हम जितना खेतों में उगाते हैं, उसका 40 फीसद उचित रखरखाव
के अभाव में नष्ट हो जाता है। यह व्यर्थ गया अनाज बिहार जैसे राज्य का पेट भरने के
लिए काफी है। हर साल 92600 करोड़ कीमत का 6.7 करोड़ टन खाद्य उत्पात की बर्बादी, वह भी उस देश में
जहां बड़ी आबादी भूखे पेट सोती हो, बेहद गंभीर मामला है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी की गई रपट में बताया गया है
कि भारत में 19.4 करोड़ लोग भूखे सोते हैं, हालांकि सरकार के प्रयासों से पहले से ऐसे लोगों की संख्या कम हुई है।
हमारे यहां गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या को लेकर भी गफलत
है, हालांकि यह आंकड़ा 29 फीसद के
आसपास सर्वमान्य है। भारत में सालाना 10 लाख टन प्याज और 22
लाख टन टमाटर खेत से बाजार पहुंचने से पहले ही सड़ जाते हैं। वहीं 50
लाख अंडे उचित भंडारण के अभाव में टूट जाते हैं। चावल का 5.8
प्रतिशत, गेहूं का 4.6 प्रतिशत,
केले का 2.1 प्रतिशत खराब हो जाता है। वहीं
गन्ने का 26.5 प्रतिशत हर साल बेकार होता है। भूख से मौत या
पलायन, वह भी उस देश में जहां खाद्य और पोषण सुरक्षा की कई
योजनाएं अरबों रुपये की सब्सिडी पर चल रही हैं, जहां
मध्याह्न भोजन योजना के तहत हर दिन 12 करोड़ बच्चों को दिन
का भरपेट भोजन देने का दावा हो, जहां हर हाथ को काम और हर
पेट को भोजन के नाम पर हर दिन करोड़ों का सरकारी फंड खर्च होता हो; दर्शाता है कि योजनाओं और हितग्राहियों के बीच अभी भी पर्याप्त दूरी है।
वैसे, भारत में सालाना पांच साल से कम उम्र के 10 लाख बच्चों के भूख या कुपोषण से मरने के आंकड़े संयुक्त राष्ट्र संगठन ने
जारी किए हैं। देश में हर साल उतना गेहूं बर्बाद होता है, जितना
ऑस्ट्रेलिया की कुल पैदावार है। नष्ट हुए गेहूं की कीमत लगभग 50 हजार करोड़ होती है, और इससे 30 करोड़ लोगों को सालभर भरपेट खाना दिया जा सकता है। हमारा 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बेकाम हो जाता है कि उसे रखने के लिए भंडारण की
सुविधा नहीं है। देश के कुल उत्पादित सब्जी, फल, का 40 प्रतिशत समय पर मंडी नहीं पहुंच पाने के कारण
सड़-गल जाता है। औसतन हर भारतीय एक साल में छह से 11 किलो
अन्न बर्बाद करता है। जितना अन्न हम एक साल में बर्बाद करते हैं, उसकी कीमत से ही कई सौ कोल्ड स्टोरेज बनाए जा सकते हैं जो फल-सब्जी को
सड़ने से बचा सकें। एक साल में जितना सरकारी खरीदी का धान और गेहूं खुले में पड़े
होने के कारण मिट्टी हो जाता है, उससे ग्रामीण अंचलों में
पांच हजार वेयरहाउस बनाए जा सकते हैं। यह आंकड़ा किसी से दबा-छुपा नहीं है,
बस जरूरत है तो एक प्रयास करने की। यदि पंचायत स्तर पर ही एक कुंटल
अनाज का आकस्मिक भंडारण और उसे जरूरतमंद को देने की नीति का पालन होने लगे तो कम
से कम कोई भूखा तो नहीं मरेगा। बुंदेलखंड के पिछड़े जिले महोबा के कुछ लोगों ने ‘‘रोटी बैंक’ बनाया है। बैंक से जुड़े लोग भोजन के समय
घरों से ताजा बनी रोटिया एकत्र करते हैं और उन्हें अच्छे तरीके से पैक कर भूखे
लोगों तक पहुंचाते हैं। बगैर किसी सरकारी सहायता के चल रहे इस अनुकरणीय प्रयास से
हर दिन 400 लोगों को भोजन मिल रहा है। पाकिस्तान में तो
सार्वजनिक समारोह में खाने की बर्बादी पर सीधे गिरफ्तारी का कानून है जबकि हमारे
यहां होने वाले शादी समारोह में आम तौर पर 30 प्रतिशत खाना
बेकार जाता है।