मौलाना हसरत मोहानी मसऊदी
1 जनवरी 1875
- 13 मई 1951
हसरत मोहानी साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी, शायर, पत्रकार, इस्लामी विद्वान, समाजसेवक और आज़ादी के सिपाही थे। हसरत मोहानी का नाम सय्यद फ़ज़ल-उल-हसन तख़ल्लुस हसरत
था। वह क़स्बा मोहान ज़िला उन्नाव में 1875 को पैदा हुए। आपके वालिद का नाम
सय्यद अज़हर हुसैन था। हसरत मोहानी ने आरंभिक तालीम घर पर ही हासिल की और 1903
में अलीगढ़ से बीए किया। शुरू ही से उन्हें शायरी का शौक़ था
औरअपना कलाम तसनीम लखनवी को दिखाने लगे।
1903 में अलीगढ़ से एक रिसाला (पत्रिका)
उर्दूए मुअल्ला जारी किया। जो अंग्रेजी सरकार की नीतियों के खिलाफ था। 1904
वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हों गये और राष्ट्रीय
आंदोलन में कूद पड़े। 1905 में उन्होंने बाल गंगाधर तिलक
द्वारा चलाए गए स्वदेशी तहरीकों में भी हिस्सा लिया। 1907 में
उन्होंने अपनी पत्रिका में "मिस्त्र में ब्रितानियों की पालिसी" के नाम
से लेख छापी। जो ब्रिटिश सरकार को बहुत खली और हसरत मोहानी को गिरफ्तार कर जेल भेज
दिया गया। ।
1919 के खिलाफत आन्दोलन में उन्होंने चढ़ बढ़ कर
हिस्सा लिया। 1921 में उन्होंने सर्वप्रथम "इन्कलाब
ज़िदांबाद" का नारा अपने कलम से लिखा। इस नारे को बाद में भगतसिंह ने मशहूर
किया। उन्होंने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन (1921) में
हिस्सा लिया।
हसरत मोहानी हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। उन्होंने तो
श्रीकृष्ण की भक्ति में भी शायरी की है। वह बाल गंगाधर तिलक व भीमराव अम्बेडकर के
करीबी दोस्त थे। 1946 में जब भारतीय संविधान सभा का गठन हुआ तो
उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य से संविधान सभा का सदस्य चुना गया।
1947 के भारत विभाजन का उन्होंने विरोध किया और
हिन्दुस्तान में रहना पसंद किया। 13 मई 1951 को मौलाना साहब का अचानक निधन हो गया।
उन्होंने अपने कलामो में हुब्बे वतनी, मुआशरते
इस्लाही,कौमी एकता, मज़हबी और सियासी
नजरियात पर प्रकाश डाला है। 2014 में भारत सरकार द्वारा उनके
सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया है।