Monday, May 27, 2019

सैयद वंश



सैयद वंश अथवा सय्यद वंश दिल्ली सल्तनत का चतुर्थ वंश था जिसका कार्यकाल 1414 से 1451 तक रहा। उन्होंने तुग़लक़ वंश के बाद राज्य की स्थापना की और लोधी वंश से हारने तक शासन किया।
यह परिवार सैयद अथवा मुहम्मद के वंशज माने जाता है। तैमूर के लगातार आक्रमणों के कारण दिल्ली सल्तनत का कन्द्रीय नेतृत्व पूरी तरह से हतास हो चुका था और उसे 1398 तक लूट लिया गया था। इसके बाद उथल-पुथल भरे समय में, जब कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी, सैयदों ने दिल्ली में अपनी शक्ति का विस्तार किया। इस वंश के विभिन्न चार शासकों ने 37-वर्षों तक दिल्ली सल्तनत का नेतृत्व किया।
इस वंश की स्थापना ख़िज्र खाँ ने की जिन्हें तैमूर ने मुल्तान (पंजाब क्षेत्र) का राज्यपाल नियुक्त किया था। खिज़्र खान ने 28 मई 1414 को दिल्ली की सत्ता दौलत खान लोदी से छीनकर सैयद वंश की स्थापना की। लेकिन वो सुल्तान की पदवी प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाये और पहले तैम्मूर के तथा उनकी मृत्यु के पश्चात उनके उत्तराधिकारी शाहरुख मीर्ज़ा(तैमूर के नाती) के अधीन तैमूरी राजवंश के रयत-ई-अला (जागीरदार) ही रहे। ख़िज्र खान की मृत्यु के बाद 20 मई 1421 को उनके पुत्र मुबारक खान ने सत्ता अपने हाथ में ली और अपने आप को अपने सिक्कों में मुइज़्ज़ुद्दीन मुबारक शाह के रूप में लिखवाया। उनके क्षेत्र का अधिक विवरण याहिया बिन अहमद सरहिन्दी द्वारा रचित तारीख-ए-मुबारकशाही में मिलता है। मुबारक खान की मृत्यु के बाद उनका दतक पुत्र मुहम्मद खान सत्तारूढ़ हुआ और अपने आपको सुल्तान मुहम्मद शाह के रूप में रखा। अपनी मृत्यु से पूर्व ही उन्होंने बदायूं से अपने पुत्र अलाउद्दीन शाह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
इस वंश के अन्तिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह ने स्वेच्छा से दिल्ली सल्तनत को19 अप्रैल 1451 को बहलूल खान लोदी के लिए छोड़ दिया और बदायूं चले गये। वो 1478 में अपनी मृत्यु के समय तक वहाँ ही रहे।
शासक
ख़िज़्र खाँ (1414-1421)
मुबारक़ शाह (1421-1434)
मुहम्मद शाह (1434-1445)

आलमशाह शाह (1445-1457)
ख़िज्र खाँ
खिज्र खाँ, सैयद वंश के संस्थापक थे। वो फिरोजशाह तुगलक के अमीर मलिक मर्दान दौलत के दतक पुत्र सुलेमान का पुत्र थे। तैमूर ने वापस लौटते समय उन्हें रैयत-ए-आला की उपाधि के साथ मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर का शासक नियुक्त किया था। उन्होंने तैमूर वंश की सहायता से दिल्ली की सत्ता सन् 1414 में प्राप्त की और जीवन भर रैयत-ए-आला की उपाधि के साथ सन्तुष्ट रहे। उन्हें तैमूर ने भारत में अपने प्रतिनिधि के रूप में मुल्तान में नियुक्त कर रखा था। सन् 1401 में मुल्तान से सेना लेकर उन्होंने तुगलक वंश पर हमला किया और छः माह में रोहतक पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इस समय दिल्ली सल्तनत पर मोहम्मद शाह तुगलक का शासन था। सन् 1413 में मोहम्मद शाह का निधन हो गया। मोहम्मद शाह के कोई पुत्र नहीं था और न ही पहले से कोई तुगलक उत्तराधिकारी घोषित था अतः दिल्ली में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई। इस समय के लिए दौलत खान लोदी को दिल्ली की सता सौंपी गयी। मार्च 1414 में खिज्र खाँ ने दिल्ली पर हमला कर दिया और चार माह में जीत दर्ज करते हुये दिल्ली पर अपना शासन आरम्भ कर दिया।
मुबारक शाह
खिज्र खाँ की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनका पुत्र मुबारक शाह ने दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में ली। अपने पिता के विपरीत उन्होंने अपने आप को सुल्तान के रूप में घोषित किया।
मुहम्मद शाह
मुबारक शाह की मृत्यु के बाद मुहम्मद शाह ने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। उनका शासनकाल 1434 से 1445 तक रहा।

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