Wednesday, August 8, 2018

भारतीय ध्वज संहिता में तिरंगे से जुड़े ये कानून जानना भी है आवश्यक

'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा' का नारा स्वातंत्रता के महानायक बाल गंगाधर तिलक ने दिया था। उनके जीवन काल में तो न सही लेकिन ये अधिकार देश को 15 अगस्त, साल 1947 को मिला। भारत की स्वतंत्रता के कुछ दिन पहले 22 जुलाई, साल 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक में देश के राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया। उसी दिन से हमारा राष्ट्रीय ध्वज देश के लिए गौरव का प्रतीक बना हुआ है। हर स्वतंत्रता दिवस पर देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा फहराते हैं। लेकिन क्या आप राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े कानूनों के बारे में जानते हैं? आज हम उन्हीं कानूनों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। जिन्हें भारतीय ध्वज संहिता-2002 में वर्णित किया गया है। इसे 26 जनवरी, साल 2002 को लागू किया गया था। इसमें तिरंगे को फहराने से संबंधित कुछ नियमों के बारे में बताया गया है।
इसे सुविधा के लिए तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के बारे में बताया गया है। वहीं संहिता के तीसरे भाग में केंद्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है।

ध्वज को फहराने से संबंधित नियम

राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान देने की प्ररणा के लिए उसे शैक्षिक संस्थानों में फहराया जाना चाहिए।

- विद्यालयों में ध्वज आरोहण में निष्ठा की एक शपथ को भी शामिल किया गया है।

- किसी सार्वजनिक, निजी संगठन और शैक्षिक संस्थान के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का प्रदर्शन सभी दिनों, अवसरों, आयोजनों मान सम्मान देने के लिए फहराया जा सकता है।

- संहिता की धारा 2 में देश के सभी नागरिकों को अपने परिसर में ध्वज फहराने का अधिकार दिया गया है।
- जहां भी तिरंगा लहराया जाए वहां से वह स्पष्ट दिखाई देना चाहिए और उसे सम्मानपूर्वक स्थान दिया जाना चाहिए।

- सरकारी भवनों पर झंडा रविवार और अन्य छुट्टियों के दिनों में सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जा सकता है। विशेष अवसरों पर इसे रात के वक्त भी फहराया जा सकता है।

- तिरंगे को हमेशा सफूर्ति के लहराया जाना चाहिए और धीरे-धीरे आदर के साथ उतारा जाना चाहिए।

- जब तिरंगे को किसी भवन की खिड़की, बालकनी या फिर अगले हिस्से से आड़ा या तिरछा फहराया जाए तो बिगुल की आवाज के साथ फहराया और उतारा जाना चाहिए।

- तिरंगे का प्रदर्शन सभा मंच पर किया जाता है। उसे इस प्रकार फहराया जाना चाहिए कि जब वक्ता का मुंह श्रोताओं की ओर हो तो तिरंगा दाहिने ओर हो।

- झंडा अगर किसी अधिकारी की गाड़ी पर लगाया जाता है तो उसे सामने की ओर बीचोंबीच या कार के दाईं ओर लगाया जाना चाहिए।

- झंडा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ही आधा झुका हुआ होना चाहिए।

क्या नहीं करना चाहिए

- सांप्रदायिक लाभ, पर्दों या वस्त्रों के रूप में तिरंगे का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

- जहां तक संभव हो सके इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।

- तिरंगे को आशय पूर्वक धरती, जमीन या पानी से स्पर्श नहीं कराना चाहिए।

- तिरंगे को वाहनों के ऊपर, बगल और पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता है।

- ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।

- फटा या फिर मैला झंडा नहीं फहराया जाना चाहिए।

- किसी दूसरे तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचा या फिर उससे ऊपर नहीं लहराया जाना चाहिए और न ही उसके बराबर रखा जाना चाहिए।

- झंडे पर कुछ लिखा या फिर छपा हुआ नहीं होना चाहिए।

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