विश्व बालश्रम निषेध दिवस World Day Against Child
Labour प्रत्येक वर्ष 12 जून को मनाया जाता है। भारत में बालश्रम की समस्या
दशकों से प्रचलित है। भारत सरकार ने बालश्रम की समस्या को समाप्त क़दम उठाए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता
है। भारत की केंद्र सरकार ने 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन
अधिनियम पारित कर दिया। इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति
नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक
उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है। 1987 में, राष्ट्रीय
बालश्रम नीति बनाई गई थी।
भारत में बालश्रम
भारतवर्ष में प्रारंभ से ही बच्चों को ईश्वर का रूप माना जाता है। ईश्वर के बाल रूप यथा 'बाल
गणेश', 'बाल गोपाल', 'बाल कृष्णा',
'बाल हनुमान' आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भारत की धरती ध्रुव, प्रह्लाद, लव-कुश एवं अभिमन्यु जैसे बाल चरित्रों से पटी हुई है। बच्चों का वर्तमान दृश्य इससे भिन्न है।
बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। ग़रीब बच्चे सबसे अधिक शोषण का शिकार
हो रहे हैं। ग़रीब बच्चियों का जीवन भी अत्यधिक शोषित है। छोटे-छोटे ग़रीब बच्चे
स्कूल छोड़कर बाल-श्रम हेतु मजबूर हैं। बाल-श्रम, मानवाधिकार
का खुला उल्लंघन है। यह बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करता
है। बच्चे आज के परिवेश में घरेलू नौकर का कार्य कर रहे हैं। वे होटलों, कारखानों, सेवा-केन्द्रों, दुकानों
आदि में कार्य कर रहे हैं, जिससे उनका बचपन पूर्णतया
प्रभावित हो रहा है।
भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 24
स्पष्ट करता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के किसी
भी बच्चे को ऐसे कार्य या कारखाने इत्यादि में न रखा जाये जो खतरनाक हो। कारखाना
अधिनियम, बाल अधिनियम, बाल श्रम निरोधक
अधिनियम आदि भी बच्चों के अधिकार को सुरक्षा देते हैं किन्तु इसके विपरीत आज की
स्थिति बिलकुल भिन्न है। पिछले कुछ वर्षों से भारत सरकार एवं राज्य सरकारों की पहल
इस दिशा में सराहनीय है। उनके द्वारा बच्चों के उत्थान के लिए अनेक योजनाओं को
प्रारंभ किया गया हैं, जिससे बच्चों के जीवन व शिक्षा पर
सकारात्मक प्रभाव दिखे। शिक्षा का अधिकार भी इस दिशा में एक सराहनीय कार्य है।
इसके बावजूद बाल-श्रम की समस्या अभी भी एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है।
इसमें कोई शक नहीं कि बाल-श्रम की समस्या किसी भी देश व समाज के लिए घातक है।
बाल-श्रम पर पूर्णतया रोक लगनी चाहिए। बाल-श्रम की समस्या जड़ से समाप्त होना अति
आवश्यक है।
भारत की बात करें तो सरकारी
आंकड़ों के अनुसार 2 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के
अनुसार तो लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। इन
बालश्रमिकों में से 19 प्रतिशत के लगभग घरेलू नौकर हैं,
ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में तथा कृषि क्षेत्र से लगभग 80%
जुड़े हुए हैं। शेष अन्य क्षेत्रों में, बच्चों
के अभिभावक ही बहुत थोड़े पैसों में उनको ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो
अपनी व्यवस्था के अनुसार उनको होटलों, कोठियों तथा अन्य
कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। उनके नियोक्ता बच्चों को थोड़ा सा खाना
देकर मनमाना काम कराते हैं। 18 घंटे या उससे भी अधिक काम
करना, आधे पेट भोजन और मनमाफ़िक काम न होने पर पिटाई यही
उनका जीवन बन जाता है।
केवल घर का काम नहीं इन बालश्रमिकों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले
बनाना, पीतल उद्योग में काम करना, कांच
उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस,
बीड़ी बनाना, खेतों में काम करना (बैल की तरह),
कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, सीमेंट
उद्योग, दवा उद्योग में तथा होटलों व ढाबों में झूठे
बर्तन धोना आदि सभी काम मालिक की मर्जी के अनुसार करने होते हैं। इन समस्त कार्यों
के अतिरिक्त कूड़ा बीनना, पोलीथिन की गंदी थैलियाँ चुनना,
आदि अनेक कार्य हैं जहाँ ये बच्चे अपने बचपन को नहीं जीते, नरक भुगतते हैं परिवार का पेट पालते हैं। इनके बचपन के लिए न माँ की लोरियां हैं न पिता का दुलार,
न खिलौने हैं, न स्कूल न बालदिवस। इनकी दुनिया सीमित है तो बस काम काम और काम, धीरे
धीरे बीड़ी के अधजले टुकड़े उठाकर धुआं उडाना, यौन शोषण को
खेल मानना इनकी नियति बन जाती है।
वेल्डिंग के कारण आँखें अल्पायु में गवां बैठना, फैक्ट्री के धुंए में निकलते खतरनाक अवशेषों को श्वास के साथ शरीर का अंग बना लेना, जहरीली गैसों
से घातक रोगों फेफड़ों का केंसर टी.बी. आदि का शिकार बनना, यौन शोषण के कारण एड्स या अन्य
यौन रोगों के कारण सारा जीवन होम कर देना भरपेट भोजन व नींद न मिलने से अन्य
शारीरिक दुर्बलताएँ, कहाँ तक इनकी समस्याओं को गिना जाए ये
तो अनगिनत हैं। ऐसा नहीं कि केवल लड़के ही बाल श्रमिक हैं लड़कियां भी इन कार्यों
में लगी है। घरों में ऐसे लड़के लड़कियां आपको प्राय: मिल जायेंगे जो घरेलू कार्य
करते हैं उत्पीडन उनका भी होता है। विभिन्न प्रकार के उद्योग धंधों में लड़कियां
कार्यरत हैं बाकी सभी समस्याओं के साथ यौन उत्पीडन उनकी दिनचर्या का एक अंग बन जाता
है। ऐसे बाल श्रमिकों से सम्बंधित एक अन्य समस्या है, बहुत
बार इन बच्चों को तस्करी आदि कार्यों में भी लगा दिया जाता है। मादक द्रव्यों की
तस्करी में व अन्य ऐसे ही कार्यों में इनको संलिप्त कर इनकी विवशता का लाभ उठाया
जाता है। बच्चों को मुस्लिम देशों में बेच देने की घटनाएँ भी होती हैं जहाँ बच्चों
को मनोरंजन का साधन मान खिलौना बना दिया जाता है वहां के शेखों के लिए।
क्या कहता है भारतीय संविधान ?
संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप भारत का संविधान मौलिक
अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत की विभिन्न धाराओं के माध्यम से कहता
है-
- 14
साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम
करने के लिए नियुक्त नहीं किया जायेगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में
नियुक्त किया जायेगा (धारा 24)।
- राज्य
अपनी नीतियां इस तरह निर्धारित करेंगे कि श्रमिकों, पुरुषों और महिलाओं का
स्वास्थ्य तथा उनकी क्षमता सुरक्षित रह सके और बच्चों की कम उम्र का शोषण न
हो तथा वे अपनी उम्र व शक्ति के प्रतिकूल काम में आर्थिक आवश्यकताओं की
पूर्ति के लिए प्रवेश करें (धारा 39-ई)।
- बच्चों
को स्वस्थ तरीके से स्वतंत्र व सम्मानजनक स्थिति में विकास के अवसर तथा
सुविधाएं दी जायेंगी और बचपन व जवानी को नैतिक व भौतिक दुरुपयोग से बचाया
जायेगा (धारा 39-एफ)।
- संविधान लागू होने के 10
साल के भीतर राज्य 14 वर्ष तक की उम्र के सभी
बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रयास करेंगे (धारा 45)।
- बाल
श्रम एक ऐसा विषय है, जिस पर संघीय व राज्य सरकारें, दोनों कानून बना
सकती हैं। दोनों स्तरों पर कई कानून बनाये भी गये हैं।
- अन्य
प्रयास जो इस संदर्भ में समय समय पर हुए हैं उनमें
- बाल
श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को
किसी भी अवैध पेशों और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए अहितकर माना गया है,
नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इन पेशों और प्रक्रियाओं का
उल्लेख कानून की अनुसूची में है।
- फैक्टरी
कानून 1948 -
यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों
के नियोजन को निषिद्ध करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं,
जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो।
इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक
के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गयी है और रात में उनके काम करने
पर प्रतिबंध लगाया गया है।
- भारत में बाल श्रम के खिलाफ कार्रवाई में महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप 1996 में उच्चतम न्यायालय के उस फैसले से आया, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों को खतरनाक प्रक्रियाओं और पेशों में काम करने वाले बच्चों की पहचान करने, उन्हें काम से हटाने और उन्हें गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने यह आदेश भी दिया था कि एक बाल श्रम पुनर्वास सह कल्याण कोष की स्थापना की जाये, जिसमें बाल श्रम कानून का उल्लंघन करनेवाले नियोक्ताओं के अंशदान का उपयोग हो।