सिक्किम जो आज ही के दिन भारत का 22वां राज्य बना था
कभी अलग राष्ट्र था। इंदिरा गांधी ने एतिहासिक फैसला लेते हुए इसको भारत का हिस्सा
बनाया और चोग्याल राज खत्म हुआ।
1962 में चीन से हुए युद्ध के बाद से ही भारत को इस बात की चिंता सताने लगी थी
कि चीन की नजर उसकी सीमाओं पर लगी है और वह भारत के काफी बड़े भू-भाग पर कब्जा
करना चाहता है। भारत को इस बात का भी डर था कि सिलीगुड़ी नेक जो चुंबी वैली के पास
स्थित है और डोकलाम क्षेत्र में आता है, से घुसपैठ को अंजाम
दे सकता है। यह पूरा इलाका करीब 21 मील का है। इस इलाके से
सटा है सिक्किम राज्य।सिक्किम भारत की सुरक्षा के लिए काफी खास था। यही वजह थी कि
वहां के राजनीतिक हालात भारत के खासा मायने रखते थे। वहीं, दूसरी
तरफ चीन तिब्बत की ही तरह सिक्किम को भी हड़प लेना चाहता था। लेकिन इंदिरा गांधी के सामने चीन की सभी चाल नाकाम साबित हुईं और सिक्किम
को भारत में शामिल कर लिया गया।सिक्किम को भारत में शामिल करने का श्रेय भी तत्कालीन
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही जाता है।
आपको बता दें कि सिक्किम को भारत में मिलाने की कोशिश पंडित
जवाहरलाल नेहरू ने भी की थी। लेकिन 1947 में इस विषय पर कराए गए जनमत संग्रह में इसको नकार दिया गया था। इसके बाद
नेहरू ने सिक्किम को संरक्षित राज्य का दर्जा दिया था। इसके तहत भारत सिक्किम का
संरक्षक हुआ और सिक्किम के विदेशी राजनयिक और संपर्क से जुड़े सभी मामलों की भी
जिम्मेदारी भारत ने ली।
भारत
में शामिल होने से पहले सिक्किम पर चोग्याल का शासन था। चोग्याल ने अमेरिकी
लड़की होप कुक से शादी की थी। बदकिस्मती से होप कुक चोग्याल के प्रति कम और
अमेरिका के प्रति ज्यादा निष्ठावान थी। वहीं चोग्याल न सिर्फ उसे बेहद प्यार
करता था बल्कि उसको लगता था कि कुक हर हाल में उसका साथ देगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
चोग्याल को जब सबसे अधिक उसकी जरूरत थी, तब उसने चोग्याल को ही धोखा दिया और बेशकीमती चीजों के साथ अमेरिका भाग
गई। कुक हमेशा से चाहती थी कि सिक्किम एक पूर्ण राष्ट्र
बना रहे, इसके लिए वह चोग्याल को उकसाने का भी काम करती थी।
कुक को लगता था कि इस मुद्दे पर अमेरिका उसका साथ जरूर
देगा।
1955 में सिक्किम में राज्य परिषद स्थापित की गई,
जिसके अधीन चोग्याल को एक संवैधानिक सरकार बनाने की अनुमति दी गई।
लेकिन नेपालियों को अधिक प्रतिनिधित्व की मांग के चलते राज्य में स्थिति खराब हाे
गई थी। 1973 में सिक्किम की हालत बेहद खराब हो गई थी। वहां
राजभवन के सामने हुए दंगो के चलते चोग्याल राजवंश सिक्किम पर अपनी पकड़ खो चुका था
और लोगों के मन में इसके प्रति नफरत की भावना अपने चरम पर पहुंच रही थी। सिक्किम
दूसरे देशों से पूरी तरह से कट चुका था। चोग्याल शासन यहां अत्यधिक अलोकप्रिय
साबित हो रहा था। सिक्किम पूर्ण रूप से बाहरी दुनिया के लिए कट चुका था। यहां के
हालात लगातार बेकाबू होते जा रहे थे, जिसको लेकर दिल्ली में
केंद्र सरकार काफी परेशान थी। इंदिरा गांधी इस पर निगाह रखे हुए थीं। चोंग्याल के
खिलाफ कई गुट बन चुके थे। यहीं से सिक्किम को भारत में मिलाने की कहानी भी शुरू
होती है।
7 अप्रैल, 1973 को इंदिरा गांधी के आदेश पर दिल्ली
के म्यूनसिपल कमिश्नर बीएस दास को तुरंत सिक्किम में कार्यभार संभालने के लिए
कहा गया था। यह आदेश उन्हें फोन पर तत्कालीन विदेश सचिव केवल सिंह ने दिया था।
दास के लिए यह सब कुछ न समझ में आने वाली कहानी की तरह था। उन्हें आदेश था कि वह
तुरंत घर से निकलें और सिक्किम में काम संभाल लें। बहरहाल, अगले
दिन दास सिक्किम में गेंगटोक पहुंचे। यहां उनका स्वागत चोग्याल के विरोधी गुटों
ने किया। चोग्याल से मुलाकात के दौरान उन्हें यह भी घमकी दी गई कि सिक्किम को
गाेवा समझकर न चला जाए। इसका मतलब बेहद सीधा और सटीक था कि भारत यहां पर सेना के
दम पर कब्जा करने की कोशिश न करे। इस मुलाकात ने चोग्याल ने दास को यहां तक कहा
कि उन्हें कभी दबाने की कोशिश न की जाए, क्योंकि भारत ने
यहां पर उन्हें सिक्किम की सरकार को सहयोग देने के लिए भेजा है। लिहाजा यहां काम
सिक्किम के संविधान के तहत ही किया जाएगा।
भारत और चोग्याल के बीच 8 मई 1973 को एक समझौते पर दस्तखत किए गए। इसके बाद
यहां पर चुनाव कराए गए। एक समय था जब चोग्याल की स्थानीय जनता में काफी इज्जत
थी, लेकिन अब वक्त बदल चुका था। चोग्याल जब अपने समर्थन
में वोट मांगने के लिए निकले तो उन्हें लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा। यही
वजह थी कि इस चुनाव में चोग्याल के समर्थन वाली नेशनलिस्ट पार्टी को 32 में से महज 1 सीट मिली। इससे भी ज्यादा बवाल उस
वक्त हुआ जब जीतकर आए सदस्यों ने चोग्याल के नाम पर शपथ लेने से ही मना कर
दिया। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि चोग्याल असेंबली में आए तो वह सदन की
कार्यवाही में ही भाग नहीं लेंगे। उस वक्त दास, जिन्हें
सिक्किम का कार्यभार सौंपा गया था और जो असेंबली के स्पीकर भी थे, ने एक बीच का रास्ता निकाला था।
30 जून, 1974 को चोग्याल ने इंदिरा गांधी से मुलाकात
कर अपने मन की बात रखी, लेकिन इंदिरा गांधी ने बीच में ही
हाथ जोड़ लिए और इशारे ही इशारों में उन्हें जाने के लिए कह दिया। चोग्याल के
लिए यह वक्त हर तरफ से मदद के दरवाजे बंद होने जैसा ही था। 6 अप्रैल, 1975 की सुबह चोग्याल के राजमहल को चारों
तरफ से भारतीय सेना ने घेर लिया था। जवानों के साथ-साथ इनमें टैंक भी शामिल थे।
भारतीय जवानों को यहां पर कुछ ही गोलियां चलानी पड़ी थीं और देखते ही देखते वहां
मौजूद सभी सुरक्षाकर्मियों ने भारतीय जवानों के आगे घुटने टेक दिए। इस पूरी
कार्रवाई में महज 30 मिनट का ही समय लगा।
इसी दिन 12 बज कर 45 मिनट तक सिक्किम
का स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा खत्म हो चुका था। इसके बाद चोग्याल को उनके महल
में ही नजरबंद कर दिया गया। दो दिनों के भीतर सम्पूर्ण सिक्किम राज्य भारत के
नियंत्रण में था। इसके बाद सिक्किम को भारतीय गणराज्य मे शामिल करने को लेकर जनमत
संग्रह करवाया गया। इतना ही नहीं अपने बेटे और पोते की दुर्घटना में हुई मौत के
बाद तो चोग्याल ने आत्महत्या तक करने की कोशिश की थी। इसके बाद उनकी पत्नी भी
उन्हें छोड़कर चली गई थी। 1975 में भारतीय संसद में
यह अनुरोध किया के सिक्किम को भारत का एक राज्य स्वीकार किया जाए और उसे भारतीय
संसद में प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए।
23 अप्रैल, 1975 को लोकसभा
में सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने के लिए संविधान
संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसे 299-11 के मत से पास कर दिया गया। राज्यसभा में यह बिल 26
अप्रैल को पास हुआ और 15 मई, 1975 को
जैसे ही राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इस बिल पर हस्ताक्षर किए। 16 मई 1975 को सिक्किम को औपचारिक रूप से भारतीय
गणराज्य का 22 वां प्रदेश बना लिया गया। इसके साथ ही सिक्किम
जहां भारत का अंग बन गया वहीं, नाम्ग्याल राजवंश का शासन हमेशा
के लिए खत्म हो गया। 1982 में चोग्याल की कैंसर से मौत हो
गई।