Thursday, June 13, 2019

शंघाई सहयोग संगठन (SCO)



शंघाई सहयोग संगठन (SCO)?
रूस, चीन, ताजिकिस्तान, कजाकस्तान और किर्गिस्तान 1996 में आपसी तालमेल और सहयोग को लेकर सहमत हुए थे. उस समय इसे शंघाई-5 के नाम से जाना जाता था. बाद में रूस और चीन के अलावा मध्‍य एशिया के चार देश कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के नेताओं ने जून 2001 में इस संगठन की शुरुआत की थी. इस संगठन का उद्देश्‍य नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निबटने और व्यापार-निवेश बढ़ाना था. एक तरह से एससीओ (SCO) अमेरिकी प्रभुत्‍व वाले नाटो का रूस और चीन की ओर से जवाब था.
मुख्यालय: सेंट पीटर्सबर्ग            
इसके अलावा आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी तथा साइबर सुरक्षा के खतरों आदि पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा करके आतंकवाद विरोधी और सैन्य अभ्यास में संयुक्त भूमिका निभाना भी इसके उद्देश्‍यों में शामिल था. इस समय यह संगठन विश्व की 40 प्रतिशत आबादी और जीडीपी के करीब 20 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाला बन गया है.
क्यों अहम है SCO?
·         इसे NATO को काउंटर करने वाले संगठन के तौर पर देखा जाता है
·         सदस्य देशों के बीच सुरक्षा सहयोग बढ़ाता है
·         आतंकवाद से निपटने खासकर IS आतंकियों से निपटने में मदद करता है
·         क्षेत्र में आर्थिक सहयोग बढ़ाना
भारत ऐसे बना सदस्‍य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद 2014 के सितंबर में भारत ने SCO की सदस्‍यता के लिए आवेदन किया. 2015 में रूस के उफ़ा में भारत को शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य का दर्जा मिलने का ऐलान हुआ. भारत के साथ पाकिस्‍तान भी इस संगठन का सदस्‍य बना. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने भारत और पाकिस्तान की सदस्यता मंजूर करने की घोषणा की थी.
इस समय SCO के सदस्‍य देश
इस समय एससीओ (SCO) के सदस्य देशों में रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं. 2017 में भारत और पाकिस्तान को एससीओ का पूर्णकालिक सदस्य का दर्जा दिया गया.
भारत के लिए SCO का महत्व
SCO का उद्देश्‍य आतंकवाद का खात्‍मा भी है. इसलिए भारत को आतंकवाद से निपटने और क्षेत्र में सुरक्षा एवं रक्षा से जुड़े विषयों पर अपनी बात रखने में आसानी होगी. शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य आतंकवाद को वित्तीय सहायता देने या आतंकवादियों के प्रशिक्षण से निपटने के लिए समन्वित प्रयास करने में सफल हो सकते हैं.
तेल व प्राकृतिक गैस के प्रचूर भंडार तक पहुंच
इस संगठन में शामिल मध्‍य एशियाई देशों के पास तेल और प्राकृतिक गैस के प्रचुर भंडार हैं. इससे भारत को मध्य-एशिया में प्रमुख गैस एवं तेल अन्वेषण परियोजनाओं तक व्यापक पहुंच मिलेगी. इसके अलावा, यह संगठन जलवायु परिवर्तन, शिक्षा, कृषि, ऊर्जा और विकास की समस्याओं को लेकर यह संगठन भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है.

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