- आजादी के बाद से भारत में विलुप्त हुई 250 बोलियां
- बोलियों के
विलुप्त होने में पूर्वोत्तर के राज्य सबसे आगे
- अरुणाचल
प्रदेश में 29 बोलियां खत्म
होने के कगार पर
- संविधान की
आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं
हैं शामिल
आज पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रही है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि
हर दूसरे सप्ताह में दुनिया से एक भाषा या बोली विलुप्त हो जाती है। कभी दुनिया
में सबसे ज्यादा भाषाओं और बोलियों का घर रहे भारत से भी कई आश्चर्यजनक रूप से
गायब हो चुकी हैं।
विलुप्त होने के कगार पर पहुंची कई बोलियां
भारत को भाषाओं और बोलियों का घर कहा जाता है लेकिन कभी सक्रिय
रूप से बोली जाने वाली 780 बोलियों
में से आज 500 से भी कम बची हैं। 2010 में
पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार इन 780
बोलियों में से 600 लुप्तप्राय हैं। इसका मतलब
यह है कि बच्चे इन बोलियों को नहीं सीखते हैं या इन्हें बोलने वाले केवल बड़ी उम्र
के लोग ही हैं।
आजादी
के बाद से भारत में विलुप्त हुई 250 बोलियां
भारत में बोलियों के लुप्त होने की स्थिति कितनी गंभीर है इसका
अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर 4,000 लुप्तप्राय भाषाओं या बोलियों में
भारत की हिस्सेदारी 10 फीसदी है। आजादी के बाद से भारत में
250 बोलियां विलुप्त हो चुकी हैं।
42 भारतीय बोलियां
गंभीर रूप से संकटग्रस्त
2014 में संसद में मानव संसाधन विकास मंत्रालय
द्वारा दिए गए एक जवाब में कहा गया था कि यूनेस्को के आंकड़ों के आधार पर 42
भारतीय बोलियां गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। जिसका अर्थ यह है कि
इसे केवल बड़े उम्र के लोग ही बोल रहे हैं। उन बोलियों के लुप्तप्राय होने का खतरा
इसलिए बढ़ गया है जिनको बच्चे मातृभाषा के रूप में नहीं सीख रहे हैं।
भाषाओं
के विलुप्त होने में पूर्वोत्तर के राज्य सबसे आगे
बोलियों के विलुप्त होने से सबसे अधिक प्रभावित उत्तर पूर्वी
हिस्सा है। अकेले अरुणाचल प्रदेश में 29 भाषाएं ऐसी हैं जो या तो लुप्तप्राय हैं या उनके खत्म होने का खतरा ज्यादा
है।
संविधान
की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं
हैं शामिल
संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को आधिकारिक रूप से शामिल किया गया है। संविधान
में वर्णित भाषाओं की यह संख्या किसी भी देश की आधिकारिक भाषाओं की सूची में सबसे
ज्यादा है।
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