देश के पहले इंजीनियरिंग कालेज की कहानी
हमारे देश में
इंजीनियरिंग सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले विषयों में से एक है। हजारों की संख्या
में इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जहां हर साल लाखों छात्र-छात्राएं दाखिला लेते हैं। साथ ही हर
साल भारत में लाखों विद्यार्थी इंजीनियर बनते हैं।
लेकिन क्या आपको पता है कि देश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत कब और कैसे हुई? क्या आप जानते हैं कि भारत का सबसे पहला इंजीनियरिंग संस्थान कौन सा है? यह एक रोचक किस्सा है। आज इंजीनियरिंग डे के मौके पर हम आपको इस बारे में बता रहे हैं।
लेकिन क्या आपको पता है कि देश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत कब और कैसे हुई? क्या आप जानते हैं कि भारत का सबसे पहला इंजीनियरिंग संस्थान कौन सा है? यह एक रोचक किस्सा है। आज इंजीनियरिंग डे के मौके पर हम आपको इस बारे में बता रहे हैं।
ये कहानी आज
से करीब 182 साल पहले की है, जब देश गुलामी की
जंजीरों में जकड़ा था। 1837-38 में आगरा में अकाल के कारण लाखों लोगों की जान गई थी। तब ईस्ट
इंडिया कंपनी को मेरठ-ईलाबाद जोन (तत्कालीन दोआब क्षेत्र) में सिंचाई व्यवस्था की
जरूरत महसूस हुई।
कर्नल कॉटले को
कैनाल बनाने का जिम्मा सौंपा गया। तब कॉटले ने उत्तर पश्चिमी राज्यों के
लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स थॉमसन को सलाह दी कि 'हमें स्थानीय लोगों को सिविल इंजीनियरिंग
की ट्रेनिंग देनी चाहिए।'
दूसरी ओर
कोलकाता से दिल्ली के लिए ग्रैंड ट्रंक रोड (GT Road) के निर्माण में भी कुशल इंजीनियरों की
जरूरत थी। तब अंग्रेजों को एक ऐसे संस्थान की जरूरत महसूस हुई, जहां ऐसे भारतीय
छात्रों को इंजीनियरिंग के हर ब्रांच से परिचित कराया जाए जिन्हें स्थानीय भाषा के
साथ-साथ अंग्रेजी भी आती हो और वे स्थानीय मौसम से परिचित हों।
1845 में गंगा कैनाल का निर्माण तेजी से हो रहा
था। कुशल कामगारों (इंजीनियरों) की जरूरत पूरी करने के लिए 1846 में एक टेंट
लगाकर 20 भारतीय छात्रों को
इंजीनीयरिंग की पढ़ाई के लिए दाखिला दिया गया। लेकिन अधिकारियों को समझ आया कि इस
पढ़ाई के लिए उचित इंफ्रास्ट्रक्चर की भी जरूरत है। इसी जरूरत ने देश के पहले
इंजीनियरिंग संस्थान की नींव रखी। आगे पढ़ें, कहां स्थापित हुआ वो पहला इंजीनियरिंग
संस्थान?
वो 20 छात्र सहारनपुर में
एक टेंट में शिक्षा ले रहे थे। फिर 23 सितंबर 1847 को थॉमसन ने तत्कालीन गवर्नर जनरल को
प्रस्ताव दिया कि इन छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए रूड़की में संस्थान बनाया
जाना चाहिए। इसका कारण बताया कि वह गंगा कैनाल के पास है और वहां सिविल
इंजीनियरिंग का प्रशिक्षण देने के लिए बड़ी कार्यशालाओं समेत पर्याप्त सुविधाएं
मौजूद हैं। आगे पढ़ें, क्या था उस संस्थान का नाम और आज उसे किस नाम से जानते हैं?
1847 में जब देश के पहले इंजीनियरिंग संस्थान की
स्थापना हुई, इसका नाम थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग रखा गया था। बाद में
इसका नाम बदलकर यूनिवर्सिटी ऑफ रूड़की रखा गया। आज पूरी दुनिया इसे इंडियन
इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रूड़की (IIT Roorkee) के नाम से जानती है।
साभार