गोपाल गणेश आगरकर
14 जुलाई, 1856, - मृत्यु- 17 जून, 1895
गोपाल गणेश आगरकर का नाम भारत के प्रसिद्ध समाज सेवकों में लिया जाता है।
एक पत्रकार के रूप में भी उन्होंने प्रसिद्धि पाई थी। वे प्रसिद्ध स्वतंत्रता
सेनानी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के सहपाठी रहे थे। उन्होंने 'सुधारक' नामक एक साप्ताहिक भी निकाला था। गोपाल गणेश
आगरकर जी वर्ष 1892 में फ़र्ग्युसन कॉलेज, पुणे के प्रधानाध्यापक बनाये गए थे और फिर इस पद
पर वे अंत तक रहे।
लोकमान्य बालगंगाधर के सहपाठी और सहयोगी गोपाल गणेश आगरकर जी का
जन्म 14 जुलाई, 1956 ई. को महाराष्ट्र में सतारा
ज़िले के 'तेम्मू' नामक स्थान पर हुआ
था। उन्होंने पुणे के 'दक्कन कॉलेज'
में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। अपने विद्यार्थी जीवन में ही
उन्होंने देश और समाज सेवा का व्रत ले लिया था।
आगरकर जी, लोकमान्य
तिलक और उनके सहयोगी यह मानते थे कि शिक्षा-प्रसार से ही राष्ट्र का
पुनर्निर्माण संभव है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये जनवरी, 1880 में 'न्यू इंग्लिश
स्कूल' की स्थापना की गई। परंतु अपने विचारों के प्रचार के
लिये गोपाल गणेश आगरकर जी के पास इतना पर्याप्त नहीं था। 2 जनवरी, 1881 से उन्होंने अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'मराठा'
का और 4 जनवरी से मराठी साप्ताहिक 'केसरी' का
प्रकाशन आरंभ किया।
वर्ष 1894 में 'दक्कन एजुकेशनल सोसाईटी' की स्थापना हुई और दूसरे
वर्ष 'फ़र्ग्युसन कॉलेज' अस्तित्व में
आया। गोपाल गणेश आगरकर तथा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक आदि इस कॉलेज के प्रोफेसर थे।
साप्ताहिक पत्र 'केसरी' के सम्पादन में भी
गोपाल गणेश आगरकर, लोकमान्य तिलक के निकट सहयोगी थे, परंतु 'बाल
विवाह' और विवाह की उम्र बढ़ाने के प्रश्न पर आगरकर जी का
तिलक से मतभेद हो गया। इस मतभेद के कारण 1887 में वे साप्ताहिक पत्र 'केसरी' से अलग हो गये। अब उन्होंने स्वयं का 'सुधारक' नामक नया साप्ताहिक निकालना आरंभ किया। 1890 में लोकमान्य
तिलक ने 'दक्कन एजुकेशनल सोसाइटी' छोड़
दी।
गोपाल गणेश आगरकर 1892 में फ़र्ग्युसन कॉलेज के प्रधानाचार्य
नियुक्त किये गए और वे जीवन पर्यंत इसी पद पर रहे। आगरकर जी बड़े उदार विचारों के
व्यक्ति थे। उन्होंने छुआछूत और जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया। वे 'विधवा
विवाह' के
पक्षपाती थे। उनका कहना था कि लड़कों की विवाह की उम्र 20-22 वर्ष और लड़कियों की 15-16 वर्ष होनी चाहिए। 14 वर्ष तक की अनिवार्य शिक्षा और
सह शिक्षा का भी उन्होंने समर्थन किया।
राष्ट्र की उन्नति के लिये सांप्रदायिक एकता को आवश्यक मानने
वाले गोपाल गणेश आगरकर जी ने विदेशी सरकार की 'फूट डालो और राज करो' की
नीति का प्रबल विरोध किया। आर्थिक उन्नति के लिये वे देश का औद्योगीकरण आवश्यक
मानते थे।
समाज सुधार के कार्यों में विशेष योगदान देने वाले गोपाल गणेश
आगरकर जी का निधन 17 जून, 1895 ई. में 43 वर्ष की अल्प
आयु में हुआ।