Monday, May 20, 2019

इतिहास से छेड़छाड़: स्वाधीनता संग्राम हमारे इतिहास का गौरवशाली अध्याय है तो सावरकर उसके स्वर्णिम पृष्ठ हैं


इतिहास भूत होता है। सांस्कृतिक तत्व अनुभूत होता है। जो भूत में अपना रंगरोगन चढ़ाते हैं भूत इतिहास उन्हें माफ नहीं करता।
इतिहास अपरिवर्तनीय होता है। इतिहास का अर्थ है-ऐसा ही हुआ है।हम इतिहास से सबक लेकर वर्तमान व भविष्य संवार सकते हैं, लेकिन राजनीतिक जरूरतों के अनुसार इतिहास में बदलाव नहीं कर सकते। भारतीय इतिहास के साथ अक्सर ऐसा ही होता है। वामपंथी लेखकों ने इतिहास का विरुपण किया। कांग्रेस ने भी राजनीतिक जरूरतों के अनुसार अपनी सत्ता में इतिहास के साथ खिलवाड़ किया। स्वतंत्रता संग्राम के महायोद्धा विनायक दामोदर सावरकर एक बार फिर कांग्रेस का निशाना हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ समय पहले सावरकर का मजाक बनाया और कहा कि जेल से छूटने के लिए उन्होंने अंग्रेजी सत्ता से माफी मांगी थी।
राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने सामाजिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तक में सावरकर को वीर योद्धा बताने वाले भाग के संशोधन का निर्णय लिया है। इसमें जोड़ा गया है कि उन्होंने जेल से छूटने के लिए अंग्रेज सरकार से माफी मांगी थी। यह भी कि सावरकर ने गांधी जी की हत्या का षड्यंत्र किया था। बच्चों को सावरकर के बारे में अब यही झूठ पढ़ाया जाएगा, लेकिन राहुल गांधी और राजस्थान की कांग्रेस सरकार बड़ी भूल कर रहे हैं। सावरकर के निधन पर शोक संदेश में राहुल की दादी श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें असंख्य भारतवासियों का प्रेरणास्नोत, अद्भुत क्रांतिकारी, देशभक्त व भारत का महान व्यक्तित्वबताया था। सावरकर पर लांछन स्वाधीनता संग्राम के राष्ट्रवादी मूल्यों पर आक्रमण है।
स्वाधीनता संग्राम हमारे इतिहास का गौरवशाली अध्याय है। सावरकर इस इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ हैं। कांग्रेस उसी पर काली स्याही पोत रही है। मूलभूत प्रश्न है कि कांग्रेस सावरकर की प्रतिष्ठा गिराने के लिए उतावली क्यों है? क्या इसका कारण सावरकर का हिंदुत्व है? या वैदिक राष्ट्रवाद की उनकी धारणा है? स्वाधीनता संग्राम में सभी विचारधाराओं के लोग सम्मिलित थे। राष्ट्रवादी थे, क्रांतिकारी थे। सोशलिस्ट थे, उदारवादी भी थे। सबके अपने विचार थे। सबका समवेत ध्येय स्वतंत्रता थी।
सावरकर ने मुख्य रूप से यूरोप में भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का प्रसार किया था। उन्होंने स्वाधीनता का प्रथम संग्र्राम 1857’ पुस्तक लिखी। क्रांतिकारी गतिविधियों व पुस्तक से अंग्रजी सत्ता डर गई। उन्हें गिरफ्तार किया गया। भारत लाया गया। मुकदमा चला। वकील की अनुमति नहीं मिली। उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा दी गई। 1911 में पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल में बंद किया गया। जेल में अमानवीय अत्याचार हुए। खाना, पानी और दवा की सामान्य सुविधाएं भी नहीं दी गईं। वह नहीं टूटे। राष्ट्रनिष्ठ थे, क्रांतिकारी थे। भारत की स्वतंत्रता के स्वप्नद्रष्टा थे। कानून के जानकार बैरिस्टर थे, लेकिन अंग्र्रेजी सत्ता ही अभियोजन थी। वही गवाह वही न्यायालय।
क्षमा याचना का प्रश्न था ही नहीं। वह जेल की काल कोठरी में भी संघर्षरत रहे। उन्होंने जेल में भूख हड़ताल की। अन्य राजनीतिक बंदी भी उनके समर्थन में अनशन पर थे। उनके क्रांतिकारी स्वभाव से ब्रिटिश सत्ता फिर भयाक्रांत हुई। भारत मामलों के गृह विभाग के सदस्य क्रैडडाक 1913 में जेल आए। उन्होंने सावरकर, सुधीर कुमार सरकार, नंद गोपाल आदि से याचिका देने का अनुरोध किया।
क्रैडडाक ने सावरकर के बारे में लिखा कि उन्हें अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों पर कोई खेद नहीं है। क्षमायाचक नहीं है। वह विद्रोही भाव में रहे। सावरकर ने राजनीतिक बंदियों को याचिका का परामर्श दिया कि सत्ता के अनुसार वादा करो। यहां से निकलो और बाहर क्रांतिकारी गतिविधियां चलाओ। सचींद्र नाथ सान्याल ने यही किया। बाहर निकल क्रांतिकारी गतिविधियों में जुटे। काकोरी कांड उनकी योजना थी। सावरकर क्षमा याचना करते तो छूट जाते। उन्हें 1924 में सशर्त रिहा किया गया। वह लंबे समय तक घर में ही नजरबंद रहे। जैसे सावरकर का उत्पीड़न रौंगटे खड़े करने वाला है वैसे ही उनका आत्मविश्वास भी। उन्हें लांछित कर कोई सियासी लाभ नहीं मिलने वाला है। जनगणमन उन्हें स्वाधीनता संग्र्राम का नायक मानता है।
कांग्रेस ने सावरकर को लांछित करने का काम पहले भी किया है। 2003 में केंद्र में वाजपेयी सरकार ने संसद के केंद्रीय कक्ष में उनका चित्र लगाने का निर्णय किया। कांग्रेस सहित सभी गैर भाजपा दलों ने उस कार्यक्रम का बहिष्कार किया। चंद्रशेखर ही उसमें शामिल हुए। चित्र लगाने का निर्णय करने वाली समिति में प्रणब मुखर्जी व शिवराज पाटिल भी थे। विपक्ष के इस कृत्य की निंदा हुई। कांग्रेस नेता जयपाल रेड्डी ने वही आरोप दोहराए। कहा कि नि:संदेह सावरकर स्वाधीनता संग्र्राम सेनानी थे, लेकिन द्विराष्ट्रवादी भी थे।यह बात भी सच नहीं है?
उन्होंने हिंदू महासभा के कलकत्ता अधिवेशन (1939) में कहा था राष्ट्र कांग्रेस की छद्म राष्ट्रीयता की विचारधारा से मुक्त होकर स्वतंत्र होगा। हमें राष्ट्र की उस निरंतरता को नहीं तोड़ना है जो वैदिक काल से वर्तमान तक प्रवाहमान है।डॉ. आंबेडकर ने सावरकर की मुस्लिम नीति की प्रशंसा की थी। अपनी किताब में उन्होंने लिखा, ‘यह कहना सावरकर के प्रति अन्याय होगा कि मुसलमानों के बारे में उनका दृष्टिकोण नकारात्मक है।जिन्ना बेशक द्विराष्ट्रवादी थे। मुसलमानों को अलग राष्ट्र बताते थे। कुछ समय पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना के चित्र को लेकर बवाल हुआ था। जिन्ना भारत विभाजक थे, लेकिन जिन्ना के भारतीय पैरोकार विलाप में थे।
इतिहास के साथ छेड़खानी उचित नहीं होती। इतिहास क्षमा नहीं करता। वाजपेयी सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे राम नाइक सावरकर के प्रति अतिरिक्त संवेदनशील हैं। उन्होंने पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल में सावरकर की स्मृति अक्षुण्ण बनाने का निश्चय किया। नाइक के प्रस्ताव पर इंडियन ऑयल कारपोरेशन ने सारा काम पूरा कर लिया था। सावरकर के कथन वाली सुंदर पट्टिका भी लगी, लेकिन चुनावी घोषणा के साथ ही काम रुक गया। चुनाव में राजग हार गया। सावरकर विरोधी संप्रग सत्ता में आया। नए पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने उसे रोक दिया। सावरकर विरोध की जबरदस्ती का निराकरण जनता ने किया। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी। वही राम नाइक उत्तर प्रदेश के के राज्यपाल बने और उन्होंने 4 जुलाई 2015 को सावरकर की स्मृति में स्वतंत्र ज्योति व स्मृति पट्ट का शिलान्यास किया।
इतिहास को मनमाफिक ढालना असंभव है। इतिहास के नायक अपने तप बल से हमारी स्मृति का भाग बनते हैं। हम उन्हें याद कर यशोगान करते हैं। सावरकर ने देश के स्वाधीनता संग्र्राम को अपना खाका बनाया। अपनी राह चले। भारतीय राष्ट्रवाद का चिरंतन विचार रखा। यूरोपीय मिजाज वाले विद्वान 1857 के स्वाधीनता संग्र्राम को सिपाही विद्रोह कहते थे। सावरकर ने ग्रंथ लिखकर उसे प्रथम स्वाधीनता संग्राम बताया। सेलुलर जेल की स्मृतिका को मणिशंकर अय्यर जैसे मित्र उखाड़ सकते हैं। राजस्थान सरकार सावरकर के पराक्रम वाले अंश किताबों से हटा सकती है, लेकिन जनगणमन पहल करता है। मई 2016 में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अंडमान की सेलुलर जेल की वीर सावरकर ज्योति को राष्ट्रार्पित कर दिया है। इतिहास भूत होता है। सांस्कृतिक तत्व अनुभूत होता है। जो भूत में अपना रंगरोगन चढ़ाते हैं भूत इतिहास उन्हें माफ नहीं करता।



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