रामानन्द चैटर्जी
29 मई, 1865, - 30 सितंबर, 1943,
रामानन्द चैटर्जी पत्रकारिता जगत के एक पुरोगामी शख्सियत
थे। वे कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'मॉडर्न रिव्यू' के संस्थापक, संपादक एवं मालिक थे। उन्हें
"भारतीय पत्रकारिता का जनक" माना जाता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने विशेष रूप से
कार्य किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अध्यापक और प्राचार्य के पद पर काम किया था।
इनका जन्म सन् 1865 ई. में बंगाल के बाँकुड़ा
जिले के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। आप एक मेधावी छात्र थे। बी.ए. एवं
एम.ए. दोनों ही परीक्षाओं में आपने प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
1887 ई. में आप कोलकाता के सिटी कालेज में प्राध्यापक पद पर
नियुक्त हुए। आप केशवचंद्र
सेन के संपर्क में आए और ब्रह्मसमाजी हो गए। फिर 1895 ई. में कायस्थ
पाठशाला इलाहाबाद में प्रिंसिपल हुए। इस पद पर आप 1906 तक रहे। इसी कालेज से 'कायस्थ समाचार' एक उर्दू पत्र प्रकाशित होता था। इसका संपादनभार
रामानंद बाबू पर आया। आपने उसका रूप ही बदल दिया, उर्दू के
स्थान पर उसे अंग्रेजी का पत्र बना दिया तथा उसका उद्देश्य
शिक्षाप्रचार रखा। 1901 ई. में इंडियन
प्रेस के चिंतामणि
घोष के सहयोग से 'प्रवासी' बंगला
मासिक पत्र निकाला। इसी समय मतभेद के कारण आपको कालेज से इस्तीफा देकर कोलकात्ता
वापस आना पड़ा। बंगाल
विभाजन के समय देश की राजनीतिक जागृति से आप अपने को अलग न रख सके। अतएव 1907 में
पुनः प्रयाग आकर 'माडर्न रिव्यू'
प्रकाशित किया। 'मार्डन रिव्यू' की गिनती अंग्रेजी संसार के आधे दर्जन श्रेष्ठ पत्रों में की जाती थी।
रामानन्द बाबू की शैली तेजयुक्त, प्रवाहपूर्ण और निर्लिप्त
थी। 'माडर्न रिव्यू' के कुछ अंकों ने
ही देश विदेश में अपना प्रभाव फैला लिया। उनके बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर तथा उनकी
आलाचनाओं से विचलित होकर यू.पी.
सरकार ने उन्हें तुरन्त प्रान्त छोड़ने का आदेश दिया अतः वे पुन: कोलकाता वापस आ
गए। कई प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय लेखक 'माडर्न रिव्यू' में लेख लिखने में अपना गौरव मानते थे।
रामानन्द बाबू ने ही सर्वप्रथ रवींद्रनाथ टैगोर को अंग्रेजी जगत् के सम्मुख
प्रस्तुत किया। रवि बाबू की सबसे पहली अंग्रेजी रचना 'माडर्न
रिव्यू' में ही प्रकाशित हुई। 1926 में राष्ट्रसंघ (लीग ऑव नेशन्स)
की बैठक में उपस्थित होने के लिए आप आमंत्रित किए गए। इस बैठक में आप अपने ही खर्च
से गए। सरकारी खर्च से यात्रा करना इसीलिए अस्वीकार कर दिया ताकि उनके स्पष्ट और
निर्भीक विचारों पर किसी प्रकार भी आर्थिक दबाव की आँच न आने पाए। अमरीका के पादरी
जे.टी.संडरलैंड की पुस्तक 'इंडिया इन बॉण्डेज' को आपने 'माडर्न रिव्यू' में
धारावाहिक रूप में और बाद में 'प्रवासी' प्रेस से पुस्तक रूप में प्रकाशित की। यह पुस्तक जब्त कर ली गई और रामानंद
बाबू को पुस्तक के प्रकाशन के लिए दंडित होना पड़ा। सर यदुनाथ सरकार और मेजर वामनदास वसु के ऐतिहासिक शोध
विषयक लेख 'माडर्न रिव्यू' में छपे।
रामानंद बाबू हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं मानते थे।
फिर भी इसको व्यापकता से वे अनभिज्ञ न थे। उन्हें अनुभव हुआ कि बिना हिंदी का आश्रय लिए उनका
उद्देश्य अपूर्ण रह जाएगा। इसी उद्देश्य से 1928 में आपने हिंदी मासिक 'विशाल भारत' निकाला। 'विशाल भारत' में प्रवासी भारतीयों की समस्या पर
विशेष ध्यान दिया गया।
आपकी लिखी तीन पुस्तकें - 'राजा राममोहन राय', 'आधुनिक भारत' तथा 'स्वशासन की
ओर' भी उल्लेखनीय हैं। आप कुशल पत्रकार और लेखक ही नहीं वरन्
सच्चे समाजसुधारक भी थे। 1929 ई. में लाहौर कांग्रेस के अवसर पर जात-पाँत तोड़क मंडल के अधिवेशन का सभापतित्व आपने किया। आप 50 वर्षों तक सार्वजनिक सेवाओं में रत रहे। आपकी मृत्यु 30 सितंबर 1943 को हुई।