नौरोज़ पारसी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों
का एक प्रमुख त्योहार है। नौरोज़ नए वर्ष का त्योहार है, जो
सामान्यत: ज़रथुस्त्रीय मत और पारसी संप्रदाय से संबंधित है।
धार्मिक मान्यताएँ
- नौरोज़
का त्योहार कई देशों में मनाया जाता है, जिनमें ईरान, भारत और अफ़गानिस्तान शामिल
हैं।
- यह
सामान्यत: 21 मार्च को शुरू होता है, जो इनमें से कई देशों में नए
वर्ष का प्रथम दिन है।
- पारसियों
में नए नौरज़ एक ऐसा अनुष्ठान है, जिसमें पांच निर्धारित
पूजा-कार्यों की आवश्यकता होती है-
- अफ्रिंगन,
यानी प्यार और प्रशंसा की प्रार्थनाएं
- बाज,
यानी यज़ताओं के सम्मान में प्रार्थनाएं या फ़्रावाशी के सम्मानार्थ अर्चनाएं
- यस्न,
एक अनुष्ठान, जिसमें पवित्र पेय हाओमा
चढ़ाना और विधिपूर्वक पान करना
- फ़्रावर्तिगिन
या फ़रोक्षी, यानी
स्वर्गवासियों की स्मृति में प्रार्थना
- सैटम
यानी अंत्येष्टि भोज के समय उच्चारित प्रार्थनाएं।
- दिन
भर पारसी लोग एक-दूसरे का अभिवादन हमाज़ोर रीति से करते हैं,
जिसमें एक व्यक्ति का दाहिना हाथ दूसरे की हथेलियों के बीच रखा
जाता है। बाद में अभिनंदन और शुभकामनाओं के उद्गार व्यक्त किए जाते हैं।
सूर्योदय के साथ ही उत्सव शुरु हो जाता है। सुबह, सभी वयस्क, नवयुवक और बच्चे फावड़े उठाते हैं, किसी झरने या
आरिक (छोटी नहर) पर जाते हैं और उसे साफ़ करते हैं। वे सम्माननीय वृद्ध लोगों के
मार्गदर्शन में पेड़ भी लगाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, उन्हें
कहना पड़ता है- ‘’लोगों की स्मृति
में एक पूरा झुण्ड छोड़कर जाने से अच्छा है एक पेड़ छोड़कर जाना’’ और ‘’यदि आप एक पेड़ काटेंगे तो आपको दस पेड़ लगाने होंगे’’ इस रिवाज़ के पूरा होने के बाद, चमकीले कपड़ों में सजे तीन हरकारे पूरे गाँव में सबको उत्सव में शामिल
होने का निमंत्रण देते हैं। कभी-कभी ये कज़ाक परीकथाओं के हीरोज़, अल्डर कोसे, झिरेन्शी और सुन्दर काराशश की तरह भी
सजते हैं। उत्सव में, सबके साथ खेलने वाले खेल, पारंपरिक घुड़दौड़ और अन्य प्रतिस्पर्धाएँ शामिलहोती हैं। ‘’आइकिश-उइशिश’’
(एक दूसरे की ओर) और ‘’औदरीस्पेक’’ (अच्छे
घुड़सवार) इस उत्सव के लोकप्रिय खेल हैं। लड़के और लड़कियाँ दोनों ही इनमें भाग
लेते हैं। दिन के अंत में मुशायरा होता है। दो अकिन (शायर) एक गायन प्रतियोगिता
में भाग लेते हैं। स्पर्धा दिन डूबने पर समाप्त होती है जब, आम
धारणा के अनुसार अच्छाई ने बुराई को हराया था। यह त्योहार, लोगों
के आग जलाने, गाँव में मशालें लेकर निकलने और नाचने-गाने के
साथ समाप्त होता है।