Tuesday, July 9, 2019

शिक्षा में श्रेष्ठता के बड़े सपने और छोटे प्रावधान


सपने और संकल्प में फर्क होता है। कस्तूरीरंगन कमेटी ने नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में अगले 10-15 वर्षों में समूची शिक्षा प्रणाली को बुनियादी रूप से बदलने का एक महत्वाकांक्षी स्वप्न दिया है। यह कपोल कल्पना नहीं, वरन एक सुविचारित योजना है। क्या वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट इस विराट सपने को हकीकत में बदलने का संकल्प व सामथ्र्य देता है? हालांकि इसके अलावा बजट में कई बातें हैं। जैसे विदेशी छात्रों को भारत आकर उच्च शिक्षा पाने के लिए आकर्षित किया जाएगा। उच्च शिक्षा संस्थाओं को एक्रिडिएशन स्कोर के आधार पर स्वायत्तता दी जाएगी। राष्ट्रीय उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना की जाएगी। खेलो इंडिया के अंतर्गत राष्ट्रीय खेलकूद शिक्षा बोर्ड की भी स्थापना होगी। आधुनिकतम तकनीक की शिक्षा भारतीय भाषाओं में दी जाएगी। और स्टैंड अप इंडिया योजना 2025 तक जारी रहेगी।
मगर इन सबके लिए जिस पैमाने पर वित्तीय संसाधनों का आवंटन किया गया है, वह आशा के अनुरूप नहीं रहा। अगर हम शिक्षा के लिए कुल आवंटित राशि को देखें, तो यह 9,4851.64 करोड़ रुपये हैं, जो जनवरी, 2019 के अंतरिम बजट में आवंटित राशि से 1,000 करोड़ अधिक है। इसमें स्कूली शिक्षा पर 56,530 करोड़ और उच्च शिक्षा पर 38,317 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। कुल आवंटन पिछले साल से करीब दस हजार करोड़ रुपये ज्यादा है। बजट भाषण में कहा गया है कि नई शिक्षा नीति को लागू करके स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा, दोनों में बड़े बदलाव किए जाएंगे। शिक्षा व्यवस्था में सुशासन लाया जाएगा। उच्च शिक्षा में शोध व अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इसके लिए राष्ट्रीय अनुसंधान कोष स्थापित किया जाएगा। नई शिक्षा नीति की ड्राफ्ट रिपोर्ट में इस कोष के लिए हर साल 20,000 करोड़ रुपये के प्रावधान की बात की गई थी। वित्त मंत्री ने विश्व स्तरीय संस्थाओं के विकास के लिए 400 करोड़ रुपये के प्रावधान की बात कही है। 
पिछले वर्ष प्राइवेट सेक्टर की तीन और सरकारी क्षेत्र की तीन विशिष्ट शिक्षण संस्थाओं को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के रूप में मान्यता दी थी, जिनमें सरकारी संस्थाओं को दस साल तक सौ करोड़ प्रतिवर्ष अनुदान दिए जाने की घोषणा की गई थी, यानी पिछले वादे के अलावा सौ करोड़ अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। सावल यह है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था की मौजूदा खस्ता हालत को देखते हुए उसे एक अति आधुनिक भविष्योन्मुखी शिक्षा प्रणाली में बदलने का काम क्या यह बजट शुरू कर पाएगा?
नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में कई वजनदार लक्ष्य देश के सामने रखे गए। अभी तक जो स्कूली शिक्षा चल रही है, उसमें प्री नर्सरी शिक्षा के भी जोडे़ जाने का प्रस्ताव है। शिक्षा के अधिकार  से संबंधित जो कानून 2009 में बना था, उसमें अब 12वीं कक्षा तक 25 प्रतिशत सीटें आर्थिक रूप से निर्धन लोगों के लिए आरक्षित रहेंगी। स्कूलों में पढ़ाई के लिए जरूरी संसाधनों की व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। हर जगह प्रशिक्षित शिक्षकों का टोटा है। नई शिक्षा नीति इस समस्या का हल करने के लिए कई उपाय लेकर आती है। हमारे देश की स्कूली शिक्षा व्यवस्था दुनिया की सबसे विशाल प्रणालियों में चीन के बाद दूसरे नंबर पर आती है। संख्यात्मक दृष्टि से हमने ऊंचाइयां भले ही हासिल कर ली हा, किंतु गुणवत्ता के पैमाने पर हम अपने जैसे देशों से बहुत पीछे हैं।
पिछले साल स्कूली शिक्षा पर  50,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जो वर्ष 2014-15 में 45,722 करोड़ था। इस अवधि में सकल राष्ट्रीय आय में स्कूली शिक्षा का बजट 2.55 प्रतिशत से घटकर 2.05 प्रतिशत रह गया। 2035 तक देश की जनसंख्या 145 से 150 करोड़ होने की संभावना है। यानी अभी जो 3.8 करोड़ विद्यार्थी एक हजार यूनिवर्सिटियों और कॉलेजों में अध्ययनरत हैं, उनकी तादाद दस करोड़ से भी ज्यादा होगी। क्या वर्ष 2019-20 के बजट में उच्च शिक्षा के उन्नयन और विस्तार के लिए समुचित संसाधन जुटाने की बात की गई है? पिछले साल के बजट में उच्च शिक्षा के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इसका एक बड़ा हिस्सा केंद्रीय विश्वविद्यालयों और आईआईटी व आईआईएम जैसे नामी-गिरामी संस्थानों के ऊपर खर्च हो जाता है।

ensoul

money maker

shikshakdiary

bhajapuriya bhajapur ke