Friday, May 25, 2018

दिल्ली: स्कूलों में सीसीटीवी कैमरा लगाने से फायदा नहीं, होंगे ये नुकसान


दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार 1028 सरकारी स्कूलों में 597 करोड़ की लागत से 1.50 लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने जा रही है। ये कैमरे हरेक क्लास और स्कूल के मैदान में लगाए जाएंगे। फुटेज का 30 दिनों का रिकॉर्ड रखा जाएगा। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि माता-पिता अपने बच्चों को क्लास में पढ़ते देख सकेंगे। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने से बच्चों को लगेगा कि उनकी जासूसी हो रही है और वे पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा सकेंगे। एक राय यह भी है कि जरा से फायदे के लिए जनता के छह अरब रुपये बर्बाद करना गलत है। कुछ दिन पहले मैं मुस्तफाबाद में दिल्ली सरकार के एक स्कूल में गया था। वहां आज भी 2000 बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ रहे हैं। एक क्लास रूम में दो क्लास चल रही हैं। आधे बच्चे एक तरफ और आधे दूसरी तरफ मुंह करके पढ़ रहे हैं। शौचालय, सफाई और पीने के पानी की व्यवस्था बेहद खराब है। खेल का मैदान है ही नहीं। ऐसे स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर मां-बाप को क्या दिखाया जाएगा? स्कूल की दुर्दशा क्या यूं ही नहीं दिखती?
दुरुपयोग की आशंका
इन सरकारी स्कूलों में ज्यादातर गरीब का बच्चा पढ़ता है, मेहनत-मजदूरी करने वालों का बच्चा पढ़ता है, और मजबूरी में पढ़ता है। उसकी जेब में थोड़ा भी पैसा हो तो वह पब्लिक स्कूल में चला जाएगा। लेकिन लगता है, दिल्ली सरकार पढ़ाई पर जोर न देकर सीसीटीवी पर जोर दे रही है, जैसे सारी समस्या इसी से सुलझ जाएगी। सीसीटीवी लगाकर आप यह पता कर सकते हैं कि मास्टर क्लास में आया या नहीं, बच्चे उद्दंडता तो नहीं कर रहे, क्लास में कोई गलत हरकत तो नहीं की जा रही? तो क्या दिल्ली सरकार मान रही है कि स्कूलों का यह हाल हो गया है कि बच्चों को पढ़ाने और उन पर निगाह रखने वाले शिक्षकों पर ही निगाह रखने की जरूरत पड़ गई है? क्या एक सीसीटीवी कैमरा प्रिंसिपल से ज्यादा काम कर सकता है? और अगर कोई टीचर सीसीटीवी में पढ़ाता हुआ न दिखाई दे या कक्षा से गायब हो तो क्या प्रिंसिपल में इतना दम है कि वह उस सीसीटीवी कैमरे की रिपोर्ट पर कार्रवाई कर सके? ऐसा हुआ तो बेचारा प्रिंसिपल पूरे स्कूल का चक्कर लगाने की जगह सीसीटीवी ही देखता रहेगा। सवाल है कि क्या ऐसी कोई रिपोर्ट तैयार की गई है या ऐसी शिकायतें आई हैं, जिनके कारण डेढ़ लाख सीसीटीवी लगाने पड़ रहे हैं?
अभी तक दिल्ली सरकार ने जिन भी स्कूलों के कुछ क्लास रूमों में सीसीटीवी कैमरे लगाए, वे सब के सब खराब पड़े हैं। लड़कियों की जिन क्लास में कैमरे लगाए जाएंगे, उनका किस तरह दुरुपयोग हो सकता है, बताने की जरूरत नहीं है। दिल्ली मेट्रो ने भी महिलाओं के डिब्बे में सीसीटीवी लगवाए थे, लेकिन बाद में बंद करा दिए। सन् 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने डांस बार में सीसीटीवी कैमरे लगाने के महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि ऐसा करना बार बालाओं की निजता का हनन होगा। अब स्कूलों के फुटेज का गलत इस्तेमाल नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है? यह पड़ताल की जाए कि जहां भी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, खास तौर पर सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक स्थानों में, उनमें से चल कितने रहे हैं, तो तस्वीर साफ हो जाएगी। मुझे याद है, एक बार संसद की स्टैंडिंग कमेटी की एक मीटिंग में बताया गया कि एयरपोर्ट पर कस्टम अधिकारी रिश्वत न लें या माल गायब न कर दें, इसकी निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए, पर अधिकारियों ने बताया कि उन सब कैमरों पर च्युइंगम लगा दी गई ताकि कोई पकड़ा न जा सके।
खुद मुख्यमंत्री केजरीवाल के विधानसभा क्षेत्र में जो सीसीटीवी कैमरे लगे थे वे सब खराब पड़े हैं और उनके रख-रखाव के खर्च और बिजली बिल के भुगतान को लेकर लड़ाई हो रही है। तो क्या सीसीटीवी से उनके क्षेत्र में भ्रष्टाचार दूर हुआ? दरअसल जिसको अपराध या अनुशासनहीनता करनी होगी वह सीसीटीवी को चलने ही नहीं देगा। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां सरकार द्वारा विभिन्न जगहों पर जो सीसीटीवी लगाए गए थे उन्हें असामाजिक तत्वों या अनुशासनहीनता करने वाले सरकारी कर्मचारियों ने तार काटकर, कैमरे का मुंह मोड़कर या च्यूइंगम लगाकर बेकार कर दिया। ऐसे उदाहरण हर जगह मिल जाएंगे जहां सरेआम अपराध का पता होने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई जैसे फुटपाथों और जमीनों पर कब्जे, अवैध निर्माण, खुले आम मटका, जुआ और वेश्यावृत्ति। इन पर कितनी लगाम लगी? अगर प्रशासन को बिना सीसीटीवी के दिखाई ही नहीं देता तो जहां खुलेआम अपराध हो रहे हैं वहां सीसीटीवी लगवाकर देख ले।
सुधरे बुनियादी ढांचा
सीसीटीवी कैमरे लगने के बाद संभव है कि लोग कैमरे की नजर से बचकर अपराध करें या अधिकारी और कर्मचारी सिर्फ उतना ही काम करें, जितना कैमरा देख रहा है। देखा गया है कि कई जगहों पर सीसीटीवी लगने के बाद सिपाहियों ने गश्त लगानी छोड़ दी है। सीसीटीवी से झगड़े कितने बढ़ेंगे इसका अंदाजा शायद हमें नहीं है। हर व्यक्ति कहेगा, चलो सीसीटीवी की फुटेज निकालो और फैसला करो। क्या दिल्ली सरकार को मालूम नहीं है कि इन 597 करोड़ रुपये के डेढ़ लाख सीसीटीवी कैमरों की निगरानी करने में प्रिंसिपल और अधिकारियों का कितना समय नष्ट होने वाला है? कुल मिलाकर स्कूलों के मामले में सीसीटीवी जादू की छड़ी कतई नहीं बन सकते। जितना पैसा सीसीटीवी पर लगाया जा रहा है, उतना यदि स्कूलों की बुनियादी सुविधाएं दुरुस्त करने में लगाया जाए तो जनता के पैसे का सही इस्तेमाल होगा और हमारे नौनिहालों का भविष्य भी संवरेगा।


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