Sunday, January 21, 2018

68500 सहायक अध्यापक भर्ती को चुनौती

68500 सहायक अध्यापकों की भर्ती को चुनौती
शिक्षामित्रों के अर्हता प्राप्त करने तक भर्ती नहीं करने की मांग
सूबे के प्राथमिक विद्यालयों में 68500 सहायक अध्यापकों की भर्ती का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। शिक्षामित्रों के संगठन ने इस संबंध में नौ जनवरी 2018 को जारी शासनादेश को चुनौती देते हुए भर्ती प्रक्रिया रोकने की मांग की है। कोर्ट ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए प्रदेश सरकार को इस बाबत 30 जनवरी तक अपना पक्ष रखने और जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
आदर्श समायोजित शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष जितेंद्र शाही और अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की एकलपीठ सुनवाई कर रही है। याची के अधिवक्ता की दलील थी कि 1,65,157 शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन सुप्रीमकोर्ट ने रद्द कर दिया है। इसके बाद शिक्षामित्रों को दस हजार मानदेय पर उनके मूलपदों पर वापस लेते हुए सरकार ने टीईटी उत्तीर्ण का मौका दिया। 25 जुलाई 2017 के सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 की 23(3) में संसद ने संशोधन कर दिया। नए संशोधन के अनुसार 31 मार्च 2019 के बाद किसी भी विद्यालय में अप्रशिक्षित अध्यापक नहीं पढ़ाएंगे। अभी जो अप्रिशिक्षित अध्यापक पढ़ा रहे हैं, उनको आवश्यक योग्यता हासिल करने के लिए चार वर्ष की छूट देने का भी निर्णय लिया गया, ताकि वह 31 मार्च 2019 से पहले प्रशिक्षण और अन्य योग्यता प्राप्त कर सकें।
शिक्षामित्रों का कहना है कि चूंकि संशोधन कानून सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद आया है, इसलिए शिक्षामित्र भी जिस रूप में भी काम कर रहे हैं उनको चार साल तक काम करने का अधिकार है। 68500 सहायक अध्यापक भर्ती में शामिल होने के लिए स्नातक, बीटीसी प्रशिक्षण और टीईटी पास होना अनिवार्य है। अधिकांश शिक्षामित्र टीईटी उत्तीर्ण नहीं हैं। इस बीच यदि यह भर्ती की जाती है तो पर्याप्त योग्यता न होने के कारण शिक्षामित्र उसमें शामिल नहीं हो सकेंगे। इससे सुप्रीमकोर्ट का आदेश और नया संशोधन उनके लिए अर्थहीन हो जाएगा। भविष्य में पद रिक्त न रह जाने के कारण योग्यता हासिल कर लेने का भी कोई लाभ नहीं मिलेगा, इसलिए भर्ती प्रक्रिया को रोका जाए।

शिक्षामित्रों ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने जो प्रक्रिया अपनाई है, उससे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का लाभ उनको नहीं मिल सकेगा। भर्ती के लिए दोहरी अर्हता परीक्षा आयोजित करने और उनको मिलने वाले वेटेज का लाभ परीक्षा की शुरुआत में न देकर काउंसलिंग के समय देने के निर्णय को याचिका में चुनौती दी गई है।
इससे पूर्व एक अन्य याचिका में शिक्षामित्रों ने अनिवार्य शिक्षा का कानून 2009 की धारा 23 (3) में हुए संशोधन का लाभ देने की मांग की है। नए संशोधन के मुताबिक अप्रिशिक्षित अध्यापकों को प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए चार वर्ष की मोहलत दी जानी है। शिक्षामित्रों का कहना है कि इस संशोधन का लाभ पाने के वे भी हकदार हैं।
शिक्षामित्रों का केस लड़ रहे अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना है कि 68,500 अध्यापकों की भर्ती के लिए नौ जनवरी 2018 को जारी शासनादेश में दोहरी अर्हता रखी गई है। एक तो शिक्षक पात्रता परीक्षा और दूसरी सहायक अध्यापक लिखित भर्ती परीक्षा।
इन दोनों परीक्षाओं में न्यूनतम 45 प्रतिशत या अनुसूचित जाति के अभ्यर्थी 40 प्रतिशत अंक पाने के बाद ही अभ्यर्थी काउंसलिंग के लिए अर्ह होंगे। काउंसलिंग में उनके क्वालिटी प्वाइंट मार्क्स भी जोड़े जाएंगे। इसी के साथ शिक्षामित्रों को मिलने वाला वेटेज भी जोड़ा जाएगा। 
शिक्षामित्रों का कहना है टीईटी का डिफिकल्टी लेवल हाईस्कूल तक है, जबकि शिक्षक भर्ती परीक्षा में डिफिकल्टी लेवल इंटर कर दिया गया है। इसका आशय यह है कि टीईटी में तो हाईस्कूल स्तर तक के प्रश्न पूछे जाएंगे, मगर शिक्षक भर्ती परीक्षा में इंटरमीडिएट स्तर के प्रश्न आएंगे।

इन दो अर्हता परीक्षाओं को पास करने के बाद ही शिक्षामित्र वेटेज का लाभ पाने के हकदार होंगे, जबकि उनकी मांग है कि वेटेज का लाभ अर्हता परीक्षाओं के स्तर पर ही मिलना चाहिए।


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