आज़ाद हिन्द फ़ौज स्थापना दिवस 21 अक्टूबर को बनाया जाता है। 'नेताजी' के
नाम से विख्यात सुभाष चन्द्र बोस ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21
अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द
सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द
फ़ौज' का गठन किया। इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर
दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था।
इतिहास
सामान्य धारणा यह है कि आज़ाद हिन्द फ़ौज और आज़ाद हिन्द सरकार की
स्थापना नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जापान में की थी; पर इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध के बाद अफ़ग़ानिस्तान में
महान् क्रान्तिकारी राजा महेन्द्र प्रताप ने आज़ाद हिन्द सरकार और फ़ौज बनायी थी। इसमें 6,000 सैनिक थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इटली में क्रान्तिकारी सरदार
अजीत सिंह ने 'आज़ाद हिन्द लश्कर' बनाई
तथा 'आज़ाद हिन्द रेडियो' का संचालन
किया। जापान में रासबिहारी बोस ने भी
आज़ाद हिन्द फ़ौज बनाकर उसका जनरल कैप्टेन मोहन सिंह को बनाया। भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल
से सैन्य बल द्वारा मुक्त कराना ही इस फ़ौज का उद्देश्य था।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस 5 दिसम्बर, 1940 को
जेल से मुक्त हो गये; पर उन्हें कोलकाता में अपने घर पर ही
नजरबन्द कर दिया गया। 18 जनवरी, 1941 को
नेताजी गायब होकर काबुल होते हुए जर्मनी जा पहुँचे और हिटलर
से भेंट की। वहीं सरदार अजीत सिंह ने उन्हें आज़ाद हिन्द लश्कर के बारे में बताकर
इसे और व्यापक रूप देने को कहा। जर्मनी में बन्दी ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों
से सुभाष बाबू ने भेंट की। जब उनके सामने ऐसी सेना की बात रखी गयी, तो उन सबने इस योजना का स्वागत किया।
नेताजी जी का नेतृत्व
जापान में रासबिहारी बोस द्वारा निर्मित ‘इण्डिया इण्डिपेण्डेस लीग’ (आजाद हिन्द संघ) का जून, 1942 में
एक सम्मेलन हुआ, जिसमें अनेक देशों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
इसके बाद रासबिहारी बोस ने जापान शासन की सहमति से नेताजी को आमन्त्रित किया। मई, 1943 में
जापान आकर नेताजी ने प्रधानमन्त्री जनरल तोजो से भेंट कर अंग्रेज़ों से युद्ध की
अपनी योजना पर चर्चा की। 16 जून को जापानी संसद में नेताजी को सम्मानित किया गया। नेताजी 4 जुलाई, 1943 को
आज़ाद हिन्द फ़ौज के प्रधान सेनापति बने।
सुभाषचंद्र बोस का सम्बोधन
9 जुलाई को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने एक समारोह में 60,000 लोगों
को सम्बोधित करते हुए कहा- "यह सेना न केवल भारत को स्वतन्त्रता प्रदान
करेगी, अपितु स्वतन्त्र भारत की सेना का भी निर्माण करेगी।
हमारी विजय तब पूर्ण होगी, जब हम ब्रिटिश साम्राज्य को दिल्ली के लाल क़िले में
दफना देंगे। आज से हमारा परस्पर अभिवादन जय हिन्द और हमारा नारा दिल्ली चलो होगा।" सुभाषचंद्र बोस ने 4 जुलाई, 1943 को ही तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा का उद्घोष किया।
उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 ई. को सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार 'आज़ाद हिन्द
सरकार' की स्थापना की। सुभाषचन्द्र बोस इस सरकार के राष्ट्रपति,
प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनों थे। वित्त विभाग एस. सी चटर्जी
को, प्रचार विभाग एस. ए. अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी
स्वामीनाथन को सौंपा गया।
प्रतीक चिह्न
'आज़ाद हिन्द फ़ौज' के प्रतीक चिह्न के लिए एक झंडे
पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। 'क़दम-क़दम बढाए
जा, खुशी के गीत गाए जा'- इस संगठन का
वह गीत था, जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह
से भर उठते थे। जापानी सैनिकों के साथ आज़ाद हिन्द फ़ौज रंगून (यांगून) से होती
हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई 18 मार्च सन 1944
ई. को कोहिमा और इम्फ़ाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों में पहुंच गई।
ब्रिगेड
जर्मनी, जापान तथा उनके समर्थक देशों द्वारा 'आज़ाद हिन्द सरकार' को मान्यता प्रदान की गई। इसके
पश्चात् नेताजी बोस ने सिंगापुर एवं रंगून में आज़ाद हिन्द फ़ौज का मुख्यालय
बनाया। पहली बार सुभाषचन्द्र बोस द्वारा ही महात्मा गाँधी के
लिए 'राष्ट्रपिता' शब्द का प्रयोग किया
गया। जुलाई, 1944 ई.
को सुभाषचन्द्र बोस ने रेडियो पर गांधी जी को संबोधित करते हुए कहा- "भारत की स्वाधीनता का आख़िरी
युद्ध शुरू हो चुका है। हे राष्ट्रपिता! भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम
आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएं चाहते हैं।" इसके अतिरिक्त फ़ौज की बिग्रेड को
नाम भी दिये गए-
- महात्मा
गांधी ब्रिगेड
- अबुल
कलाम आज़ाद ब्रिगेड
- जवाहरलाल
नेहरू ब्रिगेड
- सुभाषचन्द्र
बोस ब्रिगेड
बोस की मृत्यु और फ़ौज की पराजय
कैप्टेन शाहनवाज के नेतृत्व में आज़ाद हिन्द फ़ौज ने रंगून से दिल्ली प्रस्थान
किया और अनेक महत्वपूर्ण स्थानों पर विजय पाई; पर अमरीका द्वारा जापान के हिरोशिमा और
नागासाकी नगरों पर परमाणु बम डालने से युद्ध का पासा पलट गया और जापान को
आत्मसमर्पण करना पड़ा। साथ ही आज़ाद हिन्द फ़ौज को भी पराजय का सामना करना पड़ा।
आज़ाद हिन्द फ़ौज के सैनिक एवं अधिकारियों को अंग्रेज़ों ने 1945 ई.
में गिरफ़्तार कर लिया। साथ ही एक हवाई दुर्घटना में सुभाषचन्द्र बोस की
भी 18 अगस्त, 1945 ई.
को मृत्यु हो गई। हालांकि हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु अभी भी संदेह के घेरे में
है। बोस की मृत्यु का किसी को विश्वास ही नहीं हुआ। आज इतने वर्षों बाद भी जनमानस
उनकी राह देखता है।
आज़ाद हिन्द फ़ौज के गिरफ़्तार सैनिकों एवं अधिकारियों पर अंग्रेज़
सरकार ने दिल्ली के लाल क़िले में नवम्बर, 1945 ई. को राजद्रोह का
मुकदमा चलाया। इस मुकदमे के मुख्य अभियुक्त कर्नल सहगल, कर्नल
ढिल्लों एवं मेजर शाहवाज ख़ां पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। इनके पक्ष में सर
तेजबहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू, भूला भाई देसाई और के. एन. काटजू ने
दलीलें दीं, लेकिन फिर भी इन तीनों की फाँसी को सज़ा सुनाई
गयी। इस निर्णय के ख़िलाफ़ पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई, नारे लगाये गये- "लाल क़िले को तोड़ दो, आज़ाद
हिन्द फ़ौज को छोड़ दो।" विवश होकर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने अपने
विशेषाधिकार का प्रयोग कर इनकी मृत्युदण्ड की सज़ा को माफ कर दिया। यद्यपि आज़ाद
हिन्द फौज़ के सेनानियों की संख्या के बारे में थोड़े बहुत मतभेद रहे हैं, परन्तु ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि इस सेना में लगभग चालीस हज़ार
सेनानी थे। इस संख्या का अनुमान ब्रिटिश इंटेलिजेंस में रहे कर्नल जीडी एण्डरसन ने
भी किया है।
आज़ाद हिन्द फ़ौज की प्रथम डिवीजन का गठन 1 दिसम्बर, 1942 ई. को मोहन सिंह के अधीन हुआ। इसमें लगभग 16,300
सैनिक थे। कालान्तर में जापान ने 60,000 युद्ध
बंदियों को आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल होने के लिए छोड़ दिया। जापानी सरकार और
मोहन सिंह के अधीन भारतीय सैनिकों के बीच आज़ाद हिन्द फ़ौज की भूमिका के संबध में
विवाद उत्पन्न हो जाने के कारण मोहन सिंह एवं निरंजन सिंह गिल को गिरफ्तार कर लिया
गया। आज़ाद हिन्द फ़ौज का दूसरा चरण तब प्रारम्भ हुआ, जब
सुभाषचन्द्र बोस सिंगापुर गये। सुभाषचन्द्र बोस ने 1941 ई. में बर्लिन में 'इंडियन
लीग' की स्थापना की, किन्तु जब जर्मनी
ने उन्हें रूस के विरुद्ध प्रयुक्त करने का प्रयास किया,
तब कठिनाई उत्पन्न हो गई और बोस ने दक्षिण पूर्व एशिया जाने का निश्चय किया।