इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अल्पसंख्यक
शिक्षण संस्थानों में एडमिशन के लिए प्रदेश सरकार द्वारा नीति बनाए जाने को वाजिब
माना है। अदालत ने इस संबंध में सरकार के 15 मई 2017 के शासनादेश को भी सही माना है। इस शासनादेश में
सरकार ने साफ किया था कि अल्पसंख्यक संस्थानों की 50 प्रतिशत सीटों पर संस्थान एडमिशन देंगे और बाकी 50 प्रतिशत पर
प्रदेश सरकार केंद्रीयकृत प्रवेश परीक्षा करवाकर एडमिशन देगी।
इस शासनादेश को चुनौती देते हुए लखनऊ के इरम गर्ल्स डिग्री
कॉलेज, सैयद आयशा
जाहिर मेमोरियल संस्थान, मनमीत शैक्षिक कल्याण सोसाइटी और एलएमएस शिक्षक
प्रशिक्षण संस्थान ने याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि ये संस्थान भारत के
संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत स्थापित किए गए थे। इन्हें ये शिक्षण संस्थान
संचालित करने का अधिकार है, ऐसे में प्रदेश सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
ये गैर सरकारी सहायता प्राप्त संस्थान हैं। इन्हें अपनी बीटीसी (अब डीएलएड) सहित विभिन्न प्रोफेशनल कोर्सेज की सीटों को खुद ही भरने के लिए विज्ञापन जारी करने और अल्पसंख्यक वर्ग के योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश देने की अनुमति है। संस्थानों का कहना था कि उनके अल्पसंख्यक स्वरूप में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकता। याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस दयाशंकर त्रिपाठी की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया है।
ये गैर सरकारी सहायता प्राप्त संस्थान हैं। इन्हें अपनी बीटीसी (अब डीएलएड) सहित विभिन्न प्रोफेशनल कोर्सेज की सीटों को खुद ही भरने के लिए विज्ञापन जारी करने और अल्पसंख्यक वर्ग के योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश देने की अनुमति है। संस्थानों का कहना था कि उनके अल्पसंख्यक स्वरूप में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकता। याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस दयाशंकर त्रिपाठी की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया है।
2006 के एक्ट में सरकार को अधिकार
हाईकोर्ट ने कहा कि गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान संबंधित
प्रोफेशनल कोर्स में खुद ही सीधे एडमिशन नहीं दे सकते। प्रदेश सरकार ने मई 2017 और अन्य शासनादेशों के तहत 50 प्रतिशत सीटों पर दाखिले के लिए
केंद्रीयकृत एडमिशन व्यवस्था शुरू की है, जो सिंगल विंडो सिस्टम जैसा है।
इसके जरिए सभी प्रकार के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में एडमिशन दिए जा रहे हैं।
हाईकोर्ट ने कहा कि साल 2006 में प्रदेश सरकार ने उप्र प्राइवेट प्रोफेशनल एजुकेशन इंस्टीट्यूशन (रेग्यूलेशन ऑफ एडमिशन एंड फिक्सेशन ऑफ फीस) एक्ट बनाया था। इसी के तहत सरकार ने केंद्रीयकृत प्रवेश के लिए शासनादेश जारी किया। यह एक्ट अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए ऐसा करने से सरकार को नहीं रोकता।
कॉमन एडमिशन टेस्ट जरूरी भी
हाईकोर्ट ने साफ किया कि सरकार को सिंगल विंडो सिस्टम बनाने का न केवल अधिकार है, बल्कि यह जरूरी भी है। अगर सरकार इसके तहत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए किसी एजेंसी के जरिए केंद्रीयकृत प्रवेश परीक्षा करवाती है, तो ये सभी संस्थान अपने आप इसके अधीन आ जाएंगे। इसी के जरिए पात्र विद्यार्थियों को 50 प्रतिशत सीटों पर एडमिशन दिया जाएगा।
इसमें अपवाद केवल वह संस्थान होगा जो अपने क्षेत्र की बेहद विशिष्ट शिक्षा देने वाला अकेला संस्थान होगा, लेकिन ऐसे संस्थान की प्रवेश नीति भी सरकार के नियमों के विपरीत नहीं हो सकती। वहीं अगर प्रदेश सरकार ऐसी कोई परीक्षा नहीं करवाती है तो अल्पसंख्यक संस्थानों को मिलकर ऐसी परीक्षा करवानी होती है।
हाईकोर्ट ने कहा कि साल 2006 में प्रदेश सरकार ने उप्र प्राइवेट प्रोफेशनल एजुकेशन इंस्टीट्यूशन (रेग्यूलेशन ऑफ एडमिशन एंड फिक्सेशन ऑफ फीस) एक्ट बनाया था। इसी के तहत सरकार ने केंद्रीयकृत प्रवेश के लिए शासनादेश जारी किया। यह एक्ट अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए ऐसा करने से सरकार को नहीं रोकता।
कॉमन एडमिशन टेस्ट जरूरी भी
हाईकोर्ट ने साफ किया कि सरकार को सिंगल विंडो सिस्टम बनाने का न केवल अधिकार है, बल्कि यह जरूरी भी है। अगर सरकार इसके तहत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए किसी एजेंसी के जरिए केंद्रीयकृत प्रवेश परीक्षा करवाती है, तो ये सभी संस्थान अपने आप इसके अधीन आ जाएंगे। इसी के जरिए पात्र विद्यार्थियों को 50 प्रतिशत सीटों पर एडमिशन दिया जाएगा।
इसमें अपवाद केवल वह संस्थान होगा जो अपने क्षेत्र की बेहद विशिष्ट शिक्षा देने वाला अकेला संस्थान होगा, लेकिन ऐसे संस्थान की प्रवेश नीति भी सरकार के नियमों के विपरीत नहीं हो सकती। वहीं अगर प्रदेश सरकार ऐसी कोई परीक्षा नहीं करवाती है तो अल्पसंख्यक संस्थानों को मिलकर ऐसी परीक्षा करवानी होती है।