Mahendranath Mulla
15 मई, 1926 - 9 दिसम्बर, 1971
महेन्द्रनाथ मुल्ला भारतीय
नौसेना के जांबाज ऑफ़ीसर थे। वे भारतीय समुद्रवाहक पोत 'आईएनएस
खुखरी' के कप्तान थे। भारत-पाकिस्तान युद्ध,1971 में हर जगह वाहवाही लूटने के बावजूद कम से
कम एक मौक़ा ऐसा आया, जब पाकिस्तानी नौसेना भारतीय नौसेना पर
भारी पड़ी। पाकिस्तान की एक पनडुब्बी भारतीय जलसीमा में घूम रही
थी, जिसे खोजने और नष्ट करने के लिए 'आईएनएस
खुखरी' और 'कृपाण' पोतों को लगाया गया था, किंतु पाकिस्तानी पनडुब्बी 'हंगोर' ने खुखरी को निशाना बना लिया। कप्तान
महेन्द्रनाथ मुल्ला ने डूबते हुए खुखरी को छोड़ने से मना कर दिया और अंत तक
सैनिकों को बचाते रहे। आईएनएस खुखरी के साथ ही महेन्द्रनाथ मुल्ला ने भी जल समाधि
ले ली। उनके मरणोपरांत उन्हें 'महावीर
चक्र' से
सम्मानित किया गया।
महेन्द्रनाथ मुल्ला का जन्म 15 मई, 1926 को उत्तर
प्रदेश के गोरखपुर
ज़िले में हुआ था। उन्होंने 1 मई, 1948 को भारतीय नौसेना में कमीशन प्राप्त किया
था।
वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान
युद्ध में केवल एक अवसर ही ऐसा आया, जब पाकिस्तानी नौसेना ने भारतीय नौसेना को
नुकसान पहुँचाया। भारतीय नौसेना को अंदाज़ा था कि युद्ध शुरू होने पर पाकिस्तानी
पनडुब्बियाँ मुंबई के बंदरगाह को अपना
निशाना बनाएंगी। इसलिए उन्होंने तय किया कि लड़ाई शुरू होने से पहले सारे नौसेना
फ़्लीट को मुंबई से बाहर ले जाया जाए।
जब 2 और 3 दिसम्बर की रात को नौसेना के पोत मुंबई छोड़ रहे थे, तब
उन्हें यह अंदाज़ा ही नहीं था कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी 'पीएनएस
हंगोर' ठीक उनके नीचे उन्हें डुबा देने के लिए तैयार खड़ी
थी। उस पनडुब्बी में तैनात तत्कालीन पाकिस्तानी नौसेना के लेफ़्टिनेंट कमांडर और
बाद मे रियर एडमिरल बने तसनीम अहमद के अनुसार- "पूरा का पूरा भारतीय फ़्लीट
हमारे सिर के ऊपर से गुज़रा और हम हाथ मलते रह गए, क्योंकि
हमारे पास हमला करने के आदेश नहीं थे; क्योंकि युद्ध औपचारिक
रूप से शुरू नहीं हुआ था। नियंत्रण कक्ष में कई लोगों ने टॉरपीडो फ़ायर करने के
लिए बहुत ज़ोर डाला, लेकिन हमने उनकी बात सुनी नहीं। हमला
करना युद्ध शुरू करने जैसा होता। मैं उस समय मात्र लेफ़्टिनेंट कमांडर था। मैं
अपनी तरफ़ से तो लड़ाई शुरू नहीं कर सकता था।"
पाकिस्तानी पनडुब्बी उसी इलाक़े में
घूमती रही। इस बीच उसकी एयरकंडीशनिंग में कुछ दिक्कत आ गई और उसे ठीक करने के लिए
उसे समुद्र की सतह पर आना पड़ा। 36 घंटों की लगातार मशक्कत के बाद पनडुब्बी ठीक कर ली गई, लेकिन उसकी ओर से भेजे संदेशों से भारतीय नौसेना को यह अंदाज़ा हो गया कि
एक पाकिस्तानी पनडुब्बी दीव के तट के आसपास घूम रही है। भारतीय नौसेना
मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट
किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट 'आईएनएस खुखरी'
और 'कृपाण' दो समुद्री
पोतों को लगाया गया। दोनों पोत अपने मिशन पर 8 दिसम्बर को मुंबई से चले और 9 दिसम्बर की सुबह होने तक उस इलाक़े में पहुँच गए,
जहाँ पाकिस्तानी पनडुब्बी के होने का संदेह था।
टोह
लेने की लंबी दूरी की अपनी क्षमता के कारण पाकिस्तानी पनडुब्बी 'हंगोर' को पहले ही खुखरी और
कृपाण के होने का पता चल गया। यह दोनों पोत ज़िग ज़ैग तरीक़े से पाकिस्तानी
पनडुब्बी की खोज कर रहे थे। हंगोर ने उनके नज़दीक आने का इंतज़ार किया। पहला
टॉरपीडो उसने कृपाण पर चलाया, लेकिन टॉरपीडो उसके नीचे से
गुज़र गया और फटा ही नहीं। यह टॉरपीडो 3000 मीटर की दूरी से
दागा गया था। भारतीय पोतों को अब हंगोर की स्थिति का अंदाज़ा हो गया था। पीएनएस
हंगोर के पास विकल्प थे कि वह वहाँ से भागने की कोशिश करे या दूसरा टॉरपीडो दागे।
उसने दूसरा विकल्प चुना। पाकिस्तानी नौसेना के लेफ़्टिनेंट कमांडर तसनीम अहमद के
अनुसार- "मैंने हाई स्पीड पर टर्न अराउंड करके आईएनएस खुखरी पर पीछे से
प्रहार किया। डेढ़ मिनट की रन थी और टॉरपीडो खुखरी की मैगज़ीन के नीचे जाकर फटा और
दो या तीन मिनट के भीतर जहाज़ डूबना शुरू हो गया।"
आईएनएस खुखरी में
परंपरा थी कि रात आठ बजकर 45
मिनट के समाचार सभी इकट्ठा होकर एक साथ सुना करते थे, ताकि उन्हें पता रहे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है। समाचार शुरू
हुए ही थे कि पहले टारपीडो ने खुखरी को निशाना बनाया। जहाज़ के कप्तान महेन्द्रनाथ
मुल्ला अपनी कुर्सी से गिर गए और उनका सिर लोहे से टकराया और उनके सिर से रक्त बहने लगा। दूसरा धमाका
होते ही पूरे पोत की बिजली चली गई। महेन्द्रनाथ मुल्ला ने अपने सहकर्मी मनु शर्मा
को आदेश दिया कि वह पता लगाएं कि क्या हो रहा है। मनु ने देखा कि खुखरी में दो छेद
हो चुके थे और उसमें तेज़ी से पानी भर रहा था। उसके फ़नेल से लपटें निकल रही थीं।
उधर जब लेफ़्टिनेंट
समीर काँति बसु भाग कर ब्रिज पर पहुँचे,
उस समय महेन्द्रनाथ मुल्ला चीफ़ योमेन से कह रहे थे कि वह पश्चिमी
नौसेना कमान के प्रमुख को सिग्नल भेजें कि खुखरी पर हमला हुआ है। बसु इससे पहले कि
कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है, पानी उनके घुटनों तक पहुँच
गया था। लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। खुखरी का ब्रिज समुद्री सतह से
चौथी मंज़िल पर था, लेकिन मिनट भर से कम समय में ब्रिज और समुद्र का स्तर बराबर हो
चुका था।
मनु शर्मा और लेफ़्टिनेंट कुंदनमल
आईएनएस खुखरी के ब्रिज पर महेन्द्रनाथ मुल्ला के साथ थे। महेन्द्रनाथ मुल्ला ने
उनको ब्रिज से नीचे धक्का दिया। उन्होंने उनको भी साथ लाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इनकार
कर दिया। जब मनु शर्मा ने समुद्र में छलांग लगाई तो पूरे पानी में आग लगी
हुई थी और उन्हें सुरक्षित बचने के लिए आग के नीचे से तैरना पड़ा। थोड़ी दूर जाकर
मनु ने देखा कि खुखरी का अगला हिस्सा 80 डिग्री को कोण बनाते
हुए लगभग सीधा हो गया है। पूरे पोत मे आग लगी हुई है और महेन्द्रनाथ मुल्ला अपनी सीट
पर बैठे रेलिंग पकड़े हुए थे और उनके हाथ में अब भी जलती हुई सिगरेट थी।
इस समय भारत के 174 नाविक और 18
अधिकारी इस ऑपरेशन में मारे गए। कप्तान महेन्द्रनाथ मुल्ला ने भारतीय
नौसेना की सर्वोच्च परंपरा का निर्वाह करते हुए अपना जहाज़ नहीं छोड़ा और जल
समाधि ली। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत 'महावीर
चक्र' से
सम्मानित किया गया।