पांच दिसंबर की तारीख यूं तो हर
साल आती है लेकिन इस तारीख के बेहद खास मायने हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि 5 दिसंबर की रात में राजस्थान में
पाकिस्तान से लगती सीमा और लोंगेवाल पोस्ट पर वो हुआ था जिसकी कल्पना तक नहीं
की जा सकती है। यह महज एक कहानी नहीं बल्कि भारतीय फौज के जांबाज जवानों के
पराक्रम की शौर्यगाथा है। आपको बता दें कि 1971 के दिसंबर माह में भारत पाकिस्तान
के साथ कई मोर्चों पर लड़ रहा था। समुद्र में पाकिस्तान को हराने के लिए भारत ने
ऑपरेशन ट्राइडेंट चलाया था तो वहीं पूर्व में बांग्लादेश फ्रंट पर भी भारत पाकिस्तान
के साथ दो-दो हाथ कर रहा था। इसके अलावा चीन की तरफ से भी लगातार माहौल तनावपूर्ण
हो रहा था। कश्मीर में भी पाकिस्तान के सामने भारतीय फौज दो-दो हाथ कर रही थी।
इसी दौरान पाकिस्तान ने राजस्थान में हमले कर जैसलमेर पर कब्जा करने के लिए
अपनी पूरी टैंक रेजिमेंट को लोंगेवाल पोस्ट की तरफ रवाना कर दिया था।
धीरे धीरे नजदीक आ रहे पाक टैंक
इसकी
जानकारी पोस्ट पर तैनात 23वीं पंजाब
बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को 4-5 दिसंबर की रात को उनके जवानों से
लगी थी। इन जवानों ने बॉर्डर पार टैंकों की आवाज सुनी थी जो धीरे-धीरे बढ़ती जा
रही थी। फिर यह बॉर्डर के एकदम करीब आ गए जिसको यह जवान साफतौर पर देख सुन पा रहे
थे। पाकिस्तान की तरफ से आ रही 22 कैवलरी इंफैंटरी बटालियन में चीनी निर्मित टी 35 और अमेरिकन शर्मन टैंक शामिल थे।
हम आपको बता दें कि लोंगेवाल पोस्ट भारत-पाक सीमा पर करीब 18 किमी का दायरा है।
पोस्ट छोड़ने का मिला था हुक्म
मेजर
कुलदीप सिंह को अपने अधिकारियों से पोस्ट को खाली करने का हुक्म दिया गया था, जिसको मानने से उन्होंने इंकार
कर दिया था। इसके अलावा उनकी पूरी टीम ने भी पोस्ट छोड़कर जाने से बेहतर दुश्मन
को टक्कर देने का फैसला किया था। मेजर के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि जहां उनके
सामने पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजिमेंट थी वहीं उनके पास महज 120 जवान थे, जिनके पास कुछ स्वचालित मशीनगनें, आरसीएल जीप के ऊपर लगाई गई 106 एमएम की रिकोइल्लस राइफल्स, हैंड ग्रेनेड और राइफल्स थी। एक
पूरी टैंक रेजिमेंट के सामने यह सभी कुछ बेहद छोटी और कमतर थीं। यह भारतीय जवानों
का साहस ही था कि उन्होंने अपने साहम के दम पर पूरी टैंक रेजिमेंट को भागने पर
मजबूर कर दिया था। इस लड़ाई में जीत हासिल करने पर मेजर कुलदीप सिंह को महावीर
चक्र से नवाजा गया था। इसके अलावा उनकी टुकड़ी को छह और गैलेंट्री अवार्ड से नवाजा
गया था। चांदपुरी की छोटी सी टुकड़ी ने दुश्मन के करीब 12 टैंकों को नष्ट कर दिया था।
पाकिस्तान की रेजिमेंट में करीब 59 टैंक थे जिनमें से केवल आठ को ही
वह अपने साथ सही सलामत वापस ले जा सके थे।
पूरी रात दुश्मन को रोककर रखा
लोंगेवाला
पोस्ट की लड़ाई को याद करते हुए उन्होंने कहा कि टी 35 टैंकों के साथ आये पाकिस्तान के
सैकडों जवानों को रोककर रखने और लोंगेवाला से आगे नहीं बढ़ने देने में मेरे साथ
कंधे से कंधा मिलाकर लडे़ जवानों की सर्वाधिक प्रशंसनीय भूमिका रही। मौत सामने
देखकर भी पांव पीछे नहीं खींचने वाले इन जवानों की बहादुरी की वजह से ही दुश्मन को
नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि एक सैनिक के तौर पर मैं उन
जवानों को ही इस जीत का श्रेय देना चाहूंगा। उन्होंने बताया कि उन्हें और सारे
जवानों को लोंगेवाला पोस्ट पर स्थित देवी के एक छोटे से मंदिर पर पूरा भरोसा रहा
है, जहां वे
रोज प्रसाद चढ़ाते थे और रात को देसी घी का दीया जलाते थे। फिल्मकार जे पी दत्ता
की 1997 में आई
हिट फिल्म 'बार्डर' लोंगेवाला की लड़ाई पर ही बनी थी
जिसमें सनी देओल ने मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी का किरदार अदा किया था।
चुनौती से भरी थी रात
इस लड़ाई
में इस टुकड़ी का साथ भारतीय एयरफोर्स के हंटर विमानों ने भी दिया था। इनके साथ
में समस्या यह थी कि ये विमान रात में उड़ान भरने में सक्षम नहीं थे। लिहाजा
लड़ाई के मैदान पर जाने के लिए लोंगोवाल की पोस्ट पर जमे भारतीय सैनिकों को पूरी
रात दुश्मन से लोहा लेना था। ऐसा उन्होंने किया भी। सुबह होते ही भारतीय
वायुसेना के विमानों ने दुश्मन के टैंकों पर कहर बरपा दिया। उस वक्त पाकिस्तान
के जवानों के उस मैसेज को भी वायरलैस पर साफ सुना गया जिसमें कहा गया था कि भारत
के जहाज हम पर कहर बरपा रहे हैं हमारे आधे से जयादा टैंक बर्बाद हो गए हैं।
भारतीय वायुसेना को सलाम
उन्होंने
बताया कि 'हमारे पास
टैंक नहीं थे, हम चारों
तरफ से घिरे थे। उस पर भी रेत के गुबार चुनौती पैदा करने वाले थे। सर्द रात भयावह
लंबी लग रही थी। हम दिन चढ़ने की प्रार्थना कर रहे थे ताकि वायु सेना के विमान आ
सकें।' अंतत:
वायुसेना के लडाकू विमानों ने आकर दुश्मन के कई टैंकों को तबाह कर दिया और
लोंगेवाला के रास्ते राजस्थान के अंदर तक आने और यहां बडे़ हिस्से पर कब्जा करने
की पड़ोसी देश की साजिश नाकाम हो गयी। मेजर चांदपुरी ने कहा, 'भारतीय वायुसेना को मेरा सलाम।
उनकी अपनी समस्याएं और सीमाएं थीं लेकिन उनके आते ही पाकिस्तान के टैंक तबाह हो
गये।'
इसलिए भी खास थी यह लड़ाई
5-6 दिसंबर की रात लड़ी गई यह लड़ाई
इसलिए भी बेहद खास थी क्योंकि दुश्मन का इरादा न सिर्फ जैलसमेर जीतना था बल्कि
वह जोधपुर और फिर दिल्ली पर कब्जा करना चाहता था। ऐसे में यदि इस पोस्ट को
छोड़कर भारतीय फौज पीछे हट जाती तो दुश्मन के लिए आगे बढ़ने का रास्ता पूरी तरह
से साफ हो जाता। इस जीत के नायक रहे मेजर और बाद में ब्रिगेडियर के पद से रिटायर
हुए कुलदीप सिंह चांदपुरी इसका श्रेय उन जवानों को देते हैं जो उस रात एक मजबूत
दीवार की तरह दुश्मन के सामने डटे रहे। उनका कहना है कि वह आज भी सरहद पर दुश्मन
से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। रिटायर होने के बाद मेजर चांदपुरी चंडीगढ़
में रहते हैं। वह बताते हैं कि उन्हें जब भी सेना के अधिकारी किसी भी कार्यक्रम के
लिए बुलाते हैं तो वह अवश्य जाते हैं चाहे सेहत साथ ना भी दे रही हो। उनका यह भी
कहना है कि जब तक वह जिंदा हैं, देश के लिए हैं। सेना जब-जब बुलाएगी वह लोंगेवाला जाते रहेंगे।
यदि आज भी सरकार उन्हें सरहद पर बुलाना चाहे तो वह इसके लिए भी तैयार हैं। इसमें
ही उनकी पूरी जिंदगी बीती है तो फिर डरना कैसा। वह दुश्मन से लड़ने को हमेशा
तैयार हैं।
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