राज्य के शिक्षा विभाग की लापरवाही का आलम यह है कि खुदीराम बोस जैसे अमर क्रांतिकारी को ‘आतंकी’ बना दिया गया है। राज्य सरकार की आठवीं की इतिहास की पुस्तक में खुदीराम बोस को आतंकवादी बताया गया है। किताब का स्नैपशॉट फेसबुक, ट्विटर व अन्य सोशल मीडिया के माध्यमों पर साझा किया जा रहा है। इसकी जानकारी होते ही राज्य सरकार ने जांच के लिए इतिहासकार जीवन मुखर्जी के नेतृत्व में कमेटी गठित कर दी है। शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने मंगलवार को विधानसभा में इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कमेटी तीन महीने में अपनी रिपोर्ट शिक्षा विभाग को देगी। माकपा विधायक प्रदीप कुमार साहा ने विधानसभा में इसे लेकर सवाल किया था।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक कमेटी में हिन्दी स्कूल और हेयर स्कूल के प्रधान शिक्षकों को रखा गया है। इसके अलावा शिक्षाविद् पवित्र सरकार भी इस कमेटी का हिस्सा हैं। पूरी किताब की समीक्षा यह टीम करेगी और गलतियों को सुधारकर नए सिरे से प्रकाशन की अनुशंसा की जाएगी। मुख्य रूप से तीन बिंदुओं पर यह कमेटी काम करेगी। पाठ्यक्रम में इस्तेमाल की गई भाषा सहज और समझ में आने लायक है या नहीं, यह देखा जाएगा। पांचवीं श्रेणी से लेकर 12वीं तक की इतिहास की पुस्तकों कई नए पाठ्यक्रमों को शामिल किया गया है, जिनमें सिंगुर से लेकर कई ऐसे आंदोलन शामिल हैं, जिनका नेतृत्व ममता बनर्जी ने किया है। उन तथ्यों की भी समीक्षा की जाएगी। इसके साथ ही आठवीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक में खुदीराम बोस को ‘आतंकवादी’ के तौर पर चिन्हित किया गया है। उसे भी सुधारने का उपाय तलाशा जाएगा। इतिहास की इस पुस्तक को तैयार करने वाले शिक्षक निर्मल बनर्जी से मंगलवार को जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने खुदीराम बोस को ‘आतंकवादी’ कहा था, उन्होंने उसी तथ्य का उल्लेख किया है। वे इतिहास से छेड़छाड़ नहीं कर सकते। यह शिक्षकों का काम है कि बच्चों को आतंकवादी और क्रांतिकारी में अंतर समझाए। शिक्षा विभाग का कहना है कि शिक्षा वर्ष 2020 से पहले इस भूल को सुधार पाना संभव नहीं हो सकेगा।
पहले भी हुई है गलती
उल्लेखनीय है कि इसके पहले ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से मशहूर धावक मिल्खा सिंह की जगह उनपर बनी फिल्म में उनका किरदार निभाने वाले अभिनेता को ही किताब में मिल्खा सिंह बता दिया गया था। हालांकि, वह निजी प्रकाशन की किताब थी। इसकेअलावा कई अन्य क्रांतिकारियों को भी इसी तरह से आतंकवादी के तौर पर स्कूलों की किताबों में चिन्हित किया गया है। आरोप लगता रहा है कि इतिहास लिखने वाले वामपंथी इतिहासकारों ने क्रांतिकारियों का अपमान करने के लिए सोची-समझी साजिश के तहत इतिहास में आजादी के नायकों को गलत तरीके से परिभाषित किया है।