भारत का विभाजन माउंटबेटन
योजना के आधार
पर निर्मित भारतीय
स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में
काहा गया कि 15
अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्त्योपनिवेश बना दिए जाएंगें और उनको ब्रिटिश
सरकार सत्ता सौंप देगी. स्वतंत्रता
के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान
अधिराज्य (बाद में इस्लामी जम्हूरिया ए पाकिस्तान)
और 15 अगस्त को भारतीय
संघ (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस घटनाक्रम में
मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत को पूर्वी
पाकिस्तान और भारत
के पश्चिम
बंगाल राज्य
में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत को पश्चिमी पाकिस्तान
के पंजाब प्रांत और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश
भारत में से
सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। इसी
तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में
नहीं गिना जाता है। (नेपाल और भूटान इस दौरान भी स्वतंत्र राज्य थे और इस
बंटवारे से प्रभावित नहीं हुए।)
15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान
कानूनी तौर पर दो स्वतंत्र राष्ट्र बने। लेकिन
पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश
वाइसराॅय लुइस
माउंटबैटन, करांची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले
सके। इसलिए पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त और
भारत में 15
अगस्त को मनाया जाता है।
भारत के विभाजन से करोड़ों लोग
प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 5 लाख लोग मारे
गए और करीब 1.45
करोड़ शरणार्थियों ने अपना
घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली।
भारत के
ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में "फूट डालो और राज्य करो" की नीति
का अनुसरण किया। उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों
में बाँट कर रखा। उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति। 20वीं सदी आते-आते मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और
हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार
देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिए भारत में जब आज़ादी की
भावना उभरने लगी तो आज़ादी
की लड़ाई को
नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।
सन् 1906 में ढाका में बहुत से मुसलमान नेताओं ने मिलकर मुस्लिम
लीग की
स्थापना की। इन नेताओं का विचार था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम
अधिकार उपलब्ध थे तथा भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस हिन्दुओं
का प्रतिनिधित्व करती थी। मुस्लिम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मांगें रखीं। 1930 में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में
प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद
इक़बाल ने एक
भाषण में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई।1935 में सिंध प्रांत की विधान सभा ने भी यही मांग
उठाई। इक़बाल और मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने मुहम्मद
अली जिन्ना को इस
मांग का समर्थन करने को कहा। इस समय
तक जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में लगते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि कांग्रेसी
नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे। लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ़ तौर पर कहा कि वह दो
अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं
"हिन्दुओं
और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज़ और साहित्य बिलकुल अलग-अलग हैं।.. एक राष्ट्र
बहुमत में और दूसरा अल्पमत में, ऐसे दो
राष्ट्रों को साथ बाँध कर रखने से असंतोष बढ़ कर रहेगा और अंत में ऐसे राज्य की
बनावट का विनाश हो कर रहेगा।"
हिन्दू
महासभा जैसे
हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के प्रबल विरोधी थे, लेकिन मानते थे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद हैं। 1937 में इलाहाबाद में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में एक
भाषण में वीर
सावरकर ने कहा
था - आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और
मुसलमान। कांग्रेस
के अधिकतर नेता पंथ-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के
विरुद्ध थे। महात्मा
गांधी का
विश्वास था कि हिन्दू और मुसलमान साथ रह सकते हैं और उन्हें साथ रहना चाहिये।
उन्होंने विभाजन का घोर विरोध किया: "मेरी पूरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध
विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं। ऐसे
सिद्धांत का अनुमोदन करना मेरे लिए ईश्वर को नकारने के समान है।" बहुत
सालों तक गांधी और उनके अनुयायियों ने कोशिश की कि मुसलमान कांग्रेस को छोड़ कर न
जाएं और इस प्रक्रिया में हिन्दू और मुसलमान गरम दलों के नेता उनसे बहुत चिढ़ गए।
अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से
हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के प्रति शक को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग ने
अगस्त 1946 में सिधी
कार्यवाही दिवस मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे किये जिसमें करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए।
ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि
देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में न आ जाए।
विभाजन
की प्रक्रिया
भारत के
विभाजन के ढांचे को '3 जून
प्लान' या माउण्टबैटन
योजना का नाम
दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर
सिरिल रैडक्लिफ ने तय
की। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में
शामिल किए गए। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय
स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। इस
समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने
तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों
को आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे।
अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने
बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ। विभाजन
के बाद पाकिस्तान को संयुक्त
राष्ट्र में नए
सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली।
संपत्ति का बंटवारा
ब्रिटिश भारत की संपत्ति को
दोनों देशों के बीच बाँटा गया लेकिन यह प्रक्रिया बहुत लंबी खिंचने लगी। गांधीजी
ने भारत सरकार पर दबाव डाला कि वह पाकिस्तान को धन जल्दी भेजे जबकि इस समय तक भारत
और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरु हो चुका था और दबाव बढ़ाने के लिए अनशन शुरु कर दिया।
भारत सरकार को इस दबाव के आगे झुकना पड़ा और पाकिस्तान को धन भेजना पड़ा।२२
अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को
55 करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने
आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी
समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह
राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी। नाथूराम
गोडसे ने
महात्मा गांधी के इस काम को उनकी हत्या करने का एक कारण बताया।
दंगा फ़साद
बहुत से विद्वानों का मत है कि
ब्रिटिश सरकार ने विभाजन की प्रक्रिया को ठीक से नहीं संभाला। चूंकि स्वतंत्रता की
घोषणा पहले और विभाजन की घोषणा बाद में की गयी, देश में शांति कायम रखने की जिम्मेवारी भारत और पाकिस्तान की नयी
सरकारों के सर पर आई। किसी ने यह नहीं सोचा था कि बहुत से लोग इधर से उधर जाएंगे।
लोगों का विचार था कि दोनों देशों में अल्पमत संप्रदाय के लोगों के लिए सुरक्षा का
इंतज़ाम किया जाएगा। लेकिन दोनों देशों की नयी सरकारों के पास हिंसा और अपराध से
निबटने के लिए आवश्यक इंतज़ाम नहीं था। फलस्वरूप दंगा फ़साद हुआ और बहुत से लोगों
की जाने गईं और बहुत से लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा। अंदाज़ा लगाया जाता है कि
इस दौरान लगभग 5
लाख से 30 लाख लोग मारे गये, कुछ
दंगों में, तो कुछ यात्रा की मुश्किलों से।
आलोचकों का मत है कि आजादी के
समय हुए नरसंहार व अशांति के लिये अंग्रेजों द्वारा समय पूर्व सत्ता हस्तान्तरण
करने की शीघ्रता व तात्कालिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता उत्तरदायी थी।
जन स्थानान्तरण
विभाजन
के बाद के महीनों में दोनों नये देशों के बीच विशाल जन स्थानांतरण हुआ। पाकिस्तान
में बहुत से हिन्दुओं और सिखों को बलात् बेघर कर दिया गया। लेकिन
भारत में गांधीजी ने कांग्रेस पर दबाव डाला और सुनिश्चित किया कि मुसलमान अगर
चाहें तो भारत में रह सकें। सीमा रेखाएं तय होने के बाद लगभग 1.45 करोड़ लोगों ने हिंसा के डर से सीमा
पार करके बहुमत संप्रदाय के देश में शरण ली। भारत
की जनगणना 1951 के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और
72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत
आए। इसमें से
78 प्रतिशत स्थानांतरण पश्चिम में, मुख्यतया पंजाब में हुआ।
अन्तरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विभाजन
अगस्त, 1947 में भारत और पाकिस्तान में सत्ता का
हस्तांतरण ब्रिटेन द्वारा उपनिवेशवादी शासन् को खत्म करने की दिशा में पहला
महत्त्वपूर्ण कदम था, जिसके
साथ उसकी अंतरराष्ट्रीय शक्ति के दूरगामी परिणाम जुड़े थे।
भारत का यह विभाजन अठारहवीं सदी
में यूरोप, एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व में किए गए अनेक विभाजनों में से एक है।
प्रायः अधिकांश विभाजनों में जिस तरह विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच जितनी हिंसा
हुई, उससे कहीं अधिक हिंसा इस विभाजन में
हुई। साम्राज्यशाही ब्रिटेन द्वारा किया गया भारत का यह विभाजन उसके द्वारा किए गए
चार विभाजनों में से एक है। उसने आयरलैंड, फिलिस्तीन और साइप्रस के भी विभाजन कराए। उसने इन विभाजनों
का कारण यह बताया कि अलग-अलग समुदायों के लोग एक साथ मिलकर नहीं कर सकते। जबकि इन
विभाजनों के पीछे केवल धार्मिक और नस्ली कारण नहीं थे, बल्कि ब्रिटेन के सामरिक और राजनीतिक हित भी शामिल थे, जिनके आधार पर समझौतों के समय उसने अपनी रणनीति बनाई और
चालें चलकर विभाजन कराए। वस्तुतः, ब्रिटेन
की इन्हीं चालों की वजह से ये चारों विभाजन हुए।