Friday, December 27, 2019

भारत का राष्ट्रगान 'जन-गण-मन'

राष्ट्रकवि गुरुदेव रविन्द्रनाथ ने साल 1911 में भारत का राष्ट्रगान लिखा था।
जानें जन-गण-मन का इतिहास...



नोबल पुरस्कार विजेता गुरुवदेव रविन्द्रनाथ टैगोर आज ही के दिन यानि 7 मई 1861 को पैदा हुआ थे। उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा जाता है। भारत का राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' उन्हीं की कलम से निकला है। आज उनके जन्मदिवस के अवसर पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। गुरुदेव के जन्मदिवस पर जानते हैं उनके ही द्वारा लिखे गए 'जन-गण-मन' की दास्तां...
किसी देश का राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान उसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान होता है। साथ ही देशवासियों के लिए सबसे सम्मान का प्रतीक भी माना जाता है। भारत का राष्ट्रगान जन गण मनपहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता (तब कलकत्ता) अधिवेशन के दौरान बंगाली और हिंदी भाषा में गाया गया था।
गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1911 में ही इस गीत की रचना की थी। उन्होंने पहले राष्ट्रगान को बंगाली में लिखा था। बाद में आबिद अली ने इसका हिंदी और उर्दू में रूपांतरण किया था। 24 जनवरी 1950 को आजाद भारत की संविधान सभा ने इसे अपना राष्ट्रगान घोषित किया था।
आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि खुद गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर ने ही अपने इस गीत का 1919 में अंग्रेजी अनुवाद दि मॉर्निंग सांग ऑफ इंडियाकिया था। इसके बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू के विशेष अनुरोध पर अंग्रेजी संगीतकार हर्बट मुरिल्ल ने इसे ऑर्केस्ट्रा की धुनों पर भी गाया था। गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने ही बांग्लादेश का राष्ट्रगान (अमार सोनार बांग्ला) भी लिखा था।
राष्ट्रगान गाने का नियम
राष्ट्रीय प्रतीकों और चिन्हों की तरह राष्ट्रगान के सम्मान को बरकरार रखने के लिए भी कानून बनाया गया है। राष्ट्रगान की आचार संहिता के तहत राष्ट्रगान गाते समय नियमों और नियंत्रणों के समुच्चय को लेकर भारतीय सरकार समय-समय पर निर्देश देती है। राष्ट्रगान को गाए जाने की कुल अवधि 52 सेकेंड है। इसे 49 से 52 सेकेंड के बीच ही गाया जाना चाहिए। कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है। इसमें प्रथम और अंतिम पंक्तियां ही बोलते हैं। इसमें लगभग 20 सेकेंड का समय लगता है।
राष्ट्रगान के लिए ये है कानून
राष्ट्रगान का अपमान करने या इसे गाने से रोकने या परेशान करने पर संबंधित व्यक्ति अथवा ग्रुप के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टु नेशनल ऑनर एक्ट-1971 की धारा-3 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। इसके अपमान का दोषी पाए जाने पर तीन वर्ष कारावास और जुर्माने का प्रावधान है। देशवासियों से अपेक्षा की जाती है कि जिस वक्त राष्ट्रगान बज रहा हो या गाया जा रहा हो वह अपनी जगह पर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएं। राष्ट्रध्वज फहराते वक्त और परेड के साथ केंद्र व राज्य सरकारों के कार्यक्रमों में राष्ट्रगान बजाया या गाया जाता है। दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्र को संबोधित करने से ठीक पहले और ठीक बाद में भी राष्ट्रगान बजाने का नियम है।
बोस ने अपनाया था ये गीत
गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए राष्ट्रगान में पांच पद हैं। राष्ट्रगान के रूप में इसके पहले पद को ही अपनाया गया। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ही अपनी आजाद हिंद फौज में जय हेनाम से इस गीत को अपनाया था। जन गण मन का पहली बार प्रकाशन 1912 में तत्वबोधिनी नामक पत्रिका में हुआ था। तब इसका शीर्षक रखा गया था भारत विधाता। तेलंगाना के जम्मीकुंटा गांव और हरियाणा में फरीदाबाद जिले के भनकपुर गांव में हर सुबह सामूहिक रूप से राष्ट्रगान गाया जाता है।
राष्ट्रगान को लेकर रहे विवाद
राष्ट्रगान को लेकर पहला विवाद 1987 में सामने आया था, जो सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। केरल के एक स्कूल के कुछ विद्यार्थियों को स्कूल ने इसलिए निकाल दिया था, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रगान गाने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई के दौरान पता चला कि ये विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रगान के दौरान इसके सम्मान में खड़े होते थे। इस पर अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा था कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान करता है, लेकिन उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वह उसका अपमान कर रहा है।
गुरुदेव भी इस विवाद का कर चुके हैं खंडन
राष्ट्रगान को लेकर एक शुरूआत में एक और अजीबो-गरीब विवाद खड़ा हो गया था। इसके बारे में कहा जाने लगा था कि इसे जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में लिखा गया है। इस विवाद पर स्वयं गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने भी उस वक्त खंडन किया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि सिनेमाघरों में फिल्म खत्म होने के बाद राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिए। कुछ जगहों पर इसका काफी विरोध हुआ, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला वापस ले लिया था। अब सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाता है। राष्ट्रगान के एक शब्द सिंध को लेकर भी कई बार आपत्ति जताई चुकी है। इस शब्द को राष्ट्रगान से हटाने तक की मांग सुप्रीम कोर्ट से की जा चुकी है। इसके लिए तर्क दिया गया कि सिंध अब पाकिस्तान का हिस्सा है।
राष्ट्रगान के साथ राष्ट्रगीत को मिली थी मान्यता
भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम को भी 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान के साथ ही मान्यता प्रदान की गई थी। इसका स्थान भी राष्ट्रगान के समकक्ष है। इसकी रचना बंकिमचंद्र चटर्जी ने सात नवंबर 1876 को बंगाल के कांतल पाड़ा गांव में की थी। इसके पहले दो पद संस्कृत में और शेष पद बंगाली भाषा में थे। राष्ट्रकवि रविंद्रनाथ टैगोर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया था। इस गीत को भी सबसे पहले कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में 1896 को गाया गया था। बाद में अरविंदो घोष इसका अंग्रेजी में और आरिफ मोहम्मद आरिफ खान ने इसका उर्दू में अनुवाद किया था।
अंग्रेजों ने इस गीत को किया था अनिवार्य
गुलामी के दौर में 1870 में अंग्रेजों ने गॉड सेव दि क्वीनगीत को गाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से उस वक्त के सरकारी अधिकारी बंकिमचंद्र चटर्जी काफी आहत हुए थे। इसके बाद उन्होंने 1876 में इस गीत के विकल्प के तौर पर संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से वंदे मातरमनए गीत की रचना की थी। शुरूआत में इसके केवल दो पद रचे गए थे, जो केवल संस्कृत में थे।



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