Saturday, June 15, 2019

आज का चिंतन : मोबाइल पर पूरी दुनिया की जानकारी रखने वालों, पड़ोसी का दरवाजा खटखटाइए,वो मर तो नहीं गया



दिल्ली में बुजुर्ग भाई-बहन की मौत ने समाज के गिरते मूल्यों की तरफ इशारा किया है। बीमारीलाचारी और अनदेखी से भाई बहन की मौत हो गई। लेकिन न तो परिवार नजदीक था, न समाज। महानगरीय जीवन में अकेलापन इस हदतक है कि परिवार दूर हो गया है।  भारत में यह पहली घटना नहीं है। हालांकि भारत जैसे देश में इस तरह की घटना सामान्य भी नहीं मान सकते हैंक्योंकि अभी भी समाज पश्चिमी मूल्यों की बजाए भारतीय मूल्यों को ज्यादा तरजीह देता है। लेकिन अब तो भारत में भी इस तरह की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही है जिसमें अकेले रहने वाले बुजुर्ग की सुध तब आती है जब उनके कमरे से उठने वाली बदबु आसपास के लोगों तक पहुंचे।
दिल्ली की यह घटना दिल झकझोर देती है। पड़ोसी बेखबर रहे। दिल्ली में बुजुर्ग चमनलाल और उनकी छोटी बहन राजकुमारी की मौत यही दिखाती है। 95 वर्ष के चमनलाल अपनी 80 वर्षीय छोटी बहन राजकुमारी देवी के साथ राणा प्रताप बाग इलाके में रहते थे। उनकी देखभाल उनकी बुजुर्ग हो चुकी बहन ही करती थी। अनुमान लगाया जा रहा है कि पहले बहन की मौत हो गई और उसके बाद भूख प्यास से लाचार भाई की मौत हो गई।

इन घटनाओं को किस चश्मे से देखेगा समाज 
राजकुमारी और चमन लाल की मौत भारत में इस तरह की पहली मौत नहीं हुई। अगस्त 2017 में एक आईटी प्रोफेशनल लड़के की मां मुंबई में अपने आलीशान फ्लैट में मृत पाई गई थी। बेटा अमेरिका में नौकरी करता था। एक साल बाद जैसे ही वो कमरे में आया, उसे हृदय विदारक दृश्य देखने को मिला। क्योंकि सामने उसकी मां का कंकाल था। मां की चार महीनें पहले मौत हो गई थी। किसी को पता भी नहीं चला था।

सितंबर 2017 में गुजरात के राजकोट  में संपन्न बेटे संदीप नाथवाणी ने अपनी बीमार मां जयश्रीबेन की सेवा से तंग आकर उन्हें चौथी मंजिल से धक्का देकर फेंक दिया था। अपराधी बेटा संदीप राजकोट के मेडकिल कॉलेज में असिसटेंट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत था।
भारत में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या और उनके खराब होते हालात
संयुक्त परिवार की टूट और खत्म होते भारतीय सांस्कतिक मूल्यों ने भारतीय समाज में बुजुर्गों की दशा और खराब की है। दिलचस्प बात है कि भारत में बुजुर्गों के साथ खराब व्यवहार में सबसे ज्यादा बेटे और बहू ही दोषी होते हैं। संयुक्त परिवार जब होता था तो परिवार में कोई न कोई व्यक्ति बुजुर्ग का ख्याल रखने वाले विचारों का होता था। लेकिन अब इसमे भारी बदलाव आया है। 

गैर-सरकारी संगठन हेल्पएज इंडिया के अध्ययन  के अनुसार आने वाले समय में यह समस्या और बढ़ेगी। देश के 23 शहरों में किए गए अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार 2011 की जनगणना के हिसाब से देश में कुल आबादी में बुजुर्गों की आबादी लगभग 8 प्रतिशत है। 2026 में आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 12.5 फीसदी तक पहुंच जाएगी। जबकि 2050 तक बुजुर्गों की हिस्सेदारी 20 फीसदी पहुंच जाएगी। एक अन्य संगठन एजवेल फाउंडेशन के अनुसार वृद्धजनों की हालात देश में अच्छी नहीं है। देश के अंदर लगभग आधे बुजुर्ग अपने बच्चों के दुव्यर्वहार से परेशान हैं। 

एकल परिवारों की बढ़ती अवधारणा ने इन हालात को काफी खराब किया है। बहुत सारे बुजुर्ग अकेले रहने को मजबूर हैं। बहुत सारे बुजुर्ग बच्चों के बीच रहते हुए अपमान का शिकार होते हैं। हालांकि इसके पीछे एक अहम भूमिका वित्तीय स्थिति की भी होती है।

यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (यूएनपीएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बुजुर्गों की बढ़ती तादाद और उनसे होने वाले दुर्व्यवहार भविष्य में एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। यूएनपीएफ के अनुसार वर्ष 2050 तक बुजुर्गों की आबादी बढ़कर 30 करोड़ तक पहुंच जाएगी।
तकनीकी क्रांति ने बुजुर्गों को लाभ नहीं, नुकसान पहुंचाया
तकनीकी क्रांति ने व्यक्ति और समाज के जीवन  सुलभ जरूर बनाया कराया। मोबाइल इंटरनेट ने लोगों को कई सुविधाएं दी। इससे दूर रहने वाले व्यक्ति से बातचीत आसान हो गया। वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिए लोग एक दूसरे से दूर रहते हुए भी नजदीक रहने लगे। लेकिन यह नजदीकी बुजुर्गों के काम नहीं आई। व्यक्ति को मोबाइल और इंटरनेट ने एकाकी बनाया है। हर व्यक्ति अपने आप में मशगूल है। इसका शिकार घर में रहने वाले बुजुर्ग भी हो गए हैंजिस परिवार की वित्तीय हालात ठीक है, जहां पांच लोग, दस लोग पल सकते है, वहां पर एकाकीपन ने बुजुर्गों की हालात खराब की है।

सामाजिकता के मूल्यों का क्षऱण हो गया है। जब अपने बच्चों को सही समय मोबाइल और इंटरनेट के कारण मां-बाप नहीं दे पाते हैं तो वे अपने बुजुर्ग माता-पिता को कितना समय देंगे, यही बात अब सामने आ रही है।

सच्चाई तो यह है कि सोशल मीडिया ने लोगों को सोशल नहीं बनाया, उसे एकाकी बनाया है, उसे स्वकेंद्रित बनाया है। कुछ अध्ययनों में तो यह भी पता चला है कि अच्छी वित्तीय स्थिति वाले घर परिवार के युवा सदस्य मोबाइलइंटरनेट औऱ सोशल मीडिया पर व्यस्तता के कारण अपने बुजुर्गों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं।
बुजुर्गों की खराब होती दशा और सरकारें
सरकारें भी बुजुर्गों की खराब होती दशा को लेकर गंभीर है। माता-पिता के देखभाल  के लिए समय-समय पर सरकारें दिशा-निर्देश जारी कर रही हैं। बुजुर्ग लोगों की देखभाल के लिए ओल्ड एज होम की संख्या बढ़ाने की भी कोशिश हो रही है। स्वयंसेवी संगठनों को भी इससे ज्यादा से ज्यादा जोड़ा जा रहा है। बुजुर्गो में बेसहारापन को लेकर कुछ राज्य सरकारें सख्त कानून की तरफ भी बढ़ रही हैं।

मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंटस एंड सीनियर सीटिजन्स एक्ट 2007 के तहत माता-पिता कानूनन अपने  बच्चों से भरण पोषण के लिए पैसे मांग सकते हैं। इसके लिए माता-पिता न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं।

उधर, बिहार सरकार बुजुर्ग माता-पिता की सेवा न करने पर बच्चों के लिए दंड का प्रावधान करने जा रही है। बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने बुजुर्ग माता-पिता की सामाजिक सुरक्षा के लिए कानून बनाने का फैसला लिया है।

इस कानून में बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करना बच्चों के लिए अनिवार्य होगा। ऐसा न करने पर उन्हें जेल भेजने का भी प्रावधान किया जाएगा। इससे जुड़े हुए कानून को हाल ही में कैबिनेट ने मंजूरी दी है। इस कानून के लागू होने के बाद अगर कोई माता-पिता अपने संतान की शिकायत करेंगे तो कानून अपने हिसाब से कार्रवाई करेगा। 

इससे पहले असम में राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए अपने माता-पिता के भरण पोषण को अनिवार्य बनाने संबंधी कानून बनाया गया था। प्रणाम नामक यह कानून के अनुसार अगर कोई कर्मचारी अपने माता-पिता औऱ दिव्यांग भाई बहन के भरण पोषण से इंकार करता है तो उसके वेतन का 10 से 15 फीसदी हिस्सा काटकर माता पिता या संबंधित भाई बहनों को दिया जाएगा। असम देश में इस तरह का कानून बनाने वाला पहला राज्य था। असम सरकार ने देश में बुजुर्गों की बढ़ती तादाद और संतानों द्वारा की जाने वाली उपेक्षा को लेकर यह कानून बनाया था। 

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