शंभुनाथ डे
1 फ़रवरी, 1915 - 15 अप्रॅल, 1985
शंभुनाथ डे भारतीय वैज्ञानिक थे। रॉबर्ट कॉख द्वारा साल 1884 में हैजे के जीवाणु खोजने के 75 साल बाद बंगाल के इस वैज्ञानिक ने पता लगाया था कि जीवाणु द्वारा पैदा किया गया एक ज़हर शरीर में पानी की कमी और रक्त के गाढ़े होने का कारण बनता है, जिसके कारण आखिरकार हैजे के मरीज की जान चली जाती है।
शंभुनाथ डे का जन्म सन 1915 में ग़रीबटी नामक गाँव, हुगली ज़िला, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनके पिता दशरथी डे तथा माता छत्तेश्वरी एक साधारण परिवार से थे। दशरथी डे अपने पिता के बड़े पुत्र थे, इसीलिए पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी स्वयं सम्भाली। उन्होंने एक दुकान पर सहायक के तौर पर काम किया और फिर बाद में अपना स्वयं का एक छोटा सा व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया। शंभुनाथ डे के चाचा परिवार में एकमात्र शिक्षित व्यक्ति थे। उन्होंने ही शंभुनाथ डे में शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न की।
सन 1940 के दौर में भारत में हैजे के कारण होने वाली मौतों की संख्या काफी ज्यादा हुआ करती थी। इनसे दु:खी होकर शंभुनाथ डे ने हैजे के ऊपर शोध करना शुरू किया था। हालांकि वह उस समय लंदन स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज हॉस्पीटल मेडिकल स्कूल में आधिकारिक तौर पर दिल की बीमारी से संबंधित एक विषय पर शोध कर रहे थे। वह 1949 में भारत लौटकर आए और यहां काम करने लगे। शंभुनाथ डे ने हैजा होने के बाद किडनी पर होने वाले असर और उसमें आने वाले अंतर पर शोध करना शुरू किया।
शंभुनाथ डे कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के पेथोलॉजी विभाग के पूर्व निदेशक और शोधकर्ता थे। उन्होंने पता लगाया था कि हैजे के जीवाणु द्वारा पैदा किया गया एक ज़हर शरीर में पानी की कमी और रक्त के गाढ़े होने का कारण बनता है, जिसके कारण आखिरकार हैजे के मरीज की जान चली जाती है। उन्होंने कई दिक्कतों और मुसीबतों के बाद भी कोलकाता के बोस संस्थान में यह बेहद ज़रूरी और खास मानी जाने वाली खोज की थी। साधनों की कमी के बावजूद भी उन्होंने हैजे के जीवाणु द्वारा पैदा किए जाने वाले जानलेवा टॉक्सिन के बारे में पता लगाया था। इसके बाद दुनिया भर में अनगिनत हैजे के मरीजों की जान मुंह के रास्ते पानी देकर शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा बरकरार रख बचाई गई।
डॉ. शंभुनाथ डे की मृत्यु 70 वर्ष की आयु में 15 अप्रॅल, 1985 में हुई।