Saturday, January 6, 2018

डेनमार्क के इस स्कूल की दीवारें खुद पैदा करती हैं अपनी बिजली

दुनियाभर में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। एक तो यह किफायती है, दूसरा पर्यावरण के लिए भी इससे कोई खतरा नहीं है। इस दिशा में डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में स्थित एक स्कूल उदाहरण बन चुका है। इस स्कूल की बिल्डिंग में 12 हजार सोलर पैनल फिट किए गए हैं। स्कूल की सालाना बिजली आपूर्ति का आधा हिस्सा इन सोलर पैनल के जरिए पूरा होता है। कोपनहेगन यूं भी दुनिया की सर्वाधिक ग्रीन सिटी में शुमार है। अब यह पहली कार्बन फ्री राजधानी बनने की दिशा में प्रयासरत है। 2050 तक अपने इस मकसद को कोपनहेगन पूरा करना चाहता है।
डेनमार्क का कोपनहेगन इंटरनेशनल स्कूल सौर ऊर्जा के इस्तेमाल का एक उदाहरण बन चुका है। सोलर पैनल से ढका यह स्कूल आर्कटिटेक्ट का अनोखा नमूना है। यह स्कूल करीब 12000 सौर पैनल से ढका हुआ है। यह ऐसा पहला और इकलौता स्कूल है, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में सोलर पैनल लगे हैं। 300 मेगावाट बिजली हर घंटे इन सोलर पैनल से बनती है। स्कूल की तीन ओर की दीवार और छत को मिलाकर यह पैनल लगाए गए हैं।

डिजाइन है खास 

इन अनोखे सोलर पैनल को स्विस इंस्टीट्यूट ईपीएफएल ने बनाया है। स्कैंडिनेविया की आर्किटेक्चर फर्म सी.एफ. मॉलर ने इन सोलर पैनल को डिजाइन किया है। दूर से देखने पर यह सौर पैनल किसी टाइल जैसे लगते हैं। लेकिन, करीब जाकर पता चलता है कि यह सोलर पैनल ही हैं। इनका रंग समुद्री हरा है। सोलर पैनल के रंग के चलते स्कूल की इमारत की खूबसूरती भी देखते ही बनती है। स्कूल में लगा प्रत्येक पैनल अलग-अलग दिशाओं में टिल्ट भी हो सकता है, ताकि अलग-अलग एंगल से लाइट को रिफ्लेक्ट किया जा सके। डेनमार्क में इस प्रोजेक्ट को सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बनाने की योजना है। डेनमार्क का यह स्कूल सौर ऊर्जा संयत्रों से बना सबसे बड़ा स्कूल है। स्कूल में लगे सोलर प्लांट ने 65,000 स्क्वायर फीट से ज्यादा का एरिया कवर किया हुआ है। खासतौर से रंगीन पैनल को स्विस इंस्टीट्यूट इकोले पॉलीटेक्निक फेडेरेल डी लॉजेन ने डिजाइन किया है। पैनल की सतह के निर्माण में रंगीन कांच के बेहद शानदार पार्टिकल्स इस्तेमाल किए गए हैं। एक सिंगल पैनल भी उसी खूबसूरती से लाइट बनाने में सक्षम है। इस सोलर पैनल के डेवलपर्स के अनुसार, यह अपनी तरह का दुनिया का सबसे बड़ा इंस्टॉलेशन है। स्विटजरलैंड में विकसित हुई नई टेक्नोलॉजी पर आधारित यह सौर पैनल टाइल्स समुद्री हरे रंग की हैं।

स्पेशल फिल्टर्स

मैटीरियल में बिना कोई पिगमेंट्स मिलाए सोलर टाइल्स का रंग कैसा होना चाहिए, यह पता लगाने में शोधकर्ताओं को 12 साल लगे। शोधकर्ताओं ने विशेष फिल्टर डेवलप किए, जो नेनोमेट्रिक परतों में कांच के पैनल्स पर लगाए। ईपीएफएल के सोलर एनर्जी एवं बिल्डिंग फिजिक्स लैब के हेड जीन लुई स्कैर्टेजिनी के अनुसार, फिल्टर डिजाइन यह निर्धारित करती है कि लाइट की कौन-सी प्रकाश तरंग विजिबल रंग में रिफ्लेक्ट होती है। आप पानी की सतह पर साबुन के गुब्बारे और तेल की पर्त का समान प्रभाव देख सकते हैं। यह आइरिस इफेक्ट एक बारीक सी परत पर रंग-बिरंगा इंद्रधनुष बनाता है। हमने कांच के लिए भी बिल्कुल उसी सिद्धांत का इस्तेमाल किया। सूर्य की बाकी रोशनी सोलर पैनल अवशोषित कर लेते हैं और इसे ऊर्जा में तब्दील करते हैं।

भविष्य के लिए एक सीख

आज के दौर में तो यह सौर ऊर्जा के इस्तेमाल का सफल प्रयोग है ही, लेकिन भविष्य में भी यह सोलर पैनल छात्रों को सौर ऊर्जा के बारे में शिक्षा देने में भी मदद करेगी। उन्हें खास तौर पर ऊर्जा उत्पादन के बारे में पढ़ाया जाएगा। इस स्कूल में 1200 स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। यह स्कूल चार टावर में विभाजित है। जिसकी रेंज पांच से सात मंजिल की है। चार टावर के नीचे, स्कूल के कम्युनल एरिया द्वारा एक पोडियम भी घेरा हुआ है, जो एक तरह से उपकक्ष है। इसमें एक लाइब्रेरी और परफॉर्मेंस फेसिलिटीज, डाइनिंग एरिया भी शामिल हैं। इसके अलावा एक स्पोर्टस हॉल भी है। बाहरी नजारों को देखा जा सके, इसके लिए ग्राउंड फ्लोर की छत पर एक खेल का मैदान भी बनाया गया है।
साभार


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