भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के लिए भाषाविदों ने केंद्र और राज्य सरकारों को जिम्मेदार बताया। डॉ. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पणिनी सभागार में शुक्रवार को अंग्रेजी हटाओ, भारतीय भाषा बचाओ सम्मेलन में जुटे विशेषज्ञों ने कहा, देश का विकास तभी होगा, जब शिक्षा हमें मातृभाषा में मिलेगी।
मध्यप्रदेश से आए अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच के प्रो.अनिल सदगोपाल ने कहा कि ये हमारे देश की विडम्बना है कि आज हमें भारतीय भाषाओं को राजकाज की भाषा बनाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है। अंग्रेजी को बढ़ाने के लिए सरकारें जो तत्परता दिखा रही हैं उसके पीछे कॉरपोरेट जगत काम कर रहा है।
जेएनयू विवि के पूर्व अध्यक्ष व प्रोफेसर आनंद कुमार ने कहा कि अंग्रेजी के आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी। उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं को स्थान दिलाने में अहम रोल निभाने व लंबे समय से लड़ाई लड़ने वाले श्यामरूद्र पाठक ने कहा कि ऐसी आजादी से गुलामी बेहतर है। हमें इतना भी अधिकार नहीं की हम अपनी भाषा में उच्च शिक्षा ग्रहण कर सकें। जिस देश की अपनी भाषा न हो वह देश शैक्षिक विकलांगता से ऊपर नहीं उठ सकता। आज जितने भी विकसित देश है उसका सबसे बड़ा कारण उनकी भाषा है। हमारी सोच अपनी मातृ भाषा विकसित होती है अंग्रेजी में नहीं।
अध्यक्षता कर रहे पंजाब से आये जोगा सिंह ने अंग्रेजी भाषा को भारतीय पूंजी लूटने वाली भाषा बताया। डॉ. प्रसन्ना ने कहा कि यदि यंत्र सभ्यता का बहिष्कार किया जाय तो अंग्रेजी से निजात पाई जा सकती हैं। कर्नाटक का लिंगायत आंदोलन किसी जाति धर्म से प्रेरित नहीं था बल्कि यह आंदोलन कन्नड़ भाषा का आंदोलन था। सुनील सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि भाषा की लड़ाई में हम बहुत पीछे रहे गये हैं। जरूरत है तो सही दिशा में आगे बढ़ने की । संचालन संयोजक अफलातून ने व धन्यवाद ज्ञापन विजेंद्र मीणा ने किया। सम्मेलन में मुख्यरूप से समाजवादी विचारक विजय नारायण, विजय शंकर पांडेय, प्रो.महेश विक्रम सिंह, प्रो.सुरेन्द्र सिंह, प्रो. योगेन्द्र सिंह, डॉ.स्वाति, डॉ.नीता चौबे, डॉ. चित्रा सहस्त्रबुद्धे, चौधरी राजेन्द्र आदि उपस्थित थे।
तय किया गया कार्यक्रम
सम्मेलन के बाद विजय नारायन की अध्यक्षता में प्रस्तावों पर विचार करने व संघर्ष के कार्यक्रमों की रुपरेखा तय की गई। पारित प्रस्ताव में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अंग्रेजी माध्यम के पांच हजार प्राथमिक विद्यायल खोलने के निर्णय के खिलाफ दो अप्रैल को लहुराबीर स्थित आजाद पार्क में धरना देने का निर्णय लिया गया। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी संस्कृति के खिलाफ चल रहे आंदोलनों के लिए राष्ट्रीय स्तर का संघर्ष मंच बनाने का निश्चय किया गया।
सम्मेलन के बाद विजय नारायन की अध्यक्षता में प्रस्तावों पर विचार करने व संघर्ष के कार्यक्रमों की रुपरेखा तय की गई। पारित प्रस्ताव में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अंग्रेजी माध्यम के पांच हजार प्राथमिक विद्यायल खोलने के निर्णय के खिलाफ दो अप्रैल को लहुराबीर स्थित आजाद पार्क में धरना देने का निर्णय लिया गया। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी संस्कृति के खिलाफ चल रहे आंदोलनों के लिए राष्ट्रीय स्तर का संघर्ष मंच बनाने का निश्चय किया गया।