Wednesday, October 9, 2019

विश्व डाक दिवस 2019 : जानिए 178 साल पहले जारी किए गए सबसे पहले डाक टिकट का क्या था नाम ?



आज विश्व डाक दिवस है। हर साल 9 अक्टूबर को देश में विश्व डाक दिवस मनाया जाता है। विश्व डाक दिवस यूनिवर्सल पोस्टल यूनियनके गठन के लिए 9 अक्टूबर 1874 को स्विटजरलैंड में 22 देशों ने एक संधि की थी। उसके बाद से हर साल 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत एक जुलाई 1876 को यूनिवर्सल पोस्टल यूनियनका सदस्य बना था।
एक समय था जब डाक एक बहुत बड़ी जरूरत थी मगर बदलते समय के बाद अब इसकी महत्ता थोड़ी कम हुई है। एक बात और भी है कि आज के समय में भी डाक टिकटों के शौकीन लोग मौजूद है जिन्होंने हर तरह का डाक टिकट संग्रह करके अपने पास रखा हुआ है। डाक टिकटों से ही जुड़ी हुआ फ़िलाटेली यानी डाक-टिकट जमा एवं उसका अध्यन करने का शौक भी है। दुनिया में कई लोग इसके संग्रह में दिलचस्‍पी रखते हैं। सरकार हर महत्वपूर्ण अवसर पर डाक टिकट जारी करती है।
178 साल पहले जारी हुआ था दुनिया का पहला डाक टिकट

क्या आपको पता है कि दुनिया का पहला डाक टिकट कब जारी किया गया था, यदि आप नहीं जानते हैं तो हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं। दुनिया का पहला डाक टिकट 178 साल पहले जारी किया गया था। हालांकि, इसका पहला इस्तेमाल 6 मई 1840 को किया गया था। इस डाक टिकट का नाम था ब्लैक पेनी था। ये डाक टिकट ब्रिटेन में जारी किया गया था।
काले रंग के इस डाक टिकट पर महारानी विक्टोरिया का चित्र बना था। इसकी कीमत थी एक पेनी, जो ब्रिटेन की मुद्रा हुआ करती थी। उन दिनों एक पेनी के डाक टिकट से 14 ग्राम तक का पत्र किसी भी दूरी तक भेजा जा सकता था। दुनिया के इस पहले डाक टिकट का अविष्कार अंग्रेजी शिक्षक और समाज सुधारक रोलैंड हिल ने किया था। इस पहले डाक टिकट की 6.8 करोड़ प्रतियां छापी गईं थीं। ये टिकट करीब एक साल तक प्रचलन में रहा था। वर्ष 1841 में ब्लैक पेनी की जगह पेनी रेड टिकट ने ले ली थी।

भारतीय ध्‍वज का चित्र और जय हिंद 


क्या आपको पता है कि भारत का पहला डाक टिकट कब जारी किया गया था। भारत का पहला डाक टिकट 21 नवंबर 1947 को जारी हुआ था। इसका उपयोग केवल देश के अंदर डाक भेजने के लिए किया गया। इस पर भारतीय ध्‍वज का चित्र अंकित था और जय हिंद लिखा हुआ था। आजाद भारत का पहला डाक टिकट साढ़े तीन आना राशि यानी 14 पैसे का था। हालांकि, 15 अगस्‍त, 1947 को नेहरू जी ने आजादी के बाद लाल किले से अपने पहले भाषण का समापन जय हिंद से किया। उस वक्‍त डाकघरों को एक सुचना भेजी गई कि नए डाक टिकट आने तक, डाक टिकट चाहे अंग्रेजी सम्राट जॉर्ज की ही मुखाकृति की उपयोग में आए, लेकिन उस पर मुहर 'जय हिन्द' की लगाई जाए।
समय के साथ बदलता रहा टिकट का दाम, 'आना' से पहुंच गया 'रुपये' तक

आजाद भारत का पहले डाक टिकट का उपयोग केवल देश के अंदर डाक भेजने के लिए किया जाता था। इस पर भारतीय ध्वज का चित्र लगा हुआ था। डाक टिकट की यह राशि 1947 तक 'आना' में ही रही, जबकि रुपए की कीमत 'आना' की जगह बदल कर '100 नए पैसे' में कर दी गई। वैसे 1964 में पैसे के साथ जुड़ा 'नया' शब्द भी हटा दिया गया। 1947 में एक रुपया '100 पैसे' का नहीं बल्कि '64 पैसे' यानि 16 आने का होता था और इकन्नी, चवन्नी और अठन्नी का ही प्रचलन था। देश मे भेजे जाने वाली डाक के लिए पहले डाक टिकट पर अशोक के राष्ट्रीय चिन्ह का चित्र मुद्रित किया गया। इसकी कीमत डेढ़ आना थी। इसी तरह विदेश में भेजे जाने वाले पत्रो के लिए पहले डाक टिकट पर डीसी चार विमान का चित्र बना हुआ था, उसकी राशि बारह आना यानि 48 पैसे की थी। 
देश की हस्तियों के नाम पर जारी होते डाक टिकट 

आजाद भारत में महात्मा गांधी ऐसे पहले भारतीय थे, जिन पर डाक टिकट जारी किया गया था। देश में अब तक जितनी भी हस्तियों पर डाक टिकट जारी किए गए हैं, उनमें से सबसे ज्यादा टिकट महात्मा गांधी के नाम पर ही जारी हुए थे। भारत में अब तक कई लोगों के नाम पर डाक टिकट जारी हो चुके हैं। इसमें से कुछ डाक टिकट प्रचलन में नहीं आए। उन्हें केवल सम्मान स्वरूप प्रकाशित किया गया है।
तेंदुलकर पहले जीवित जिन पर डाक टिकट जारी

पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर का क्रिकेट में योगदान को देखते हुए उन पर एक टिकट जारी किया गया। वह देश के पहले ऐसे जीवित व्यक्ति है, जिन पर 14 नवंबर, 2013 को डाक टिकट जारी हुआ। 1947 में महात्मा गांधी के जीवित रहते उन पर डाक टिकट जारी की तैयारी थी, लेकिन किसी ने कहा टिकट आजादी के जश्न पर 15 अगस्त 1948 को जारी हो। गांधी की 30 जनवरी 1948 को मृत्यु हो गई।
57 करोड़ रुपये में बिका डाक टिकट 

न्यूयार्क में एक नीलामी के दौरान 19वीं शताब्दी के एक दुर्लभ डाक टिकट को 95 लाख डॉलर या करीब 57 करोड़ रुपये में बेचा गया। इस डाक टिकट को दक्षिण अमरीका के ब्रिटिश उपनिवेश ब्रिटिश गिआना ने जारी किया था। किसी भी डाक टिकट के लिए एक नया रिकॉर्ड बनाने के साथ ही ये वजन और आकार के लिहाज से दुनिया की सबसे महंगी वस्तु बन गया है। डाक टिकट मजेंटा या रानी रंग के कागज़ पर छपा है, इस पर एक तीन मस्तूलों वाला जहाज़ बना हुआ है और उपनिवेश का मोटो छपा है।
ये भी जानें

1- भारत का पहला सिंध डाक टिकट
एक जुलाई 1852 में कराची से जारी हुआ सिंध डाक टिकट एक कागज था। इस पर लाख का ठप्पा लगा होने से यह गलकर निकलने से ज्यादा दिन नहीं चल पाया।
2- विश्व का पहला डाक टिकट पैन ब्लेक
एक मई, 1840 को ग्रेट ब्रिटेन में जारी हुआ। महारानी के नाम से डाक टिकट जारी होने से बाद में इसे प्रतिबंधित कर दिया था। इसलिए यह काफी चर्चित रहा था।
3- देश में पहला टिकट
1947 में देश आजाद होने पर उसी साल 21 नवंबर को पहला टिकट जारी हुआ। इस पर जय हिंद व इंडिया लिखा था। कीमत साढ़े तीन आने थी।
डाक विभाग का सफर

वर्ष 1766 में यानी 252 साल पहले भारत में डाक व्यवस्था शुरू हुई। 
1774 में वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता में पहला डाकघर स्थापित किया था। 
1852 में भारत में पहली बार चिट्ठी पर डाक टिकट लगाने की शुरूआत हुई थी। 
01 अक्टूबर, 1854 को भारत में महारानी विक्टोरिया के चित्र वाला डाक टिकट जारी हुआ था। 
01 अक्टूबर, 1854 को भारत में एक विभाग के तौर पर डाक विभाग की स्थापना हुई थी। 
1.50 लाख से अधिक पोस्ट ऑफिस हैं भारत में। 89.87 फीसद पोस्ट ऑफिस ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। 
20 अगस्त 1991 को भारत में सबसे बड़ा डाक टिकट पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर जारी हुआ था। 
1516 में ब्रिटेन में डाक विभाग की स्थापना हुई थी, जिसे रॉयल मेल के नाम से जाना जाता है। 
1576 में फ्रांस में डाक विभाग की स्थापना हुई, जिसे ला पोस्ट एक के नाम से जाना जाता है। 
1775 में अमेरिकी डाक विभाग की स्थापना हुई, जिसे यूएस मेल के नाम से जाना जाता है। 
1882 में श्रीलंका में डाक विभाग की स्थापना हुई, जिसे श्रीलंका पोस्ट के नाम से जाना जाता है। 
1947 में पाकिस्तान में डाक विभाग की स्थापना हुई, जिसे पाकिस्तान पोस्ट के नाम से जाना जाता है।

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