Thursday, May 28, 2020

लोकराम नयनराम शर्मा

लोकराम नयनराम शर्मा

जन्म: 1890मृत्यु: 29 मई1933 

लोकराम नयनराम शर्मा भारत के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संगठनकर्ता थे। जब वे वाराणसी (वर्तमान बनारस) में रह रहे थे, तभी उनका परिचय बंग-भंग के विरोधी और स्वेदेशी आंदोलनकारियों से हुआ। उनके प्रयत्नों से ही 1931 में कराची में कांग्रेस का अधिवेशन हो पाया था। लोकराम नयनराम शर्मा ने महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया था।

सिंध प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संगठनकर्ता लोकराम नयनराम शर्मा का जन्म सन 1890 में हैदराबाद (सिंध) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पारिवारिक प्रभाव से लोकराम नयनराम शर्मा ने छोटी उम्र में ही प्राचीन भारतीय साहित्य का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। संस्कृत भाषा के प्रति उनकी विशेष रुचि थी। इसी रुचि के कारण वे 15 वर्ष की उम्र में अपने मित्र गुरुदास के साथ संस्कृत का अध्ययन करने के लिए वाराणसी गये। सन 1905 से 1907 तक वे वाराणसी में रहे।
लोकराम नयनराम शर्मा जब वाराणसी में रह रहे थे, तभी उनका परिचय बंग भंग के विरोधी और स्वेदेशी आंदोलनकारियों से हुआ। 1907 में वापस सिंध पहुंचने तक वे राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत थे। लोकराम की लेखनी राष्ट्रीय आकांक्षाओं का जोरदार समर्थन करती थी। इसलिए कई बार ब्रिटिश सरकार ने उनके पत्रों पर लोक लगाई, प्रेस को जब्त किया और उन्हें जेल की सज़ाएं भी भोगनी पड़ीं। इनके प्रयत्नों से बने वातावरण में ही 1931 में कराची में कांग्रेस अधिवेशन हो पाया था। उन्होंने महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया था।
लोकराम नयनराम शर्मा ने अपने विचारों के प्रचार के लिए पहले कुछ प्रपत्र प्रकाशित किए और 'रास मंडली' नामक सांस्कृतिक संस्था बनाई। फिर सिंध में राष्ट्रीय पत्र की कमी दूर करने के लिए 'सिंध भास्कर' पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र को उन्होंने अरबी लिपि के स्थान पर देवनागरी लिपि में निकाला था। कुछ समय बाद इसका नाम बदल कर 'हिंन्दू' कर दिया गया। इसी समय लोकराम नयनराम शर्मा सिंध के प्रमुख नेता चोइथराम गिडवानी, जयराम दास दौलतराम आदि के संपर्क में आए। बाद में जब 'हिंदू' का 'वंदेमातरम' नाम से अंग्रेज़ी संस्करण निकला तो कुछ समय तक जयराम दास दौलतराम ने उसका संपादन किया।

लोकराम नयनराम शर्मा कई बार जेल गये, जिस कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और वे बीमार रहने लगे। 29 मई सन 1933 को उनका देहांत हो गया।

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