टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी रहे।
कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद ही उनका चयन सेना में अधिकारी के तौर पर हो गया।
मिलिटरी करियर
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारतीय राष्ट्रवादियों ने ब्रिटिश सरकार से भारतीयों को भी सेना में कमीशन देने की मांग की जिसे मान लिया गया। सख्त जांच और परीक्षण के बाद के.एम.करिअप्पा को उस प्रथम दल में शामिल कर लिया गया जिसे कठोर प्री-कमीशन प्रशिक्षण दिया जाना था। सन 1919 में वे KCIOs  (King’s Commissioned Indian Officers) के पहले दल में सम्मिलित किये गए जिन्हें इंदौर के डैली कॉलेज  में प्रशिक्षण दिया गया। उसके पश्चात उन्हें कार्नाटिक इन्फेंट्री में बतौर टेम्पररी सेकेण्ड लेफ्टिनेंट कमीशन दिया गया। सन 1921 में उन्हें टेम्पररी लेफ्टिनेंट बना दिया गया और सन 1922 में उन्हें स्थायी कमीशन दिया गया और वे सेकेण्ड लेफ्टिनेंटबनाये गए। तत्पश्चात करिअप्पा को सन 1923 में लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नत किया गया।
सन 1927 में करिअप्पा को कैप्टेन के पद पर पदोन्नत कर दिया गया पर इस पदोन्नति को सन 1931 तक सरकारी तौर पर राजपत्रित नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने डोगरा रेजिमेंट के साथ मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक) में अपनी सेवाएं दी। सन 1933 में क्वेट्टा के स्टाफ कॉलेजमें प्रशिक्षण कोर्स करने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी बने। सन 1938 में उन्हें मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया। उसके अगले साल ही उन्हें स्टाफ कैप्टेन बना दिया गया।
सन 1941-42 में उन्हें इराक,सीरिया और ईरान में तैनात किया गया और सन 1943-44 में उन्होंने अपनी सेवाएं बर्मा में दी। सन 1942 में किसी यूनिट का कमांड पाने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी बने। सन 1944 में उन्हें टेम्पररी लेफ्टिनेंट कर्नल बना दिया गया। इसके पश्चात उन्होंने स्वेच्छा से 26वें डिविजन को अपनी सेवाएं दी जो बर्मा से जापानियों को निकालने में कार्यरत थी। यहाँ उन्हें ऑफिसर ऑफ़ द आर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायरबनाया गया। जुलाई 1946 में उन्हें पूर्ण लेफ्टिनेंट कर्नल का पद दिया गया और उसी साल उन्हें फ्रंटियर ब्रिगेड ग्रुप का ब्रिगेडिएर बना दिया गया। सन 1947 में उन्हें इम्पीरियल डिफेन्स कॉलेजयूनाइटेड किंगडम, में एक प्रशिक्षण कोर्स के लिए चुना गया। इस कोर्स के लिए चुने जाने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे।
भारत के विभाजन के समय उन्हें सेना के बंटवारे की जिम्मेदारी सौंपी गयी जिसे उन्होंने पूरी निष्ठा, न्यायोचित और सौहार्दपूर्ण तरीके से पूरा किया।
देश की आजादी के बाद करिअप्पा को मेजर जनरल रैंक के साथ डिप्टी चीफ ऑफ़ द जनरल स्टाफनियुक्त किया गया। जब उनकी पदोन्नति  लेफ्टिनेंट जनरल के तौर पर हुई तब उन्हें ईस्टर्न आर्मी का कमांडर बना दिया गया। सन 1947 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय उन्हें पश्चिमी कमान का जी-ओ-सी-इन-सी बनाया गया। उनके नेतृत्व में ज़ोजिल्ला, द्रास और कारगिल पर पुनः कब्ज़ा किया गया। कठिन परिस्थितियों में भी के.एम.करिअप्पा ने जिस स्फूर्ति के साथ अपनी सेना का जिस प्रकार से नेतृत्व किया उसके बाद लगभग उनका अगला कमांडर इन चीफ बनना तय हो गया।
करिअप्पा देश के पहले कमांडर-इन-चीफ थे
15 जनवरी 1949 को के. एम. करिअप्पा को भारतीय सेना का प्रमुख चुना गया। इस प्रकार सेना का कमांडर इन चीफ बनने वाले वे पहले भारतीय हो गए।उन्होंने 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश राज के समय के भारतीय सेना के अंतिम अंग्रेज शीर्ष कमांडर जनरल रॉय फ्रांसिस बुचर से यह पदभार ग्रहण किया था, उसी दिन को पूरा देश सेना दिवस के रूप में मनाता है.
सन 1953 में वे भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें ऑस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैण्ड में भारत का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया जहाँ उन्होंने 1956 तक अपनी सेवाएं दी।
एक वरिष्ठ अनुभवी अधिकारी के नाते उन्होंने कई देशों की सेनाओं के पुनर्गठन में भी सहायता की। उन्होंने चीन, जापान, अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, कनाडा और कई और यूरोपिय देशों की यात्रा की।
अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने उन्हें आर्डर ऑफ़ द चीफ कमांडर ऑफ़ द लीजन ऑफ़ मेरिटसे सम्मानित किया।
देश को दी गयी उनकी सेवाओं के लिए भारत सरकार ने सन 1986 में उन्हें फील्ड मार्शलका पद प्रदान किया।
सेवानिवृत्ति के बाद के.एम.करिअप्पा कर्नाटक के कोडागु जिले के मदिकेरी में बस गए। वे प्रकृति प्रेमी थे और लोगों को पर्यावरण संरक्षण आदि के बारे में भी अवगत कराया।
मृत्यु
फील्ड मार्शल के.एम करिअप्पा का निधन 15 मई 1993 को कर्णाटक की राजधानी बैंगलोर में हो गया। मृत्यु के समय उनकी आयु 94 साल थी।
जीवन घटनाक्रम
1899: के.एम करिअप्पा का जन कर्नाटक के कुर्ग में हुआ
1919: ब्रिटिश इंडियन आर्मी में टेम्पररी सेकंड लेफ्टिनेंट चुने गए
1921: टेम्पररी लेफ्टिनेंट बनाये गए
1922: पूर्णकालिक सेकंड लेफ्टिनेंट बनाये गए
1923: लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नति
1927: ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कैप्टेन बने
1938: मेजर पद पर पदोन्नति
1942: टेम्पररी सेकेण्ड लेफ्टिनेंट बने
1944: टेम्पररी ब्रिगेडिएर बनाये गए
1946: पहले लेफ्टिनेंट कर्नल और फिर ब्रिगेडिएर बने
1947: मेजर जनरल बने
1948: लेफ्टिनेंट जनरल बनाये गए
1949: भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ बनाये गए
1953: सेना से सेवानिवृत्त हुए
1953: ऑस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैण्ड में भारत के उच्चायुक्त नियुक्त किये गए
1983: भारत सरकार ने उन्हें फील्ड मार्शलके पद से सम्मानित किया
1993: 94 साल की उम्र में निधन हो गया



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