Monday, May 11, 2020

फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल


फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल 
12 मई 1820 - 13 अगस्त 1910
फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल  को आधुनिक नर्सिग आन्दोलन का जन्मदाता माना जाता है। दया  सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल "द लेडी विद  लैंप" (दीपक वाली महिला) के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका जन्म एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था। लेकिन उच्च कुल में जन्मी फ्लोरेंस ने सेवा का मार्ग चुना। 1845 में परिवार के तमाम विरोधों  क्रोध के पश्चात भी उन्होंने अभावग्रस्त लोगों की सेवा का व्रत लिया। दिसंबर 1844 में उन्होंने चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने बनाने का कार्यक्रम आरंभ किया था। बाद में रोम के प्रखर राजनेता सिडनी हर्बर्ट से उनकी मित्रता हुई। नर्सिग के अतिरिक्त लेखन और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी पर उनका पूरा ध्यान रहा। फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा। अक्टूबर 1854 में उन्होंने 38 स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा गया। यहाँ तो साक्षात नरक का साम्राज्य था। रोनेचीखनेचिल्लानेपुकारने और कराहने का सिलसिला है कि टूटता नहीं। माहौल में जितना दर्द हैउतना ही डर भी। जितने उजले हिस्से हैंउतने ही स्याह कोने भीजहां सिवाय दर्द और तकलीफ के कुछ भी साफ नहीं। कुछ घायल फौजी बार-बार करवटें बदलते हैं बदन ठीक बिस्तरचैन मिलेतो कैसेयहां जितने इंसान नहींउससे ज्यादा तरह की बदबू हैं। ऐसी-ऐसी बदबू कि मन होता हैनाक  होतीतो अच्छा था। कोई हिम्मत हारकर बेसुध पड़ा हैतो किसी की आंखें घर-परिवार के लिए बहे सूखे आंसुओं से पथरा गई हैं। ऐसे-ऐसे मंजर हैं कि मन तड़प उठता है। उनकी बेहाली का जिक्र क्या करेंजो युद्ध भूमि में कोई अंग गंवाकर आए हैं या जिन्हें अस्पताल में जान की खातिर कुछ हमेशा के लिए खोना पड़ा है। अस्पताल भर मरीज हैं और मुट्ठी भर डॉक्टर। उन्हीं के बीच नर्सों का दल  खड़ा हुआ है और उनमें सबसे आगे हैं फ्लोरेंस नाइटेंगल। तुर्की के इस मोर्चे पर घायल फौजियों की सेवा के लिए पहली बार महिला नर्सों को नाइटेंगल के नेतृत्व में भेजा गया हैं। नर्सें स्तब्ध हैं और डॉक्टर आश्चर्य से उन्हें देख रहे हैं कि यहां औरतों का क्या कामये कहां  गईं जंग के मैदान मेंयहां इनसे क्या होगाये यहां हमारे काम और बोझ ही बढ़ाएंगी। डॉक्टर हिकारत से देख रहे हैं और नाइटेंगल की नजरों में यह उम्मीद भरी है कि उनका इस्तकबाल किया जाएगा। दूर ब्रिटेन से खतरनाक सफर तय कर 38 नर्सें आई हैंपर डॉक्टर खुश नहीं हैं। प्रभारी डॉक्टर ने मान देना तो छोड़िएउचित अभिवादन की भी जरूरत नहीं समझी।
वैसे भीकरीब 165 साल पहले का वह दौर डॉक्टर और नर्स के बीच जुगलबंदी का युग नहीं था। बीमारियों और तकलीफों के खिलाफ डॉक्टर अकेले ही लड़ते आए थे। उस माहौल में नाइटेंगल अपनी जरूरत महसूस कर रही थींलेकिन डॉक्टर उन्हें गैर-जरूरी मान रहे थे। नर्सों को सेवा का मौका नहीं मिलाआधिकारिक आदेश लाने-दिखाने के लिए कहकर टाल दिया गया। नाइटेंगल बहुत आहत हुईंब्रिटेन के नामी खानदान की बेटी का अपमान तो दूर की बातकभी उपेक्षा तक नहीं हुई थी। 12 दिन लंबे सफर के जोश-जुनून-जज्बे पर चंद लम्हों में पानी फिर गया था। उनकी टीम को भी बेइज्जती का एहसास हो रहा था। खैरनाइटेंगल को झटके से यह अंदाजा हो गया कि खुद की जरूरत को साबित करना होगा। सबसे पहले नर्सों ने उन बैरकों को साफ कियाजो उन्हें रहने के लिए नसीब हुए थे। ऐसा ही होता हैजब आप अपने को सुधारते या कुछ अच्छा करते हैंतो लोग आपको देखने-समझने को मजबूर होने लगते हैं।
उधरमोर्चे पर जंग अचानक तेज हो गई। रूस के खिलाफ जंग में घायल होकर मित्र देशों- ब्रिटेनतुर्की और फ्रांस के फौजी बड़ी तादाद में अस्पताल पहुंचने लगे। चीख-पुकार से पूरे बैरक अस्पताल में त्राहि-त्राहि का आलम हो गया। हालात ऐसे बिगडे़ कि डॉक्टरों के हाथों से निकलने लगे और यही मौका थाजब नाइटेंगल अपनी टीम के साथ सेवा के अनहद मैदान में उतर आईं। बहुत जल्दी ही डॉक्टरों का काम आधा हो गयाउनकी नजरें झुककर नर्सों का अभिवादन करने लगीं। लेकिन नाइटेंगल को इतने से सुकून नहीं था। रोज करीब 50 फौजी ताबूत में निकलते थेआखिर क्योंजितने फौजी जंग के मैदान में शहीद होते थेउससे कहीं ज्यादा अस्पताल में अंतिम सांसें लेते थे। फ्लोरेंस को समझते देर  लगी। फौजी घाव लेकर आते हैंसंक्रमण से शहीद होते हैं और संक्रमण का जोर इसलिए कि साफ-सफाई पर कोई ध्यान नहीं। मरीजों को छोड़िएडॉक्टर भी शायद ही हाथ धोते थे और एक के बाद एकअनेक फौजियों के घावों को हाथ लगाते थे। फिर क्या थासभी वार्डों की पूरी और नियमित सफाई होने लगी। गंदगी के अंबारों को नापते इधर-उधर दौड़ते चूहे भगाए गए।
फ्लोरेंस ने मरीजों की देखभाल का एक मानक तैयार कियाजिसे कड़ाई से लागू किया गया। हाथों की बार-बार सफाई। स्नानसाफ कपडे़साफ बिस्तर-चादरअच्छा भोजन जैसे बुनियादी इंतजामों ने कमाल कर दिया। नाइटेंगल लगभग रात भर जरूरतमंद मरीजों की तिमारदारी में ऐसे लगी रहतीं कि उन्हें 
"The Lady With The Lamp" नाम मिल गया। ताबूतों की जरूरत इतनी घटी कि वह अस्पताल मिसाल बन गया उन्होंने दुनिया में कामयाब ह्यनर्सिंगह्ण की नींव रख दी थी। आज पूरी दुनिया उनका लोहा मानती है। इस समय किए गए उनके सेवा कार्यो के लिए ही उन्होंने "The Lady With The Lamp" की उपाधि से सम्मानित किया गया। जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती। लेकिन युद्ध में घायलों की सेवा सुश्रूषा के दौरान मिले गंभीर संक्रमण ने उन्हें जकड़ लिया था। 1859 में फ्लोरेंस ने सेंट थॉमस अस्पताल में एक नाइटिंगेल प्रक्षिक्षण विद्यालय की स्थापना की। इसी बीच उन्होंने नोट्स ऑन नर्सिग पुस्तक लिखी। जीवन का बाकी समय उन्होंने नर्सिग के कार्य को बढ़ाने  इसे आधुनिक रूप देने में बिताया। 1869 में उन्हें महारानी विक्टोरिया ने रॉयल रेड क्रॉस से सम्मानित किया। 90 वर्ष की आयु में 13 अगस्त, 1910 को उनका निधन हो गया।
उनसे पहले कभी भी बीमार घायलो के उपचार पर ध्यान नहीं दिया जाता था किन्तु इस महिला ने तस्वीर को सदा के लिये बदल दिया। उन्होंने क्रीमिया के युद्ध के समय घायल सैनिको की बहुत सेवा की थी। वे रात-रात भर जाग कर एक लालटेन के सहारे इन घायलों की सेवा करती रही इस लिए उन्हें लेडी विथ दि लैंप का नाम मिला था उनकी प्रेरणा से ही नर्सिंग क्षेत्र में महिलाओं को आने की प्रेरणा मिली थी।

ensoul

money maker

shikshakdiary

bhajapuriya bhajapur ke