सशस्त्र सेना झंडा दिवस या झंडा दिवस भारतीय
सशस्त्र सेना के कर्मियों के कल्याण हेतु भारत की जनता से धन का संग्रह के प्रति समर्पित
एक दिन है। यह 1949 से 7 दिसम्बर को भारत में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
उद्देश्य
झंडा दिवस का उद्देश्य भारत की जनता
द्वारा देश की सेना के प्रति सम्मान प्रकट करना है। उन जांबाज सैनिकों के प्रति
एकजुटता दिखाने का दिन, जो देश की तरफ आंख उठाकर देखने वालों
से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। सेना में रहकर जिन्होंने न केवल सीमाओं की रक्षा की,
बल्कि आतंकवादी व उग्रवादी से मुकाबला कर शांति स्थापित करने में
अपनी जान न्यौछावर कर दी। भारतीय सशस्त्र सेना के कर्मियों के कल्याण हेतु भारत की जनता से धन का संग्रह राशि का उपयोग युद्धों में शहीद हुए सैनिकों के
परिवार या हताहत हुए सैनिकों के कल्याण व पुनर्वास में खर्च की जाती है। यह राशि
सैनिक कल्याण बोर्ड की माध्यम से खर्च की जाती है। देश के हर नागरिक को चाहिए कि
वह झंडा दिवस कोश में अपना योगदान दें, ताकि हमारे देश का
झंडा आसमान की ऊंचाइयों को छूता रहे।[1]
इतिहास
भारत सरकार ने साल 1949 से
सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाने का निर्णय लिया। देश की सुरक्षा में शहीद हुए
सैनिकों के आश्रितों के कल्याण हेतु सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है। इस दिन
झंडे की ख़रीद से होने वाली आय शहीद सैनिकों के आश्रितों के कल्याण में खर्च की
जाती है। सशस्त्र सेना झंडा दिवस द्वारा इकट्ठा की गई राशि युद्ध वीरांगनाओं,
सैनिकों की विधवाओं, भूतपूर्व सैनिक, युद्ध में अपंग हुए सैनिकों व उनके परिवार के कल्याण पर खर्च की जाती है। 7
दिसंबर, 1949 से शुरू हुआ यह सफ़र
आज तक जारी है। आज़ादी के तुरंत बाद सरकार को लगने लगा कि सैनिकों के परिवार वालों
की भी जरूरतों का ख्याल रखने की आवश्यकता है और इसलिए उसने 7 दिसंबर को झंडा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इसके पीछे सोच थी
कि जनता में छोटे-छोटे झंडे बांट कर दान अर्जित किया जाएगा जिसका फ़ायदा शहीद
सैनिकों के आश्रितों को होगा। शुरूआत में इसे झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता था
लेकिन 1993 से इसे सशस्त्र सेना झंडा दिवस का रूप
दे दिया गया।