Tuesday, April 11, 2017

मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चे कैसे बन रहे हैं एकांकी,जानें

मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चे कैसे बन रहे हैं एकांकी,जानें


आज की जीवनशैली में मोबाइल फोन का चलन बढ़ रहा है। हर उम्र के लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। स्मार्ट फोन चलाने में छोटे बच्चे तो बड़ों को भी मात दे रहे हैं। बचपन में खिलौने से खेलने और दोस्तों के साथ खेलने वाले बच्चे अब स्मार्टफोन को अपर्नी जिंदगी में शामिल कर रहे हैं। स्मार्टफोन का इस्तेमाल बच्चों की आदतों पर असर डाल रहा है। यह असर उनके बचपन पर सीधे तौर पर देखा जा सकता है। एक सर्वे के मुताबिक आमतौर पर 12 साल के लगभग 70 फीसदी बच्चे स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं अगर 14 साल के बच्चों को भी शामिल किया जाए तो यह आंकड़ा 90 फीसदी तक पहुंच जाता है। 13 साल की उम्र आम हो गई है। जिस उम्र के सभी बच्चों के पास स्मार्टफोन का होना साधारण सी बात है। इनमें से ज्यादातर बच्चे पूरे दिन में कम से कम डेढ सौ बार स्क्रीन देखते है। बच्चों में इस तरह की आदतों को जहां खूब सराहना मिल रही है वहीं दूसरी ओर समाज में इसके कुप्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं। इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर में यह आंकड़ा और ऊपर है।

बढ़ने लगती है आक्रामकता

बच्चे फोन पर गेम्स, फाइटर फिल्म आदि देखते हैं। जिससे उनमें आक्रामकता की भावना विकसित हो रही है। बच्चे परिवार में अपने भाई बहनों के साथ भी छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते हैं।

मस्तिष्क की क्षमता हो रही है कमजोर

साइकोलॉजिस्ट डा. सिंधू के मुताबिक बच्चों में मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से यादाश्त भी कमजोर हो रही है। बच्चों को गूगल सर्च करने की आदत हो जाती है। इससे उन्हें कुछ भी याद करने में समस्या होती है। बच्चों का ध्यान भी भटकता रहता है।

आउटडोर गेम्स से टूट रहा है नाता

गुरुग्राम की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट राधिका शर्मा के मुताबिक जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है। वे अपने दोस्तों की देखा देखी माता-पिता से इसकी मांग कर रहे हैं। बच्चों की टेक्नोलॉजी पर निर्भरता दिन पे दिन बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से बच्चों की कम्यूनिकेशन स्किल और इमोशनल डेवलपमेंट पर बुरा असर पड़ रहा है। स्मार्टफोन से वे स्मार्ट तो बन रहे हैं लेकिन अपने ही रिश्तों से दूर होते जा रहे हैं।

भावनात्मक रिश्ते हो रहे हैं कमजोर

मनोवैज्ञानिक उर्वशी के मुताबिक बच्चों में स्मार्ट फोन का बढ़ता चलन उन्हें परिवार के प्रति भावनात्मक रिश्तों को कमजोर कर रहा है। ऐसे में बच्चों को मां-बाप और परिवार के प्रति लगाव कम हो जाता है।
रेडिएशन से एक्सपोजर होता है। वह भी नुकसान पहुंचाता है। लगातार खेलने से बच्चे में एकाकीपन आ जाता है। ऐसे में वह अपने माता पिता से भी दूरी बनाने लगता है। यह समस्याएं लेकर माता पिता मेरे पास आते हैं।- डॉ. ब्रह्मदीर्प सधू, मनोचिकित्सक, गुरुग्राम
जहां भी यह स्मार्ट फोन हैं वहां संवेदनाएं व भावानात्मक लगाव कहीं पीछे छूटा है। छोटे बच्चों को फोन पकड़ाकर हम भावी पीढ़ी को पूरी तरह से भावनाहीन बनाने की दिशा में ले जा रहे हैं।

- उर्वशी, मनोवैज्ञानिक, गुरुग्राम

साभार दैनिकजागरण 

ensoul

money maker

shikshakdiary

bhajapuriya bhajapur ke