आज
यदि शासन की तमाम व्यवस्थाओं के बीच सबसे अधिक
सम्मान प्रजातंत्र को दिया जाता है तो इसका कारण यह है कि समानता और स्वतंत्रता
जैसे मूल्य इसकी बुनियाद में ही हैं। यूरोप का औद्योगिक समाज हो या भारत का कृषि
समाज, सभी अपनी शासन व्यवस्था को दूसरी शासन व्यवस्थाओं से
बेहतर बताते हैं तो इसलिए भी कि ये सभी अपने नागरिकों को समानता के साथ स्वतंत्रता
प्रदान करने का दावा करते हैं। भारतीय गणराज्य के संविधान की प्रस्तावना और
भाग-तीन में रखे गए मौलिक अधिकारों में इन्हें सुनिश्चित किया गया है। लेकिन क्या
कोई देश केवल संवैधानिक व्यवस्था के द्वारा अपने नागरिकों को स्वतंत्रता और समानता
का अधिकार प्रदान कर सकता है? देश में एक हद तक
सामाजिक-आर्थिक समानता सुनिश्चित किए बगैर ये मूल्य सुनिश्चित नहीं किए जा सकते।
असमान समाज में समानता की कल्पना भी दूर की बात है।
बढ़ते हुए
करोड़पति
सामाजिक-आर्थिक विषमताएं ऐतिहासिक रूप से भारतीय समाज में मौजूद थीं और स्वतंत्र भारत को विरासत में मिलीं। हमारे नेतृत्व वर्ग को इसका अहसास था और उन्होंने इसके अनुरूप कार्य भी किया। 1956 का जमींदारी उन्मूलन इसी आर्थिक असमानता को मिटाने की दिशा में उठाया गया कदम था। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक-आर्थिक समानता लाने के लिए ही की गई। ऐसे ईमानदार प्रयास समानता पर आधारित प्रजातंत्र अर्जित करने के लिए ही किए गए थे। लेकिन आजादी के लगभग सत्तर साल बाद क्या असमानता को हटाया जा सका है? क्या संवैधानिक व्यवस्था और आरक्षण के बाद भी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग समाज में बराबरी का अनुभव कर पा रहे हैं? क्या समाज की आर्थिक असमानताएं कम होने की ओर बढ़ रही हैं? सचाई यह है कि पिछले सत्तर सालों में आर्थिक असमानताएं बढ़ती ही गई हैं। इसे समाज के लगभग सभी क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
सामाजिक-आर्थिक विषमताएं ऐतिहासिक रूप से भारतीय समाज में मौजूद थीं और स्वतंत्र भारत को विरासत में मिलीं। हमारे नेतृत्व वर्ग को इसका अहसास था और उन्होंने इसके अनुरूप कार्य भी किया। 1956 का जमींदारी उन्मूलन इसी आर्थिक असमानता को मिटाने की दिशा में उठाया गया कदम था। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक-आर्थिक समानता लाने के लिए ही की गई। ऐसे ईमानदार प्रयास समानता पर आधारित प्रजातंत्र अर्जित करने के लिए ही किए गए थे। लेकिन आजादी के लगभग सत्तर साल बाद क्या असमानता को हटाया जा सका है? क्या संवैधानिक व्यवस्था और आरक्षण के बाद भी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग समाज में बराबरी का अनुभव कर पा रहे हैं? क्या समाज की आर्थिक असमानताएं कम होने की ओर बढ़ रही हैं? सचाई यह है कि पिछले सत्तर सालों में आर्थिक असमानताएं बढ़ती ही गई हैं। इसे समाज के लगभग सभी क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
समाज के एक प्रतिशत लोगों के पास देश की संपत्ति का लगभग तिहत्तर
प्रतिशत हिस्सा है। इसी वर्ग का अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण है। इनमें से अधिकतर
खानदानी तौर पर संपत्ति के स्वामी रहे हैं। इस असमानता को राजनीति के क्षेत्र में
भी देखा जा सकता है। इसे पहली लोकसभा के सदस्यों की आर्थिक स्थिति और 2014 की लोकसभा के सदस्यों की आर्थिक स्थिति में देखा जा सकता है। संसद से लेकर
राज्य विधानसभा के सदस्यों में करोड़पतियों की संख्या अभूतपूर्व गति से बढ़ी है।
प्रजातंत्र के इन नए प्रतिनिधियों के पास अपनी जेब से चुनाव को प्रभावित करने की
क्षमता है। इस प्रकार जनता और उनके प्रतिनिधियों के आर्थिक आधार की भिन्नता ने
दोनों को एक-दूसरे से दूर कर दिया है। गरीब जनता के अमीर प्रतिनिधियों से
प्रजातंत्र में कितनी अपेक्षा रखी जा सकती है?
महत्वपूर्ण यह है कि ये जिनके प्रतिनिधि हैं, उनकी हालत आज भी बदतर है। विकास का लाभ उन्हें जरूर मिला है पर उतना नहीं,
जितना औद्योगिक घरानों से जुड़े एक प्रतिशत पूंजीपतियों को मिला है।
फोर्ब्स की पिछली रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले चार दशकों में एक प्रतिशत
जनसंख्या की देश की पूंजीगत हिस्सेदारी में 7 से 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि पचास प्रतिशत लोगों की हिस्सेदारी जो 1980
में 23 प्रतिशत थी, घटकर
2014 में 15 प्रतिशत रह गई। इतना ही
नहीं, 1995 में भारत में सिर्फ दो अरबपति थे, लेकिन यह संख्या अब 100 के आस-पास पहुंच गई है। एक
तरफ विकास की यह दिशा है, दूसरी तरफ एक चौथाई से एक तिहाई के
बीच लोग भयंकर गरीबी का सामना कर रहे हैं। लगभग एक प्रतिशत करोड़पतियों को छोड़
दिया जाए तो देश के लगभग 80 करोड़ लोग मध्य वर्ग या निम्न
मध्य वर्ग में माने जा सकते हैं।
आर्थिक असमानता का असर देश की राजनीति पर भी पड़ा है। देश की गरीब
जनता अपने करोड़पति प्रतिनिधियों को संसद और विधानसभाओं में भेजने को मजबूर है। एक
विद्वान ने कहा है कि जो वर्ग आर्थिक उत्पादन की प्रक्रिया को निर्धारित करता है, वही मानसिक उत्पादन की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। भारत का धनी वर्ग
पूरे समाज को नचा रहा है। इस तरह आर्थिक आधार पर पूरा देश साफ तौर पर विभाजित है।
दोनों वर्गों के बीच कहीं भी कोई साझा मूल्य नहीं है। धनी वर्ग समाज का प्रथम
श्रेणी का नागरिक है जबकि बाकी लोग दूसरे-तीसरे दर्जे में आते हैं। आर्थिक असमानता
के साथ सामाजिक असमानताएं भी बढ़ती रही हैं। पिछले सत्तर सालों में जाति आधारित
भेदभाव दूर करने के लिए हमने केवल आरक्षण देने जैसा कदम उठाया। यह सामाजिक असमानता
को दूर करने का एक माध्यम जरूर है लेकिन और कदम उठाए जाने भी जरूरी थे। यह असमानता
हिंदुओं में ही नहीं मुसलमानों में भी है। लैंगिक असमानता आर्थिक असमानता की ही
तरह जाति, धर्म आदि से अलग है। जाति, धर्म
से जुड़ने के बाद यह और भी विशिष्ट होकर सामने आती है।
सत्तर वर्षों
में
यह असमानता भी उसी प्रकार बनी हुई है। हां, इधर कुछ विमर्श जरूर बढ़ा है। औरतों को संपत्ति में अधिकार देकर लैंगिक असमानता दूर करने की कोशिश चल रही है। परन्तु क्या यह पर्याप्त है? आधी आबादी का लगभग आधा हिस्सा कहां है? अभी तो कुछ राज्यों में यह फासला घटाने के लिए ही संघर्ष चल रहा है। प्रजातंत्र की बुनियाद स्वतंत्रता और समानता है। असमानता स्वतंत्रता को संकुचित करती है और कई बार अभिशप्त भी। आजादी के सत्तर वर्षों में भारत समानता अर्जित करने में विफल रहा है। प्रजातंत्र के सभी स्तंभों पर आर्थिक रूप से मजबूत लोगों का कब्जा दिनोंदिन और मजबूत होता गया है। वास्तविक प्रजातंत्र लाने के लिए इसे दूर करना जरूरी है। सामाजिक-आर्थिक असमानता मिटाए बिना सही अर्थों में लोकतंत्र स्थापित नहीं किया जा सकता।
यह असमानता भी उसी प्रकार बनी हुई है। हां, इधर कुछ विमर्श जरूर बढ़ा है। औरतों को संपत्ति में अधिकार देकर लैंगिक असमानता दूर करने की कोशिश चल रही है। परन्तु क्या यह पर्याप्त है? आधी आबादी का लगभग आधा हिस्सा कहां है? अभी तो कुछ राज्यों में यह फासला घटाने के लिए ही संघर्ष चल रहा है। प्रजातंत्र की बुनियाद स्वतंत्रता और समानता है। असमानता स्वतंत्रता को संकुचित करती है और कई बार अभिशप्त भी। आजादी के सत्तर वर्षों में भारत समानता अर्जित करने में विफल रहा है। प्रजातंत्र के सभी स्तंभों पर आर्थिक रूप से मजबूत लोगों का कब्जा दिनोंदिन और मजबूत होता गया है। वास्तविक प्रजातंत्र लाने के लिए इसे दूर करना जरूरी है। सामाजिक-आर्थिक असमानता मिटाए बिना सही अर्थों में लोकतंत्र स्थापित नहीं किया जा सकता।