Friday, May 21, 2021

सुन्दरलाल बहुगुणा

 


सुन्दरलाल बहुगुणा

9 जनवरी 1927 – 21 मई 2021

चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी सन 1927 को देवों की भूमि उत्तराखंड के 'मरोडा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए।

सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की स्थापना भी की।

सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज 'पर्यावरण गाँधी' बन गया है।

13 वर्ष की उम्र में शुरू हुआ राजनीतिक सफर

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी बहुगुणा ने 13 वर्ष की उम्र में ही राजनीतिक सफर की शुरुआत कर ली थी। वर्ष 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा से बहुगुणा की मुलाकात हुई। यहीं से उनका आंदोलन का सफर शुरू हुआ। मंदिरों में दलितों को प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए प्रदर्शन करना शुरू किया। समाज के लोगों के लिए काम करने हेतु बहुगुणा ने 1956 में शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने का निर्णय लिया और अपनी पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से बहुगुणा ने पर्वतीय नवजीवन मण्डल की स्थापना की।

1970 में की चिपको आंदोलन शुरुआत

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की स्थापना भी की। सुंदरलाल बहुगुणा का मानना था कि पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना हमारे जीवन के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए उन्होंने 1970 में गढ़वाल हिमालय में पेड़ों को काटने के विरोध में आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का नारा - क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधारतय किया गया था। वर्ष 1971 में शराब दुकान खोलने के विरोध में सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया।

15 साल तक लगा पेड़ो को काटने पर रोक

यह विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया। 26 मार्च 1974 में चमोली जिला में जब ठेकेदार पेड़ो को काटने के लिए पधारे तब ग्रामीण महिलाएं पेड़ो से चिप्पकर खड़ी हो गईं। परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 साल के लिए पेड़ो को काटने पर रोक लगा दिया। चिपको आंदोलन की वजह से बहुगुणा विश्व में वृक्षमित्र के नाम प्रसिद्ध हो गए।

1981 से लेकर 2001 तक इन पुरस्कारों से किया गया सम्मानित

पर्यावरण के क्षेत्र में बहुमूल्य काम करने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा को वर्ष 1981 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था। किंतु उन्होंने यह पुरस्कार लेने से मना कर दिया। उनका कहना था कि जब तक पेड़ कटते रहेंगे, तब तक मैं इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं कर सकता। इसके बाद - 

1985 में जमनालाल बजाज पुरस्कार 

1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार (रचनात्मक कार्य के लिए सन) 

1987 में राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (चिपको आंदोलन)

1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार

1987 में सरस्वती सम्मान 

1989 में आइआइटी रुड़की द्वारा सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि दी गई।

1998 में पहल सम्मान 

1999 में गांधी सेवा सम्मान 

2000 में सांसदों के फोरम द्वारा सत्यपाल मित्तल अवॉर्ड 

2001 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया

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