Thursday, June 13, 2019

त्रिभाषा फार्मूले से हिन्दी को हटाने का तेज हुआ विरोध


राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले से हिन्दी की अनिवार्यता खत्म किए जाने के सरकार के फैसले का विरोध शुरू हो गया है। विरोध के ये सुर नई शिक्षा नीति बनाने वाली कमेटी के बीच से ही उठे हैं। कमेटी के दो वरिष्ठ सदस्यों ने बगैर सहमति त्रिभाषा फॉमरूले से हंिदूी को हटाने पर विरोध जताया है। सरकार ने पिछले दिनों तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों में उठे विरोध को देखते हुए त्रिभाषा फॉमरूले से हिन्दी को हटा लिया था। मसौदे की अंतिम तिथि 30 जून है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने वाली कमेटी में शामिल वरिष्ठ सदस्य डॉ. कृष्ण मोहन त्रिपाठी ने कहा है कि नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉमरूले में हिन्दी को लंबी चर्चा और संवैधानिक पहलुओं को देखते हुए शामिल किया गया था। हालांकि कमेटी के कई सदस्य पहले से ही इसके विरोध में थे, लेकिन वह तथ्यों के आधार पर हुई चर्चा में इसे खारिज नहीं कर पाए। आखिर में उन्हें नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉमरूले में हंिदूी को शामिल करना ही पड़ा। पर सरकार को सौंपे गए नीति के अंतिम मसौदे में बगैर किसी चर्चा के बदलाव किया जाना समझ से पूरी तरह से परे है। दैनिक जागरणसे चर्चा में डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि इस त्रिभाषा फॉमरूले को 1986 में लोकसभा से मंजूरी दी गई थी। हमने सिर्फ इसे आगे बढ़ाया था। उन्होंने बताया कि इस संबंध में मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को पत्र लिख विरोध जताया है। नई शिक्षा नीति तैयार करने वाली कमेटी में शामिल एक अन्य वरिष्ठ सदस्य डॉ. आरएस कुरील ने दैनिक जागरणसे बातचीत में नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले से हिन्दी को हटाए जाने पर आपत्ति जताई है।


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