Madhavrao Sapre
19 जून, 1871 - 23 अप्रॅल, 1926
पं. माधवराव सप्रे राष्ट्रभाषा हिन्दी के उन्नायक, प्रखर
चिंतक, मनीषी संपादक, स्वतंत्रता
संग्राम सेनानी और सार्वजनिक कार्यों के लिये समर्पित कार्यकर्ताओं की श्रृंखला
तैयार करने वाले प्रेरक-मार्गदर्शक थे। गुरु कर्मयोगी पं. माधवराव सप्रे का
कृतित्व और अवदान कालजयी है। माधवराव सप्रे जी की कहानी 'एक
टोकरी भर मिट्टी' को हिंदी की पहली कहानी होने का श्रेय प्राप्त है।
माधवराव सप्रे जी का जन्म 19 जून 1871 में मध्य प्रदेश के दमोह ज़िले के
पथरिया ग्राम में हुआ था। बिलासपुर में मिडिल तक
की पढ़ाई के बाद मेट्रिक शासकीय विद्यालय रायपुर से उत्तीर्ण किया। 1899 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से
बी. ए. करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रुप में शासकीय नौकरी मिली लेकिन जैसा कि
उस समय के देशभक्त युवाओं में एक परंपरा थी सप्रे जी ने भी शासकीय नौकरी की परवाह
न की। सन 1900 में जब समूचे छत्तीसगढ़ में प्रिंटिंग
प्रेस नही था तब इन्होंने बिलासपुर ज़िले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से
"छत्तीसगढ़ मित्र" नामक मासिक पत्रिका निकाली। हालांकि यह
पत्रिका सिर्फ़ तीन साल ही चल पाई। सप्रे जी ने लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी
को यहां हिंद केसरी के रुप में छापना प्रारंभ किया, साथ ही
हिंदी साहित्यकारों व लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए नागपुर से हिंदी ग्रंथमाला भी
प्रकाशित की। इन्होंने कर्मवीर के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई। सप्रे जी ने
लेखन के साथ-साथ विख्यात संत समर्थ रामदास के मराठी दासबोध
व महाभारत की मीमांसा, दत्त भार्गव, श्री राम चरित्र, एकनाथ चरित्र और आत्म विद्या जैसे मराठी ग्रंथों, पुस्तकों
का हिंदी में अनुवाद भी बखूबी
किया। 1924 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के देहरादून अधिवेशन में सभापति रहे सप्रे जी
ने 1921 में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही
पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की। यह दोनों
विद्यालय आज भी चल रहे हैं।
सप्रे जी के कुछ स्मरणीय कथन
- "मैं महाराष्ट्री हूं पर हिंदी के विषय में मु्झे उतना ही अभिमान है
जितना कि किसी हिंदीभाषी को हो सकता है।"
- "जिस शिक्षा से स्वाभिमान की वृत्ति जागृत नहीं होती वह शिक्षा किसी
काम की नहीं है"
- "विदेशी भाषा में शिक्षा होने के कारण हमारी बुद्धि भी विदेशी हो गई
है।"
राजा राममोहन राय ने आधुनिक भारतीय समाज के निर्माण में जो
चिंगारी जगाई थी उसके वाहक के रूप में छत्तीसगढ में वैचारिक सामाजिक क्रांति के
अलख जगाने का काम किसी ने पूरी प्रतिबद्धता से किया है तो निर्विवाद रूप से यह कहा
जायेगा कि वह छत्तीसगढ के प्रथम पत्रकार व हिन्दी की प्रथम कहानी 'एक टोकरी भर मिट्टी' के रचनाकार पं. माधवराव सप्रे
जी ही थे। इन्होंने छत्तीसगढ के पेंड्रा से ‘छत्तीसगढ मित्र’ पत्रिका
का प्रकाशन सन् 1900 में सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम
सेनानी श्री वामन राव लाखे के सहयोग से आरंभ किया था। रायपुर में अध्ययन के दौरान
पं. माधवराव सप्रे, पं. नंदलाल दुबे जी के समर्क में आये जो
इनके शिक्षक थे एवं जिन्होंने अभिज्ञान शाकुन्तलम और उत्तर रामचरित मानस का हिन्दी में अनुवाद किया था व उद्यान मालिनी नामक
मौलिक ग्रंथ भी लिखा था। पं. नंदलाल दुबे ने ही पं. माधवराव सप्रे के मन में
साहित्तिक अभिरुचि जगाई जिसने कालांतर में पं. माधवराव सप्रे को ‘छत्तीसगछ मित्र’ व ‘ हिन्दी केसरी’ जैसे पत्रिकाओं के संपादक के रूप में
प्रतिष्ठित किया और राष्ट्र कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के साहित्यिक गुरु के रूप में एक अलग
पहचान दिलाई।
पं. माधवराव सप्रे सन् 1889 में रायपुर के असिस्टेंट
कमिश्नर की पुत्री से विवाह के बाद श्वसुर द्वारा अनुशंसित नायब
तहसीलदार की नौकरी को ठुकराकर अपने कर्मपथ की ओर बढ गए। पहले रार्बटसन कालेज
जबलपुर फिर 1894 में विक्टोरिया कालेज ग्वालियर एवं 1896 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एफ.ए. पास किया। इसी बीच उनकी पत्नी का
देहावसान हो गया और शिक्षा में कुछ बाधा आ गई। पुन: 1989 में
इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री ली एवं एलएलबी में
प्रवेश ले लिया किन्तु अपने वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण इन्होंनें विधि की
परिक्षा को छोड छत्तीसगढ़ वापस आ गए। छत्तीसगढ़ में आने के बाद परिवार के द्वारा इनका दूसरा विवाह करा दिया गया
जिसके कारण इनके पास पारिवारिक जिम्मेदारी बढ गइ तब इन्होंने सरकारी नौकरी किए
बिना समाज व साहित्य सेवा करने के उद्देश्य को कायम रखने व भरण पोषण के लिए पेंड्रा
के राजकुमार के अंग्रेज़ी शिक्षक के रूप में कार्य किया। समाज सुधार व हिन्दी
सेवा के जज्बे ने इनके मन में पत्र-पत्रिका के प्रकाशन की रुचि जगाई और मित्र वामन
लाखे के सहयोग से ‘छत्तीसगढ मित्र’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया जिसकी
ख्याति पूरे देश भर में फैल गई।
मराठी भाषी होने के बावजूद इन्होंने हिन्दी के
विकास के लिए सतत कार्य किया। सन् 1905 में हिन्दी ग्रंथ प्रकाशक मंडल का गठन कर
तत्कालीन विद्वानों के हिन्दी के उत्कृष्ठ रचनाओं व लेखों का प्रकाशन
धारावाहिक ग्रंथमाला के रूप में आरंभ किया। इस ग्रंथमाला में पं. माधवराव सप्रे जी
के मौलिक स्वदेशी आन्दोलन एवं बायकाट लेखमाला का भी प्रकाशन हुआ। बाद में इस
ग्रंथमाला का प्रकाशन पुस्तकाकार रूप में हुआ, इसकी
लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेज़ सरकार ने सन् 1909 में इसे प्रतिबंधित कर प्रकाशित पुस्तकों
को जब्त कर लिया। हिन्दी ग्रंथमाला के प्रकाशन से राष्ट्रव्यापी धूम मचाने के
बाद पं. माधवराव सप्रे ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से अनुमति प्राप्त कर उनकी आमुख पत्रिका
मराठा केसरी के अनुरूप ‘हिन्दी
केसरी’ का प्रकाशन 13 अप्रैल 1907 को प्रारंभ किया। हिन्दी केसरी अपने स्वाभाविक
उग्र तेवरों से प्रकाशित होता था जिसमें अंग्रेज़ी सरकार की दमन नीति, कालापानी, देश का दुर्देव, बम
के गोले का रहस्य जैसे उत्तेजक खेख प्रकाशित होते थे फलत: 22 अगस्त 1908 में पं. माधवराव सप्रे जी गिरफ्तार कर लिये
गए । तब तक सप्रे जी अपनी केन्द्रीय भूमिका में एक प्रखर पत्रकार के रूप में
संपूर्ण देश में स्थापित हो चुके थे
पत्र-पत्रिका प्रकाशन व संपादन की इच्छा सदैव
इनके साथ रही इसी क्रम में मित्रों के अनुरोध एवं पत्रकारिता के जज्बे के कारण 1919- 1920 में पं. माधवराव सप्रे
जी जबलपुर आ गए और ‘कर्मवीर’ नामक पत्रिका का
प्रकाशन आरंभ किया जिसके संपादक पं. माखन लाल चतुर्वेदी जी बनाए गए। उन्होंने देहरादून में आयोजित 15 वें
अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता भी की एवं अपनी प्रेरणा से जबलपुर
में राष्ट्रीय हिन्दी मंदिर की स्थापना करवाई जिसके सहयोग से ‘छात्र सहोदर’, ‘तिलक’, हितकारिणी’, ‘श्री शारदा’ जैसे हिन्दी
साहित्य के महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का प्रकाशन संभव हुआ जिसका आज तक महत्व
विद्यमान है।
प्रमुख कृतियाँ
- स्वदेशी
आंदोलन और बॉयकाट
- यूरोप
के इतिहास से सीखने योग्य बातें
- हमारे
सामाजिक ह्रास के कुछ कारणों का विचार
- माधवराव
सप्रे की कहानियाँ (संपादन : देवी
प्रसाद वर्मा)
अनुवाद
- हिंदी
दासबोध (समर्थ
रामदास की मराठी में लिखी गई प्रसिद्ध)
- गीता
रहस्य (बाल
गंगाधर तिलक)
- महाभारत
मीमांसा (महाभारत के उपसंहार : चिंतामणी विनायक वैद्य
द्वारा मराठी में लिखी गई प्रसिद्ध पुस्तक)
संपादन
- हिंदी
केसरी (साप्ताहिक समाचार पत्र)
- छत्तीसगढ़ मित्र (मासिक पत्रिका)
पं. माधवराव सप्रे ने छत्तीसगढ़ मित्रा (1900), हिन्दी ग्रंथ माला (1906)
और हिन्दी केसरी (1907) का सम्पादन प्रकाशन कर
हिन्दी पत्राकारिता और साहित्य को नये संस्कार प्रदान किए। नागरी प्रचारिणी सभा काशी की विशाल शब्दकोश योजना के अन्तर्गत आर्थिक
शब्दावली के निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य सप्रे जी ने किया। मराठी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृतियों में से 'दासबोध', 'गीतारहस्य' और 'महाभारत मीमांसा' के प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद सप्रे
जी ने किये। कर्मवीर का प्रकाशन उन्हीं ने कराया और उसके सम्पादक के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी जैसा तेजस्वी सम्पादक हिन्दी संसार को
दिया। 1924 के देहरादून हिन्दी साहित्य सम्मेलन की
अध्यक्षता पं.माधवराव सप्रे ने की। उनका एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवदान स्वतंत्राता
संग्राम, हिन्दी की सेवा और सामाजिक कार्यों के लिए सैकड़ों
समर्पित कार्यकर्त्ताओं की श्रृंखला तैयार करना है। 19 जून 1984 को राष्ट्र की बौद्धिक धरोहर को संजोने और
भावी पीढ़ियों की अमानत के रूप में संरक्षित करने के लिये जब एक अनूठे संग्रहालय
की स्थापना का विचार फलीभूत हुआ तब सप्रे जी के कृतित्व के प्रति आदर और कृतज्ञता
अभिव्यक्त करने के लिये संस्थान को 'माधवराव सप्रे समाचार पत्र
संग्रहालय' नाम दिया गया।
हिंदी के पहले कहानीकार पं. माधवराव सप्रे का
निधन 23 अप्रॅल, 1926 को हो गया।