Friday, May 11, 2018

पोखरण टेस्ट: अटल इरादों की मिसाल था परमाणु परीक्षण, दुनिया के सभी बड़े देशों के उड़ गए थे होश


परीक्षण के बाद प्रमुख देशों की नाराजगी की एक वजह यह भी थी कि भारत ने उनके सूचना तंत्र को नाकाम कर दिया था
वाजपेयी सरकार के समय 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में किए गए परमाणु परीक्षणों ने भारत की परमाणु शक्ति को रेखांकित करने के साथ ही दुनिया को चौंकाया भी था। इस परमाणु परीक्षण की कहानी खासी दिलचस्प है। इस कहानी की शुरुआत होती है 1996 से। उस वर्ष हुए आम चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया। 16 मई, 1996 को नई सरकार का गठन हुआ।
राव ने वाजपेयी को थमाई थी पर्ची
शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित निवर्तमान प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने हाथ से लिखी एक पर्ची वाजपेयी को थमाते हुए कहा कि इसे अकेले में पढ़िएगा। उसमें लिखा था, ‘एन पर कलाम से जल्द बात करें।अगले दिन वाजपेयी और कलाम की मुलाकात हुई। एन का मतलब न्यूक्लियर यानी परमाणु परीक्षण से था। वाजपेयी ने कलाम को हरी झंडी तो दिखा दी, लेकिन मात्र 13 दिन में ही उनकी सरकार गिर गई। यह वह दौर था जब वैज्ञानिक परमाणु परीक्षण के लिए अनुमति की प्रतीक्षा में थे। राव ने भी प्रधानमंत्री रहते समय इस प्रस्ताव पर चर्चा की थी, लेकिन सहमति नहीं बन पाई। इस बीच भारत में अमेरिकी राजदूत को इसकी भनक लग गई कि भारत परमाणु परीक्षण चाहता है। उन्होंने इस पर अमेरिकी आपत्ति से प्रधानमंत्री को अवगत कराया। हालांकि यह जांच का विषय है कि अमेरिकी राजदूत को इसकी भनक कहां से लगी?
वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने
बहरहाल बाद में प्रधानमंत्री बने एचडी देवगौड़ा ने भी वैज्ञानिकों की इसकी अनुमति दी, लेकिन उनकी सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल पाई। फिर 1998 में हुए चुनाव के बाद वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। 15 मार्च, 1998 की मध्यरात्रि को वाजपेयी ने कलाम को फोन कर यह सूचना दी कि वह उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने जा रहे हैं। लिहाजा वह सुबह नौ बजे आकर उनसे मिलें। कलाम ने अपने मित्रों से रायशुमारी कर फैसला किया कि वह सरकार में शामिल नहीं होंगे और इसके बजाय परमाणु परीक्षण की कवायद आगे बढ़ाएंगे।
सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने का दबाव
वाजपेयी ने उन्हें इसकी अनुमति देने के साथ ही शुभकामनाएं भी दीं। तब तक अमेरिका मान चुका था कि भारत ने परमाणु बम बना लिया है और वह उसका परीक्षण कभी भी कर सकता है। 14 अप्रैल, 1998 को नई दिल्ली दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने का दबाव डाला। तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि भारत अगले महीने ही परमाणु परीक्षण करने जा रहा है। फिर 11 मई यानी परमाणु परीक्षण का दिन आया। चूंकि उस दिन बुद्ध पूर्णिमा थी इसलिए वामपंथी इस पर सवाल उठाने लगे कि अहिंसा की प्रतिमूर्ति गौतम बुद्ध से जुड़े दिन को ही परमाणु परीक्षण के लिए क्यों चुना गया? तथ्य यह है कि राष्ट्रपति केआर नारायणन के विदेश दौरे से लौटने की प्रतीक्षा हो रही थी। वह 10 मई को स्वदेश लौटे। उनकी वापसी का इंतजार इसलिए किया गया ताकि परमाणु परीक्षण पर दूसरे देशों की प्रतिक्रिया के दौर में महामहिम स्वदेश में ही रहें।
भारत की आर्थिक नाकेबंदी की
पोखरण परीक्षण के बाद दुनिया के शक्तिशाली देशों ने गुस्से में भारत की आर्थिक नाकेबंदी की। वे इसलिए और नाराज थे, क्योंकि भारत ने उनके विकसित सूचना तंत्र को नाकाम कर अपना सफल परीक्षण कर लिया था। उस समय अमेरिका के चार जासूसी उपग्रह 24 घंटे पूरी दूनिया की निगरानी करते थे जिन पर उस समय अमेरिका 27 अरब डॉलर प्रति वर्ष खर्च करता था।
अमेरिकी प्रशासन ने सीआइए को जांच करने को कहा 
अमेरिका के जासूसी उपग्रह प्रत्येक तीन घंटे पर भारत के ऊपर से गुजरते थे। ऐसे में योजना बनाई गई कि जब वे पोखरण के ऊपर से गुजरने वाले हों तब परीक्षण स्थल पर धुआं कर दिया जाए ताकि अमेरिका को लगे कि लोग खाना पका रहे हैं। पोखरण परीक्षण के बाद गुस्साए अमेरिकी प्रशासन ने सीआइए को जांच करने को कहा था कि उसके जासूसी उपग्रहों को कैसे नहीं पता चला कि भारत परमाणु परीक्षण करने जा रहा है? परमाणु बम को मुंबई से जैसलमेर और फिर पोखरण तक पहुंचाना एक कठिन कार्य था। मुंबई पूरी रात जगी रहती है। सिर्फ रात में दो-तीन घंटे ही ही उसकी रफ्तार कुछ सुस्त पड़ती है। इसी दौरान भाभा आणविक शोध केंद्र से बिना किसी खास तामझाम के उसे हवाई अड्डे तक पहुंचाया गया। भाभा आणविक शोध केंद्र के तकनीकी निदेशक बीबी कुलकर्णी ने अपना नाम बदलकर विश्वनाथ कर लिया था। पोखरण जाते समय पत्नी से उन्होंने कहा था कि मैं एक सेमिनार में जा रहा हूं और मुझे 20 दिन तक फोन मत करना। इसी केंद्र के निदेशक अनिल काकोडकर के पिता का 10 मई को निधन हो गया था, लेकिन वह दाह संस्कार में शामिल होने के बाद बिना श्राद्धकर्म के ही पोखरण रवाना हो गए। कहा जाता है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने जनरल भागवत से पूछा था कि आपने हमें पहले क्यों नहीं बताया? क्या आपको मेरी देशभक्ति पर संदेह था? इस पर जनरल भागवत ने कहा था कि सर आपकी देशभक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता, लेकिन हमें पीएमओ ने हिदायत दी थी कि इसकी चर्चा किसी से भी नहीं करनी है।
पोखरण परीक्षण सही मायनों में एक सफल सर्जिकल स्ट्राइक 
भारत ने 11 मई के बाद 13 मई को भी परीक्षण किया। परीक्षण के लिए पहले सुबह नौ बजे का समय तय था, परंतु हवा का रुख पूर्व से पश्चिम की ओर होने के कारण परीक्षण को रोका गया। इस बीच अचानक हवा का रुख पश्चिम से पूर्व की तरफ हुआ और तीन बजकर 45 मिनट पर सफलतापूर्वक परीक्षण संपन्न होने के साथ ही भारत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हो गया। उस दौरान खुदाई के समय गलती से बुलडोजर एक बोल्डर से टकरा गया। बोल्डर लुढ़कते हुए सॉफ्ट की तरफ बढ़ा। अगर वह नहीं रुकता तो काफी नुकसान होता, लेकिन वह एक जगह पर जाकर अपने आप रुक गया। आधुनिक सूचना और खुफिया तंत्र में अपने को सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करने वाले पश्चिमी राष्ट्र 1998 में भारत की परमाणु परीक्षण योजना को भांपने में पूरी तरह नाकाम रहे। 11 मई 1998 का पोखरण परीक्षण सही मायनों में एक सफल सर्जिकल स्ट्राइक था। शास्त्री जी ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था और वाजपेयी ने उसमें जय विज्ञान जोड़कर उसे एक नया क्षितिज दिया।


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