भारतीय परमाणु आयोग ने पोखरण में अपना पहला
भूमिगत परिक्षण 18 मई 1974 को किया था। हलांकि उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी
कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और यह परीक्षण भारत
को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया है। बाद में 11 और 13 मई 1998 को पाँच और भूमिगत परमाणु परीक्षण किये और भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति
संपन्न देश घोषित कर दिया।
परमाणु बम, बुनियादी सुविधाओं और संबंधित तकनीकों पर शोध के
निर्माण की दिशा में प्रयास द्वितीय विश्व
युद्ध के बाद से ही भारत की ओर से शुरू किया गया।
भारत का परमाणु कार्यक्रम 1944 में आरंभ हुआ माना जाता है जब
परमाणु भौतिकविद् होमी भाभा ने परमाणु ऊर्जा के दोहन के प्रति भारतीय
कांग्रेस को राजी करना शुरू किया-एक साल बाद
इन्होंने टाटा
मूलभूत अनुसंधान संस्थान(टीआईएफआर) की स्थापना की।
1950
के दशक में प्रारंभिक अध्ययन बीएआरसी में किये गए और प्लूटोनियम और अन्य बम घटकों के उत्पादन व विकसित की योजना
थी। 1962 में, भारत और चीन विवादित
उत्तरी मोर्चे पर संघर्ष में लग गए और 1964 के चीनी परमाणु
परीक्षण से भारत ने अपने आप को कमतर महसूस किया। जब विक्रम साराभाई इसके प्रमुख बन गए और 1965 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर
शास्त्री ने इसमें कम रुचि दिखाई तो परमाणु योजना
का सैन्यकरण धीमा हो गया।
बाद में जब इंदिरा गांधी 1966
में प्रधानमंत्री बनीं व भौतिक विज्ञानी राजा रमन्ना के प्रयासों में शामिल होने पर परमाणु कार्यक्रम समेकित (कंसोलिडेट) किया
गया। चीन के द्वारा एक और
परमाणु परीक्षण करने के कारण अंत में 1967 में परमाणु
हथियारों के निर्माण की ओर भारत को निर्णय लेना पड़ा और 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण, मुस्कुराते बुद्ध
आयोजित किया।