Tuesday, June 1, 2021

नीलम संजीव रेड्डी

 

नीलम संजीव रेड्डी

19 मई, 1913 - 1 जून, 1996

नीलम संजीव रेड्डी  भारत के छठे राष्ट्रपति थे। उनका कार्यकाल 25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982 तक रहा। आन्ध्र प्रदेश के कृषक परिवार में जन्मे नीलम संजीव रेड्डी की छवि कवि, अनुभवी राजनेता एवं कुशल प्रशासक के रूप में थी। इनका सार्वजनिक जीवन उत्कृष्ट था। सन १९७७ के आम चुनाव में जब इंदिरा गांधी की पराजय हुई, उस समय नव-गठित राजनीतिक दल जनता पार्टी ने इनको राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाया। वे भारत के पहले गैर काँग्रेसी राष्ट्रपति थे। वे अक्टूबर 1956 में आन्ध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनें और दुसरी बार फिर 1962 से 1964 तक यह पद संभाला। उन्होने 1959 से 1962 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में से कार्य किया।

नीलम संजीवा रेड्डी का राजनैतिक सफर

मात्र अठारह वर्ष की आयु में N S R नीलम संजीवा रेड्डी स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे। इतना ही नहींमहात्मा गांधी से प्रभावित होकर विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने पहला सत्याग्रह भी किया। उन्होंने युवा कॉग्रेस के सदस्य के रूप में अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। बीस वर्ष की उम्र में ही नीलम संजीवा रेड्डी काफी सक्रिय हो चुके थे। सन 1936 में नीलम संजीवा रेड्डी आन्ध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के सामान्य सचिव निर्वाचित हुए. उन्होंने इस पद पर लगभग 10 वर्षों तक कार्य किया। नीलम संजीव रेड्डी संयुक्त मद्रास राज्य में आवासीय वन एवं मद्य निषेध मंत्रालय के कार्यों का भी सम्पादन करते थे। 1951 में इन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, ताकि आन्ध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद के चुनाव में भाग ले सकें. इस चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी प्रोफेसर एन.जी. रंगा को हराकर अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इसी वर्ष यह अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति और केन्द्रीय संसदीय मंडल के भी निर्वाचित सदस्य बन गए। नीलम संजीवा रेड्डी ने कांग्रेस पार्टी के तीन सत्रों की अध्यक्षता की। 10 मार्च, 1962 को इन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और यह 12 मार्च, 1962 को पुन: आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वह इस पद पर दो वर्ष तक रहे। उन्होंने खुद ही अपने पद से इस्तीफा दिया था।

1964 में नीलम संजीवा रेड्डी राष्ट्रीय राजनीति में आए और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इन्हें केन्द्र में स्टील एवं खान मंत्रालय का भार सौंप दिया। इसी वर्ष वह राज्यसभा के लिए भी मनोनीत हुए और 1977 तक इसके सदस्य रहे। 1971 में जब लोक सभा के चुनाव आए तो नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस-ओ के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन इन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस हार से श्री रेड्डी को गहरा धक्का लगा। वह अनंतपुर लौट गए और अपना अधिकांश समय कृषि कार्यों में ही गुजारने लगे। एक लम्बे अंतराल के बाद 1 मई, 1975 को श्री नीलम संजीव रेड्डी पुन: सक्रिय राजनीति में उतरे. जनवरी 1977 में यह जनता पार्टी की कार्य समिति के सदस्य बनाए गए और छठवीं लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की ओर से आन्ध्र प्रदेश की नंड्याल सीट से उन्होंने अपना नामांकन पत्र भरा. जब चुनाव के नतीजे आए तो वह आन्ध्र प्रदेश से अकेले गैर कांग्रेसी उम्मीदवार थे, जो विजयी हुए थे। 26 मार्च, 1977 को श्री नीलम संजीव रेड्डी को सर्वसम्मति से लोकसभा का स्पीकर चुन लिया गया। लेकिन 13 जुलाई, 1977 को उन्होने यह पद छोड़ दिया क्योंकि इन्हें राष्ट्रपति पद हेतु नामांकित किया जा रहा था, जिसमें नीलम संजीव रेड्डी सर्वसम्मति से निर्विरोध छठवें राष्ट्रपति चुन लिए गए। नीलम संजीवा रेड्डी को श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, त्रिमूर्ति द्वारा 1958 में सम्मानार्थ डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई।

इनके पिता का नाम नीलम चिनप्पा रेड्डी था नीलम संजीव रेड्डी का विवाह 8 जून, 1935 को नागा रत्नम्मा के साथ सम्पन्न हुआ था। इनके एक पुत्र एवं तीन पुत्रियाँ हैं। पुत्र सुधीर रेड्डी अनंतपुर में सर्जन की हैसियत से अपना स्वतंत्र क्लिनिक पार्टी ऑफ़ इण्डिया के प्रभावशाली नेता रहे हैं और आज़ादी की लड़ाई में यह भी कई बार जेल गए हैं।

नीलम संजीव रेड्डी की प्राथमिक शिक्षा 'थियोसोफिकल हाई स्कूल' अड़यारमद्रास में सम्पन्न हुई। आगे की शिक्षा आर्ट्स कॉलेजअनंतपुर में प्राप्त की। महात्मा गांधी के आह्वान पर जब लाखों युवा पढ़ाई और नौकरी का त्याग कर स्वाधीनता संग्राम में जुड़ रहे थे, तभी नीलम संजीव रेड्डी मात्र 18 वर्ष की उम्र में ही इस आंदोलन में कूद पड़े थे। इन्होंने भी पढ़ाई छोड़ दी थी। संजीव रेड्डी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया था। यह उस समय आकर्षण का केन्द्र बने, जब उन्होंने विद्यार्थी जीवन में सत्याग्रह किया था। वह युवा कांग्रेस के सदस्य थे। उन्होंने कई राष्ट्रवादी कार्यक्रमों में हिस्सेदारी भी की थी। इस दौरान इन्हें कई बार जेल की सज़ा भी काटनी पड़ी।

रेड्डी जी की प्रारंभिक शिक्षा थियोसोफिकल हाई स्कूल अंडयारमद्रास में शुरू हुई थी. इसी विद्यालय में रेड्डी जी अध्यात्म की ओर आकर्षित हुए थे और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्ट्स कॉलेज अनंतपुर में प्रवेश लिया. किन्तु जुलाई 1929 में गांधीजी से मिलने के बाद रेड्डी जी का जीवन पूरी तरह से बदल गया

ensoul

money maker

shikshakdiary

bhajapuriya bhajapur ke